दिल्ली हाईकोर्ट ने केस ट्रांसफर आवेदनों पर निर्णय लेने के लिए ट्रायल कोर्ट के जजों के लिए दिशा-निर्देश जारी किए

Shahadat

29 May 2024 5:54 AM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट ने केस ट्रांसफर आवेदनों पर निर्णय लेने के लिए ट्रायल कोर्ट के जजों के लिए दिशा-निर्देश जारी किए

    दिल्ली हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी में प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीशों द्वारा उनके समक्ष दायर केस ट्रांसफर आवेदनों पर विचार करते समय अपनाए जाने वाले दिशा-निर्देश जारी किए।

    जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने निर्देश दिया कि संबंधित जजों की टिप्पणियां, जिनसे पक्षपात के आधार पर केस ट्रांसफर करने की मांग की जा रही है, अनिवार्य रूप से बुलाई जाएंगी।

    न्यायालय ने कहा कि केस ट्रांसफर आवेदन पर उक्त टिप्पणियों पर विचार करने और पक्षपात की वास्तविक आशंका के सिद्धांतों के आलोक में निर्णय लिया जाना चाहिए।

    न्यायालय ने कहा,

    "ऐसे आवेदनों पर निर्णय लेते समय विचाराधीन परिस्थितियों के बारे में अन्य सिद्धांतों को भी ध्यान में रखा जाएगा।"

    जस्टिस शर्मा ने भूषण स्टील मनी लॉन्ड्रिंग मामले को एक जज से दूसरे जज को ट्रांसफर करने का ट्रायल कोर्ट का आदेश खारिज करते हुए यह आदेश पारित किया, जब आरोपी ने आरोप लगाया कि जज ने यह टिप्पणी की कि "ED मामलों में कौन-सी बेल होती है?"

    न्यायालय ने कहा कि स्टाफ और जज के बीच के रिश्ते को गोपनीय माना जाना चाहिए और इसे वादियों या वकीलों द्वारा जांच का विषय नहीं बनना चाहिए।

    न्यायालय ने आगे कहा,

    “इस न्यायालय का यह भी दृढ़ मत है कि भारत में सभी न्यायालयों की अदालती कार्यवाही, जिसकी आजकल व्यापक रूप से रिपोर्टिंग की जाती है, जिसमें बार और बेंच के बीच सुंदर बातचीत करने वाले लोग भी शामिल हैं, जो एक-दूसरे के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध रखते हैं, उसको किसी भी हमले से बचाया जाना चाहिए।”

    इसने यह भी कहा कि किसी जज और उसके न्यायालय के कर्मचारियों के बीच केवल सुनी गई बातचीत के आधार पर आरोप लगाने की अनुमति देना और इस आधार पर मामलों को एक आपराधिक न्यायालय से दूसरे में ट्रांसफर करना इस गरिमा को कम करेगा और संपूर्ण न्यायपालिका की अखंडता को खतरे में डालेगा।

    न्यायालय ने केस ट्रांसफर आदेश के खिलाफ ED की याचिका का निपटारा करते हुए कहा,

    “किसी भी सबूत के अभाव में ऐसी आशंकाओं पर विचार नहीं किया जा सकता।”

    कार्यवाही के ट्रांसफर की मांग करने वाला आवेदन आरोपी अजय एस. मित्तल द्वारा दिया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि जब उनकी जमानत याचिका जज के समक्ष लंबित थी तो उनकी पत्नी ने, जब वकील कोर्ट रूम से बाहर निकले, तो जज को यह कहते हुए सुना कि “लेने दो तारीखें, ED मामलों में कौन-सी जमानत होती है।”

    केस टाइटल: ED बनाम अजय एस मित्तल

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