आप इस तरह के प्रतिबंध नहीं लगा सकते: दिल्ली हाईकोर्ट ने परीक्षा के बाद चर्चाओं पर प्रतिबंध के खिलाफ जनहित याचिका पर SSC से जवाब मांगा
Amir Ahmad
8 Oct 2025 4:04 PM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को कर्मचारी चयन आयोग (SSC) द्वारा जारी अधिसूचना को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पहले से आयोजित SSC परीक्षा के प्रश्नपत्रों पर चर्चा विश्लेषण या प्रसार पर रोक लगाई गई।
चीफ जस्टिस डीके उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग और SSC के माध्यम से भारत संघ से जवाब मांगा और मामले की सुनवाई नवंबर में निर्धारित की।
यह याचिका पेशे से इंजीनियर विकास कुमार मिश्रा द्वारा दायर की गई, जिनके पास सिविल क्षेत्र में बी-टेक की डिग्री है।
यह याचिका एडवोकेट सुरेश सिसोदिया और सुशांत डोगरा के माध्यम से दायर की गई।
8 सितंबर को जारी अधिसूचना के अनुसार सभी सामग्री निर्माताओं, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और व्यक्तियों को चेतावनी दी गई कि वे किसी भी तरह से SSC परीक्षा के प्रश्नपत्रों या उनकी सामग्री पर चर्चा विश्लेषण या प्रसार में शामिल न हों।
अदालत ने कहा कि किसी भी उल्लंघन पर सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) अधिनियम 2024 के तहत कड़ी दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील ने दलील दी कि संबंधित अधिसूचना के खिलाफ शिकायत केवल इस हद तक है कि यह पहले से आयोजित SSC परीक्षा के प्रश्नपत्रों पर चर्चा या प्रसार पर रोक लगाती है।
अदालत के अनुरोध पर कोर्ट रूम में मौजूद एक वकील ने प्रतिवादियों की ओर से नोटिस स्वीकार कर लिया।
चीफ जस्टिस ने टिप्पणी की,
“कृपया देखें आप क्या करते हैं। आप ऐसा नोटिस कैसे जारी कर सकते हैं। परीक्षा हॉल से बाहर आने के बाद स्कूल के दिनों में हम सबसे पहले प्रश्नपत्रों पर चर्चा करते थे। यह क्या है इस अधिसूचना के तहत प्रतिबंधित ऐसी कोई भी चीज़ (अधिनियम की) धारा 3 के किसी भी खंड में नहीं आती।"
जज ने आगे कहा,
“आप इस तरह के गैग ऑर्डर नहीं दे सकते। ऐसा क्या है कि आप प्रश्नपत्रों पर चर्चा नहीं कर सकते।"
याचिका में कहा गया कि यह अधिसूचना SSC द्वारा पहले ही आयोजित की जा चुकी परीक्षा के प्रश्नपत्रों पर चर्चा विश्लेषण और प्रसार पर अनुचित प्रतिबंध लगाने का प्रयास करती है।
याचिका में आगे कहा गया कि याचिकाकर्ता ने 14 सितंबर को कथित मनमानी अधिसूचना के खिलाफ अधिकारियों को औपचारिक रूप से ज्ञापन दिया लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।
याचिका में कहा गया,
"उक्त अधिसूचना कानून के स्थापित सिद्धांतों के विपरीत पारित की गई। इसलिए इसे रद्द किया जाना चाहिए। इसके अलावा उक्त अधिसूचना सीधे तौर पर भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 में प्रदत्त अभिव्यक्ति के मूल अधिकार का उल्लंघन करती है, क्योंकि यह प्रतिवादी संख्या 2 द्वारा पहले ही आयोजित की जा चुकी परीक्षा पर चर्चा को अनुचित रूप से प्रतिबंधित करती है। इसलिए इसे न्याय और समता के हित में रद्द किया जाना चाहिए और असंवैधानिक घोषित किया जाना चाहिए।"
याचिका में आगे कहा गया कि सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) अधिनियम, 2024 के प्रावधानों का उद्देश्य परीक्षा आयोजित होने के बाद परीक्षा पर चर्चा और विश्लेषण करने वालों को दंडित करना नहीं था।
याचिका में कहा गया,
"यह अधिनियम की धारा 3 के तहत परिभाषित अनुचित साधनों के दायरे में नहीं आता है।"

