महिला वकील से बलात्कार केस वापस लेने के दबाव के आरोप में दो न्यायिक अधिकारियों पर जांच के आदेश: दिल्ली हाईकोर्ट

Amir Ahmad

8 Nov 2025 1:20 PM IST

  • महिला वकील से बलात्कार केस वापस लेने के दबाव के आरोप में दो न्यायिक अधिकारियों पर जांच के आदेश: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने दो न्यायिक अधिकारियों के खिलाफ प्रशासनिक जांच के आदेश दिए हैं जिन पर आरोप है कि उन्होंने एक महिला वकील को बलात्कार के मामले में अपनी शिकायत वापस लेने के लिए प्रभावित करने और दबाव डालने की कोशिश की।

    जस्टिस अमित महाजन ने यह आदेश उस समय पारित किया जब अदालत ने सीनियर वकील को दी गई अग्रिम जमानत को रद्द कर दिया, जिस पर 27 वर्षीय महिला वकील से बलात्कार का आरोप है।

    अदालत की टिप्पणी

    जस्टिस महाजन ने कहा,

    “अदालत यह भलीभांति जानती है कि इस मामले में शामिल व्यक्तियों की प्रकृति को देखते हुए सावधानीपूर्वक आगे बढ़ना आवश्यक है। फिर भी न्यायिक अधिकारियों की संलिप्तता के आरोपों से अदालत स्तब्ध है। ये आरोप आपराधिक न्याय प्रणाली के प्रति गहरी असम्मान की भावना को दर्शाते हैं।”

    मामले का विवरण

    FIR के अनुसार पीड़िता ने आरोप लगाया कि वह 51 वर्षीय आरोपी वकील के घर एक पार्टी में गई, जहां उसने जबरन शारीरिक संबंध बनाए। आरोपी ने उसे यह कहकर विवाह का आश्वासन दिया कि वह विधुर है। उसने यह भी आरोप लगाया कि आरोपी ने भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल करते हुए संबंध बनाए रखे और इस दौरान वह गर्भवती भी हो गई।

    महिला ने आगे आरोप लगाया कि आरोपी के कुछ न्यायिक अधिकारियों से करीबी संबंध थे और इन अधिकारियों ने FRI दर्ज होने से पहले और बाद में भी उससे संपर्क कर मामले को प्रभावित करने की कोशिश की।

    उसके वकील ने अदालत को बताया कि FIR दर्ज होने के बाद एक जज ने पीड़िता से संपर्क किया और उसे मेडिकल परीक्षण न कराने की सलाह दी।

    उन्होंने दावा किया कि उस जज ने उसे समझौते के लिए 30 लाख की राशि की पेशकश की और कहा कि यह रकम उसके लिए अलग रखी गई।

    वकील ने बताया कि संबंधित जज ने पीड़िता से यह भी कहा कि वह अपने बयान को नरम करे ताकि आरोपी को राहत मिल सके और ऐसा करने पर उसे अतिरिक्त मुआवजा दिया जाएगा।

    महिला ने आरोप लगाया कि एक अन्य जज ने भी उससे कहा कि वह अपने आरोप वापस ले ले और अदालत में यह कहे कि FIR गलती से दर्ज हो गई। उसने यह भी दावा किया कि उस जज ने उसे आरोपी की अग्रिम जमानत सुनवाई के दौरान विरोध न करने के लिए कहा था।

    अदालत ने कहा,

    “सबसे गंभीर आरोप यह है कि दो न्यायिक अधिकारियों ने आरोपी के कहने पर पीड़िता को केस कमजोर करने के लिए प्रभावित करने का प्रयास किया। रिकॉर्ड की गई बातचीत में 30 लाख नकद की पेशकश और नौकरी देने का जिक्र स्पष्ट रूप से सामने आता है।”

    जस्टिस महाजन ने यह भी कहा कि दूसरे जज के साथ हुई बातचीत में कोई स्पष्ट आर्थिक प्रस्ताव या समझौते का दबाव दिखाई नहीं देता बल्कि वह एक सामान्य बातचीत जैसी प्रतीत होती है।

    अदालत ने यह माना कि ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई अग्रिम जमानत में कोई कानूनी खामी नहीं थी लेकिन प्रस्तुत ऑडियो रिकॉर्डिंग्स से यह प्रतीत होता है कि पीड़िता को 30 लाख की पेशकश कर केस प्रभावित करने की कोशिश की गई।

    अदालत ने आरोपी की अग्रिम जमानत रद्द करते हुए उसे एक सप्ताह के भीतर ट्रायल कोर्ट के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया।

    अंत में जस्टिस महाजन ने कहा,

    “पीड़िता से संपर्क में रहे संबंधित न्यायिक अधिकारियों के आचरण पर प्रशासनिक जांच आवश्यक है। अतः निर्देश दिया जाता है कि इस संबंध में कानून के अनुसार उचित कार्रवाई की जाए।”

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