"क्या 'धोखा' शब्द का इस्तेमाल कर सकते हैं?" — डाबर की याचिका पर पतंजलि के च्यवनप्राश विज्ञापन पर दिल्ली हाईकोर्ट का सवाल

Praveen Mishra

6 Nov 2025 2:34 PM IST

  • क्या धोखा शब्द का इस्तेमाल कर सकते हैं? — डाबर की याचिका पर पतंजलि के च्यवनप्राश विज्ञापन पर दिल्ली हाईकोर्ट का सवाल

    दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को पतंजलि आयुर्वेद से उसके उस टीवी विज्ञापन पर सवाल किया जिसमें उसने अपने अलावा बाकी सभी च्यवनप्राश उत्पादों को “धोखा” कहा है।

    जस्टिस तेजस कारिया ने टिप्पणी की कि जहां अन्य च्यवनप्राश उत्पादों को “साधारण” या “कमतर” कहना विज्ञापन की छूट के दायरे में आ सकता है, वहीं उन्हें “धोखा” कहना अपमानजनक (disparaging) नहीं माना जाएगा क्या? अदालत ने इस मामले में डाबर इंडिया लिमिटेड द्वारा दाखिल अंतरिम निषेधाज्ञा (interim injunction) याचिका पर आदेश सुरक्षित रख लिया।

    डाबर इंडिया ने पतंजलि के 25 सेकंड के टीवी विज्ञापन “51 जड़ी-बूटियाँ, 1 सच – पतंजलि च्यवनप्राश!” को चुनौती दी थी। विज्ञापन में एक महिला पात्र बच्चे को च्यवनप्राश खिलाते हुए कहती है — “चलो धोखा खाओ,” जिसके बाद योग गुरु बाबा रामदेव कहते हैं — “अधिकांश लोग च्यवनप्राश के नाम पर धोखा खा रहे हैं।”

    डाबर की ओर से सीनियर एडवोकेट संदीप सेठी ने तर्क दिया कि “चलो धोखा खाओ” जैसे शब्द स्पष्ट रूप से अपमानजनक हैं, खासकर जब डाबर का च्यवनप्राश बाजार में 60% से अधिक हिस्सेदारी रखता है। उन्होंने कहा कि च्यवनप्राश एक आयुर्वेदिक औषधि है जो ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट के तहत निर्धारित शास्त्रों और संघटक नियमों के अनुसार बनाई जाती है, और इस प्रकार सभी उत्पाद लाइसेंसशुदा हैं। ऐसे में सभी निर्माताओं को “धोखा” कहना पूरे उद्योग का अपमान है।

    सेठी ने यह भी कहा कि पतंजलि ने केवल अपने उत्पाद को श्रेष्ठ दिखाने के लिए अन्य सभी ब्रांडों को धोखा बताकर बदनाम किया है। उन्होंने तर्क दिया कि अगर पतंजलि को किसी विशेष ब्रांड से समस्या थी, तो उसे उसका नाम लेना चाहिए था।

    दूसरी ओर, पतंजलि की ओर से सीनियर एडवोकेट राजीव नायर ने कहा कि यह विज्ञापन उनके पिछले प्रचार का विस्तार है और “धोखा” शब्द का प्रयोग केवल यह दिखाने के लिए किया गया कि पतंजलि का च्यवनप्राश सबसे बेहतर है, बाकी “साधारण” हैं।

    इस पर जस्टिस कारिया ने कहा, “साधारण और धोखा दो अलग बातें हैं। आप सभी अन्य च्यवनप्राश उत्पादों को 'धोखा' कह रहे हैं, जो एक नकारात्मक शब्द है और इसका अर्थ 'फ्रॉड' होता है। आप उत्पाद को साधारण कह सकते हैं, लेकिन उसे धोखा नहीं कह सकते।”

    नायर ने जवाब दिया कि पतंजलि का आशय अन्य उत्पादों को नकली या जाली बताने का नहीं, बल्कि यह दिखाने का है कि वे अप्रभावी या कमतर हैं। उन्होंने कहा कि “धोखा” शब्द यहां “साधारण” का ही रूपक है और यह तुलनात्मक प्रचार (puffery) है, जो विज्ञापन में स्वीकार्य है।

    जस्टिस कारिया ने कहा कि विज्ञापन में अभिव्यक्ति का तरीका महत्वपूर्ण है। “आप तुलना किए बिना सभी को धोखा कह रहे हैं। साधारण और धोखा में अंतर है — कोई 'कमतर' हो सकता है, लेकिन उसे 'फ्रॉड' नहीं कहा जा सकता।”

    दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने डाबर की अंतरिम राहत याचिका पर आदेश सुरक्षित रख लिया।

    इससे पहले, एकल न्यायाधीश ने जुलाई 2024 में डाबर की याचिका आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए पतंजलि को अपने विज्ञापन से “Why settle for ordinary Chyawanprash made with 40 herbs?” और “जिनको आयुर्वेद और वेदों का ज्ञान नहीं...” जैसी पंक्तियाँ हटाने का निर्देश दिया था। बाद में, डिवीजन बेंच ने पतंजलि की अपील निपटाते हुए यह निर्देश दिया कि “40 जड़ी-बूटियों से बने च्यवनप्राश” का संदर्भ भी हटाया जाए।

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