पैरोल के लिए एक साल की सजा की शर्त अनिवार्य नहीं, SLP दाखिल करने पर मिल सकती है छूट: दिल्ली हाईकोर्ट

Praveen Mishra

19 Nov 2025 9:25 AM IST

  • पैरोल के लिए एक साल की सजा की शर्त अनिवार्य नहीं, SLP दाखिल करने पर मिल सकती है छूट: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि दिल्ली जेल नियमावली के तहत पैरोल के लिए निर्धारित न्यूनतम एक वर्ष की कैद की शर्त बिल्कुल कठोर नहीं है और विशेष परिस्थितियों में इसे ढीला किया जा सकता है। ऐसे मामलों में, जब नियमों का सख़्त पालन किसी कैदी के मौलिक या वैधानिक अधिकारों को बाधित कर दे, यह शर्त लागू नहीं होगी।

    जस्टिस रविंद्र दुदेजा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में दोषसिद्धि के खिलाफ SLP (विशेष अनुमति याचिका) दायर करना ऐसी ही एक 'विशेष परिस्थिति' है, जिसके लिए नियमों में लचीलेपन की आवश्यकता है।

    यह आदेश उस व्यक्ति की याचिका पर दिया गया, जो डकैती के एक मामले में दोषी ठहराया गया था और उसे चार साल के कठोर कारावास की सज़ा सुनाई गई थी। उसकी अपील हाईकोर्ट ने 30 जून को खारिज कर दी थी। वह सुप्रीम कोर्ट में SLP दाखिल करने और अपने परिवार से मिलने के लिए चार सप्ताह की पैरोल मांग रहा था।

    उसके वकील का तर्क था कि दिल्ली जेल नियमावली, 2018 के नियम 1210(I) में एक वर्ष की कैद पूर्ण करने की शर्त किसी कैदी के मौलिक अधिकार—खासतौर पर उसके कानूनी उपचार के अधिकार—पर हावी नहीं हो सकती। इसलिए SLP दाखिल करना 'विशेष परिस्थिति' के दायरे में आता है।

    जस्टिस दुदेजा ने एक सप्ताह की पैरोल देते हुए कहा:

    “नियम 1210(I) में एक वर्ष की अवधि की शर्त किसी भी स्थिति में याचिकाकर्ता के न्याय तक पहुँच के संवैधानिक अधिकार पर हावी नहीं हो सकती। नियम को अनुच्छेद 21 के साथ सामंजस्यपूर्ण तरीके से पढ़ा जाना चाहिए ताकि प्रक्रियात्मक औपचारिकताएँ वास्तविक अधिकारों को बाधित न करें।”

    अदालत ने कहा कि नागरिक का यह अधिकार है कि वह देश की सर्वोच्च अदालत में अपनी अपील अपने चयनित वकील के माध्यम से प्रभावी रूप से प्रस्तुत कर सके। यह मूल्यवान अधिकार केवल इस आधार पर नहीं छीना जा सकता कि—

    • कैदी का पिछला आचरण सही नहीं रहा,

    • या जेल से भी SLP दायर की जा सकती है,

    • या मुफ्त कानूनी सहायता उपलब्ध है।

    हाईकोर्ट ने यह भी ध्यान दिया कि कैदी ने अब तक न तो पैरोल ली थी और न ही फरलो, उसका आचरण संतोषजनक रहा है और उसे किसी तरह की जेल सजा नहीं मिली है। लंबे समय की कैद से उसके परिवारिक जीवन और मानसिक–शारीरिक स्थिति पर भी असर पड़ा होगा।

    हालाँकि अदालत ने साफ किया कि यह आदेश मामले की विशिष्ट परिस्थितियों के आधार पर दिया गया है और इसे आम तौर पर नियम 1210(I) में शिथिलता का उदाहरण नहीं माना जाना चाहिए।

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