दिल्ली हाईकोर्ट ने यौन उत्पीड़न की कथित साजिश के बाद बर्खास्त किए गए CISF अधिकारी को बहाल करने का आदेश दिया

Shahadat

11 Oct 2024 7:13 PM IST

  • दिल्ली हाईकोर्ट ने यौन उत्पीड़न की कथित साजिश के बाद बर्खास्त किए गए CISF अधिकारी को बहाल करने का आदेश दिया

    जस्टिस रेखा पल्ली और जस्टिस शालिंदर कौर की दिल्ली हाईकोर्ट की खंडपीठ ने केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) के उप-निरीक्षक (SI) सतीश कुमार को बहाल करने का आदेश दिया, क्योंकि पाया गया कि यौन उत्पीड़न के मामले में महिला कांस्टेबल के साथ साजिश रचने के आरोपों के बाद उनकी बर्खास्तगी अनुचित थी। मामले के अनूठे तथ्यों के कारण अदालत ने विभागीय जांच में प्रस्तुत साक्ष्य का पुनर्मूल्यांकन किया, जहां कुमार के खिलाफ मुख्य आरोप एक सीनियर अधिकारी से जुड़ा था, जिसे खुद यौन दुराचार के लिए दंडित किया गया।

    मामले की पृष्ठभूमि

    सतीश कुमार 1999 से CISF में सेवारत थे। विवाद सितंबर 2006 में शुरू हुआ, जब सहायक कमांडेंट (AC) C.L. गंजीर पर महिला कांस्टेबल मिसेज दास ने आरोप लगाया कि जब उसका पति बाहर था तो उसने उसके क्वार्टर में उसका यौन उत्पीड़न करने का प्रयास किया। कुमार ने अन्य CISF कर्मियों के साथ मिलकर मिसेज दास की मदद के लिए की गई पुकार का जवाब दिया और पुलिस के आने तक गंजीर को रोके रखा। घटना के बाद गंजीर को निलंबित कर दिया गया। अंततः जांच की गई, जिसके परिणामस्वरूप मिसेज दास से छेड़छाड़ करने के प्रयास के लिए उसे अनिवार्य रिटायरमेंट दी गई।

    हालांकि, प्रतिशोध में गंजीर ने कुमार, मिसेज दास और अन्य पर उसे झूठा फंसाने की साजिश रचने का आरोप लगाया। परिणामस्वरूप, कुमार, मिसेज दास और अन्य कर्मियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की गई। कुमार को 2010 में सेवा से बर्खास्त कर दिया गया, जबकि मिसेज दास को भी बर्खास्त कर दिया गया, लेकिन बाद में 2014 में गुवाहाटी हाईकोर्ट द्वारा उन्हें बहाल कर दिया गया। बाद में कुमार ने संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत दिल्ली हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की, जिसमें उनकी बर्खास्तगी रद्द करने और सभी परिणामी लाभों के साथ उन्हें बहाल करने की मांग की गई।

    याचिकाकर्ता के तर्क

    कुमार के वकील हिमांशु बजाज ने तर्क दिया कि कुमार के खिलाफ साजिश और कदाचार के आरोप पूरी तरह से मनगढ़ंत थे। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कुमार घटना के दौरान केवल मिसेज दास की सहायता के लिए आए थे। आरोप गंजीर द्वारा उनके कदाचार को उजागर करने में शामिल लोगों को दंडित करने की प्रतिशोधात्मक रणनीति का हिस्सा थे। बजाज ने आगे कहा कि गंजीर के खिलाफ मिसेज दास के यौन उत्पीड़न के दावों को एक अलग जांच में बरकरार रखा गया, जिसके कारण गंजीर को अनिवार्य रिटायरमेंट दी गई थी। इसलिए मामले में उनकी संलिप्तता के लिए कुमार को बर्खास्त करना अन्यायपूर्ण था। बजाज ने यह भी बताया कि कुमार को संबंधित आपराधिक कार्यवाही में बरी कर दिया गया, जिसमें गंजीर को गलत तरीके से बंधक बनाने और चोट पहुंचाने के आरोप शामिल थे। इसके अलावा, गुवाहाटी हाईकोर्ट द्वारा मिसेज दास की बहाली से पता चला कि साजिश के आरोप झूठे थे।

