दिल्ली हाईकोर्ट ने एआईएमआईएम को राजनीतिक पार्टी के रूप में दिए गए ईसीआई पंजीकरण के खिलाफ याचिका खारिज करने को बरकरार रखा
Avanish Pathak
24 Jan 2025 8:05 AM

दिल्ली हाईकोर्ट ने ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलिम (एआईएमआईएम) को राजनीतिक दल के रूप में चुनाव आयोग द्वारा दिए गए पंजीकरण को रद्द करने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है।
कार्यवाहक चीफ जस्टिस विभु बाखरू और जस्टिस तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने पिछले साल नवंबर में एकल न्यायाधीश द्वारा याचिका खारिज किए जाने को चुनौती देने वाली तिरुपति नरसिम्हा मुरारी की अपील को खारिज कर दिया।
सिंगल जज के समक्ष मुरारी ने 2014 में ईसीआई द्वारा जारी एक परिपत्र को चुनौती दी थी, जिसमें एआईएमआईएम को तेलंगाना राज्य में राज्य स्तरीय पार्टी के रूप में मान्यता दी गई थी।
एकल न्यायाधीश के आदेश को बरकरार रखते हुए खंडपीठ ने मुरारी की इस दलील को खारिज कर दिया कि एआईएमआईएम जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत निर्धारित शर्तों को पूरा नहीं करती है। मुरारी ने प्रस्तुत किया कि पार्टी का उद्देश्य केवल एक धार्मिक समुदाय के हितों को आगे बढ़ाना था।
यह भी तर्क दिया गया कि एआईएमआईएम धर्मनिरपेक्ष मूल्यों का पालन नहीं करती है और इसलिए, पंजीकरण प्रदान करना जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 29ए का उल्लंघन है। पीठ ने कहा कि एआईएमआईएम ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 29ए(5) के प्रावधानों के अनुरूप अपने संविधान में संशोधन किया है और इस प्रकार, मुरारी की दलील टिक नहीं पाती।
न्यायालय ने कहा, "हमें विद्वान एकल न्यायाधीश के इस निष्कर्ष में कोई कमी नहीं दिखती कि अधिनियम की धारा 29ए(5) की आवश्यकताएं पूरी तरह से संतुष्ट हैं। इसलिए, इस आधार पर एआईएमआईएम को राजनीतिक दल के रूप में रद्द करने का कोई आधार नहीं है कि इसका संविधान जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 29ए(5) के अनुरूप नहीं है।"
पीठ ने एकल न्यायाधीश की इस टिप्पणी से सहमति जताई कि चुनाव आयोग के पास मुरारी द्वारा अपनी याचिका में बताए गए आधारों पर एआईएमआईएम का पंजीकरण रद्द करने का अधिकार नहीं है।
पीठ ने निष्कर्ष निकाला, "उपरोक्त के मद्देनजर, अपील अयोग्य है। तदनुसार, इसे खारिज किया जाता है।"
एकल न्यायाधीश के समक्ष मुरारी ने चुनाव आयोग को एआईएमआईएम को पंजीकृत राजनीतिक दल के रूप में मान्यता देने और उसके साथ व्यवहार करने से रोकने की भी मांग की।
एआईएमआईएम की स्थापना 1958 में हुई थी। याचिका 2018 में दायर की गई थी। मुरारी उस समय शिवसेना पार्टी के सदस्य थे। उनका कहना था कि एआईएमआईएम जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए में निर्धारित शर्तों को पूरा नहीं करती है, जो ईसीआई के साथ राजनीतिक दलों के रूप में संघों और निकायों के पंजीकरण से संबंधित है।
उनका कहना था कि एआईएमआईएम के संविधान का उद्देश्य केवल एक धार्मिक समुदाय- मुसलमानों के हित को आगे बढ़ाना है और इस प्रकार यह धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के विरुद्ध है, जिसका पालन भारत के संविधान और आरपी अधिनियम की योजना के तहत प्रत्येक राजनीतिक दल को करना चाहिए।
उनकी याचिका को खारिज करते हुए एकल न्यायाधीश ने कहा था कि एआईएमआईएम कानूनी आवश्यकता को पूरा करती है कि एक राजनीतिक दल के संवैधानिक दस्तावेजों में यह घोषित किया जाना चाहिए कि वह संविधान के साथ-साथ समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के प्रति सच्ची आस्था और निष्ठा रखता है।
केस टाइटलः तिरुपति नरशिमा मुरारी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य