दिल्ली की हवा आपातकाल जैसी: हाईकोर्ट ने केंद्र से एयर प्यूरीफायर पर लगी अस्थायी GST राहत पर विचार करने को कहा
Amir Ahmad
24 Dec 2025 4:22 PM IST

दिल्ली में गंभीर वायु प्रदूषण को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को कड़ी टिप्पणी करते हुए इसे आपातकालीन स्थिति करार दिया और केंद्र सरकार से एयर प्यूरीफायर पर वस्तु एवं सेवा कर (GST) में अस्थायी राहत देने पर विचार करने को कहा।
कोर्ट ने कहा कि कम से कम अस्थायी तौर पर एक सप्ताह या एक महीने के लिए GST में छूट दी जानी चाहिए।
चीफ जस्टिस डी.के. उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की खंडपीठ एयर प्यूरीफायर को मेडिकल डिवाइस घोषित करने और उन पर लगने वाले 18 प्रतिशत GST को हटाने की मांग वाली जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने इस बात पर नाराजगी जताई कि अब तक इस मुद्दे पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
जस्टिस गेडेला ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा,
“कम से कम एयर प्यूरीफायर तो उपलब्ध कराइए। यही न्यूनतम है, जो आप कर सकते हैं। इसे आपातकालीन स्थिति मानिए और अस्थायी तौर पर GST में छूट दीजिए। हम दिन में करीब 21,000 बार सांस लेते हैं। जरा सोचिए, हर सांस के साथ हमारे फेफड़ों को कितना नुकसान हो रहा है।”
कोर्ट ने केंद्र सरकार के वकील को निर्देश दिया कि वह GST परिषद से संबंधित निर्देश लेकर आएं और यह बताए कि परिषद की बैठक कब प्रस्तावित है।
मामले को अनुपालन के लिए अवकाशकालीन पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने का संकेत भी दिया गया।
अगली सुनवाई के लिए मामला दोपहर 2:30 बजे तक स्थगित कर दिया गया।
यह याचिका एडवोकेट कपिल मदान द्वारा दायर की गई, जिनका प्रतिनिधित्व सीनियर एडवोकेट अरविंद नायर कर रहे हैं।
याचिका में कहा गया कि अत्यधिक प्रदूषण की स्थिति में एयर प्यूरीफायर किसी भी तरह से विलासिता की वस्तु नहीं, बल्कि स्वास्थ्य की अनिवार्य आवश्यकता हैं।
याचिकाकर्ता का तर्क है कि एयर प्यूरीफायर, ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट के तहत जारी अधिसूचना के अनुसार 'मेडिकल डिवाइस' की श्रेणी में आते हैं, क्योंकि वे हानिकारक कणों को छानकर रोगों की रोकथाम में मदद करते हैं।
याचिका में यह भी कहा गया कि एक ओर कई मेडिकल डिवाइस पर 5 प्रतिशत GST लगाया जाता है, जबकि समान रूप से स्वास्थ्य-सुरक्षा का कार्य करने वाले एयर प्यूरीफायर पर 18 प्रतिशत GST लगाना मनमाना और असंवैधानिक है।
याचिका के अनुसार यह वर्गीकरण न तो वैज्ञानिक आधार पर उचित है और न ही जनस्वास्थ्य के उद्देश्यों से मेल खाता है। इसलिए इस पर न्यायिक हस्तक्षेप आवश्यक है।

