दिल्ली हाईकोर्ट ने जामिया मिलिया इस्लामिया के जामिया शिक्षक संघ को भंग करने का आदेश रद्द किया, इसे मौलिक अधिकारों का हनन बताया

Shahadat

30 Oct 2025 10:32 AM IST

  • दिल्ली हाईकोर्ट ने जामिया मिलिया इस्लामिया के जामिया शिक्षक संघ को भंग करने का आदेश रद्द किया, इसे मौलिक अधिकारों का हनन बताया

    दिल्ली हाईकोर्ट ने जामिया मिलिया इस्लामिया द्वारा जारी दो कार्यालय आदेशों और परामर्श रद्द कर दिया है, जिसमें जामिया शिक्षक संघ (JTA) को भंग कर दिया गया। JTA, वर्ष 1967 में गठित विश्वविद्यालय शिक्षकों का एक स्वायत्त निकाय है। इसके सदस्यों द्वारा निर्वाचित एक कार्यकारी समिति द्वारा संचालित है।

    जस्टिस सचिन दत्ता ने पाया कि विश्वविद्यालय का यह कदम संविधान के अनुच्छेद 19(1)(सी) के तहत जेटीए के स्वशासन के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।

    अनुच्छेद 19(1)(सी) में संघ बनाने और चलाने का अधिकार शामिल है।

    हालांकि, विश्वविद्यालय ने JTA के आगामी चुनावों को रद्द कर दिया और नवंबर, 2022 में "संस्थागत अनुशासन" और "वैधानिक मानदंडों के अनुरूप" होने का हवाला देते हुए संघ को भंग कर दिया था।

    JMI ने तर्क दिया कि JTA संविधान को विश्वविद्यालय के किसी भी वैधानिक प्राधिकरण द्वारा औपचारिक रूप से मान्यता नहीं दी गई। जामिया मिलिया इस्लामिया अधिनियम, 1988 की धारा 23(जे) का हवाला देते हुए यह दावा किया गया कि विश्वविद्यालय के पास शिक्षकों और कर्मचारियों के संघों की स्थापना, मान्यता, विनियमन और यदि आवश्यक हो तो उन्हें भंग करने का अधिकार है।

    इसमें अधिनियम की धारा 6(xxiv) का भी हवाला दिया गया, जो विश्वविद्यालय को "ऐसे सभी अन्य कार्य और कार्य करने का अधिकार देती है, जो विश्वविद्यालय के सभी या किसी भी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आवश्यक, प्रासंगिक या सहायक हो सकते हैं"।

    हालांकि, हाईकोर्ट ने अनुच्छेद 19(1)(सी) में निहित संवैधानिक गारंटी के तहत JTA के आंतरिक मामलों में अनुमेय हस्तक्षेप की सीमा का आकलन किया और कहा,

    "प्रतिवादी विश्वविद्यालय की विवादित कार्रवाई/कार्रवाइयों में भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(4) में उल्लिखित किसी भी आवश्यकता का हवाला नहीं दिया गया, बल्कि उक्त कार्रवाई प्रशासनिक प्रकृति की प्रतीत होती है, जिसका किसी वैध नियामक उद्देश्य से कोई तर्कसंगत संबंध नहीं है।"

    न्यायालय ने यह भी कहा कि JMI का धारा 6(xxiv) पर भरोसा करना अनुचित था, क्योंकि इस प्रावधान के तहत शक्तियों का प्रयोग संवैधानिक ढांचे और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप ही किया जाना चाहिए।

    न्यायालय ने कहा,

    "धारा 6(xxiv) का इस्तेमाल याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकारों को दरकिनार करने या निरस्त करने के लिए नहीं किया जा सकता।"

    JMI ने दावा किया कि कुलपति द्वारा गठित समिति की सिफारिशों के अनुसार, एसोसिएशन के कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए जेटीए के लिए संशोधित संविधान तैयार किया गया।

    हालांकि, हाईकोर्ट का मानना ​​था कि JTA के लिए संशोधित संविधान का ऐसा "एकतरफा" निर्माण और अनुमोदन, उसके सदस्यों से परामर्श या सहमति के बिना एसोसिएशन की स्वायत्तता को कमजोर करता है।

    प्रतिवादी का यह तर्क कि JTA संविधान का अनुच्छेद 1, जिसमें कहा गया कि एसोसिएशन जामिया मिलिया इस्लामिया अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार स्थापित है, JTA को अनिवार्य रूप से विश्वविद्यालय की मान्यता और नियंत्रण के अधीन करता है, भी टिकने योग्य नहीं है। JMI Act, 1988 का ऐसा संदर्भ केवल एसोसिएशन के गठन के लिए वैधानिक पृष्ठभूमि को स्वीकार करता है। इसका अर्थ विश्वविद्यालय के नियामक नियंत्रण के अधीन होना नहीं है, न्यायालय ने कहा और विवादित आदेशों को रद्द कर दिया।

    Case title: Jamia Teachers Association v. Jamia Millia Islamia

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