दिल्ली हाईकोर्ट ने 20-वर्षीय अविवाहित महिला की 28-सप्ताह की प्रेग्नेंसी के मेडिकल टर्मिनेशन की याचिका खारिज की

Shahadat

6 Feb 2024 7:00 AM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट ने 20-वर्षीय अविवाहित महिला की 28-सप्ताह की प्रेग्नेंसी के मेडिकल टर्मिनेशन की याचिका खारिज की

    दिल्ली हाईकोर्ट ने 20 वर्षीय अविवाहित महिला की 28 सप्ताह की प्रेग्नेंसी के मेडिकल टर्मिनेशन करने की मांग वाली याचिका खारिज की।

    जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने मेडिकल रिपोर्ट का अवलोकन किया और पाया कि भ्रूण में कोई जन्मजात असामान्यता नहीं है और न ही महिला को प्रेग्नेंसी जारी रखने में कोई खतरा है, जिसके लिए भ्रूण को समाप्त करना अनिवार्य होगा।

    अदालत ने कहा,

    "चूंकि भ्रूण व्यवहार्य और सामान्य है और याचिकाकर्ता को प्रेग्नेंसी जारी रखने में कोई खतरा नहीं है, इसलिए भ्रूणहत्या न तो नैतिक होगी और न ही कानूनी रूप से स्वीकार्य होगी।"

    इसमें कहा गया कि महिला को बच्चे को जन्म देने के लिए प्रेरित करना होगा और ऐसा प्रसव नवजात शिशु के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है, क्योंकि यह समय से पहले प्रसव होगा।

    इसमें कहा गया,

    "यह मां के भविष्य के गर्भधारण के लिए भी हानिकारक हो सकता है।"

    अदालत ने आगे कहा कि यह मामला उन दिशानिर्देशों के अंतर्गत नहीं आता जो केवल बलात्कार की शिकार नाबालिग लड़कियों के मामले में या भ्रूण में जन्मजात असामान्यताएं होने पर 24 सप्ताह से अधिक की प्रेग्नेंसी को मेडिकल रूप से टर्मिनेट करने की अनुमति देते हैं।

    अदालत ने कहा,

    "चूंकि वर्तमान मामला किसी भी श्रेणी में नहीं आता है, इसलिए यह अदालत भ्रूण हत्या के याचिकाकर्ता की प्रार्थना को स्वीकार करने के इच्छुक नहीं है।"

    महिला का मामला था कि गर्भधारण करने से उसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान होगा। उसने आगे कहा कि वह स्टूडेंट है, अविवाहित है और उसके पास आय का कोई स्रोत नहीं है। साथ ही यह भी कहा कि प्रेग्नेंसी जारी रखने से उसे सामाजिक कलंक और उत्पीड़न का सामना करना पड़ेगा, जिससे उसका करियर और भविष्य खतरे में पड़ जाएगा।

    याचिका खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि प्रेग्नेंसी को समय से पहले टर्मिनेट करने या बच्चे को जन्म देने की मांग वाली प्रार्थना स्वीकार नहीं की जा सकती, क्योंकि महिला का मामला मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट और नियमों के दायरे में नहीं आता।

    अदालत ने कहा,

    “यदि याचिकाकर्ता प्रसव और भविष्य की कार्रवाई के लिए एम्स से संपर्क करना चाहता है तो याचिकाकर्ता के लिए एम्स से संपर्क करना हमेशा खुला है। इस न्यायालय को यकीन है कि एम्स, प्रमुख संस्थान होने के नाते उसकी गर्भावस्था के संबंध में सभी सुविधाएं प्रदान करेगा और याचिकाकर्ता को सलाह देगा।”

    इसमें कहा गया कि यदि महिला नवजात बच्चे को गोद लेने की इच्छुक है तो वह केंद्र सरकार से संपर्क करने के लिए स्वतंत्र होगी, जो यह सुनिश्चित करेगी कि गोद लेने की प्रक्रिया जल्द से जल्द और सुचारू रूप से हो।

    याचिकाकर्ता के वकील: डॉ. अमित मिश्रा।

    प्रतिवादियों के वकील: निधि रमन, सीजीएससी, प्रिया मिश्रा, जीपी और सचिन दुबे, आर-1 के वकील; महक नाकरा, एएससी (सी) जीएनसीटीडी के साथ अभिषेक खारी और दिशा चौधरी।

    केस टाइटल: एस बनाम भारत संघ और अन्य।

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