    प्रतिवादियों का बचाव

    रिपु दमन भारद्वाज द्वारा प्रतिनिधित्व किए गए प्रतिवादियों ने कहा कि भले ही मिसेज दास की बहाली के कारण साजिश के आरोप को नजरअंदाज कर दिया गया हो, फिर भी कुमार गंजीर के साथ दुर्व्यवहार करने का दोषी है। प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि विभागीय जांच के दौरान स्वतंत्र गवाहों ने गवाही दी, जो इस दावे की पुष्टि करते हैं कि कुमार ने गंजीर के हाथों को रस्सी से बांधा था, जिसे ड्यूटी के दौरान अनुचित व्यवहार माना गया।

    अदालत का तर्क

    सबसे पहले, अदालत ने सामान्य सिद्धांत स्वीकार करते हुए शुरुआत की कि अदालतों को विभागीय जांच में प्रस्तुत साक्ष्य का पुनर्मूल्यांकन नहीं करना चाहिए, जब तक कि ऐसा करने के लिए बाध्यकारी कारण न हों। हालांकि, इस मामले में अजीबोगरीब तथ्य - अर्थात्, कुमार के खिलाफ मुख्य आरोप सीनियर अधिकारी गंजीर से जुड़ा था, जिसे खुद यौन दुराचार के लिए अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त किया गया- ने अदालत को सबूतों की फिर से जांच करने के लिए प्रेरित किया। उक्त स्थिति को देखते हुए अदालत ने पाया कि निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए जांच के निष्कर्षों पर करीब से नज़र डालना ज़रूरी है।

    दूसरे, अदालत ने पाया कि कुछ गवाहों के बयानों से यह साबित नहीं होता कि कुमार ने कोई गंभीर दुराचार किया। जबकि एक गवाह ने कुमार से गंजीर के हाथ बांधने के लिए कहा था, अदालत ने नोट किया कि कुमार ऐसा करने के लिए अनिच्छुक था। उसने केवल दूसरे गवाह द्वारा दबाव डाले जाने के बाद ही ऐसा किया था।

    अदालत ने इस बात पर जोर दिया,

    "याचिकाकर्ता को सीनियर अधिकारी, अर्थात् एसी सी.एल. गंजीर के हाथों लेडी कांस्टेबल दास की सहायता करने के लिए दंडित नहीं किया जा सकता।"

    इस बात का कोई सबूत नहीं था कि कुमार ने गंजीर के साथ मारपीट की या कोई हिंसात्मक कृत्य किया था।

    तीसरा, न्यायालय ने मिसेज दास के मामले (डब्ल्यू.पी.(सी) नंबर 6403/2011) में गुवाहाटी हाईकोर्ट के निर्णय का हवाला दिया, जिसमें पाया गया कि मिसेज दास यौन उत्पीड़न की शिकार थीं और उनकी बर्खास्तगी रद्द कर दी। गुवाहाटी हाईकोर्ट ने नोट किया कि मिसेज दास के आचरण की विभागीय जांच गंजीर को बचाने और उसे साजिश का शिकार बताने के प्रयास से प्रभावित हुई थी।

    दिल्ली हाईकोर्ट ने सहमति व्यक्त की कि कुमार पर भी इसी तरह के विचार लागू होते हैं, क्योंकि उन्हें उसी दोषपूर्ण तर्क के आधार पर बर्खास्त किया गया, जिसका उद्देश्य गंजीर को बचाना था। चौथा, न्यायालय ने कुमार को आपराधिक मुकदमे में बरी किए जाने को उनकी बेगुनाही के एक और सबूत के रूप में इंगित किया। असम के उत्तरी लखीमपुर की निचली अदालत ने मई 2014 में कुमार को गलत तरीके से बंधक बनाने और चोट पहुंचाने के आरोपों से बरी कर दिया था, क्योंकि गंजीर के आरोपों में कोई दम नहीं पाया गया था।

    इस प्रकार, दिल्ली हाईकोर्ट ने सतीश कुमार के खिलाफ बर्खास्तगी आदेश रद्द किया और उन्हें सभी परिणामी लाभों, जिसमें संभावित सीनियरिटी और पदोन्नति शामिल है, के साथ बहाल करने का निर्देश दिया। हालांकि, यह देखते हुए कि कुमार ने अपनी बर्खास्तगी के बाद से कोई सेवा नहीं दी, अदालत ने उनके बकाया वेतन को 75% तक सीमित कर दिया। अदालत ने CISF को छह सप्ताह के भीतर बहाली प्रक्रिया पूरी करने का निर्देश दिया।

    केस टाइटल: सतीश कुमार बनाम भारत संघ और अन्य

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