ई-कॉमर्स डिलीवरी राइडर्स द्वारा यातायात उल्लंघन का आरोप लगाने वाली याचिका पर हाईकोर्ट ने केंद्र और दिल्ली सरकार से मांगा जवाब

Amir Ahmad

17 July 2025 12:21 PM IST

  • दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के डिलीवरी कर्मियों द्वारा यातायात उल्लंघन का आरोप लगाने वाली जनहित याचिका पर केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार से जवाब मांगा।

    चीफ जस्टिस डी.के. उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय दिल्ली सरकार के परिवहन विभाग और दिल्ली पुलिस को अपने जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया और मामले की सुनवाई 8 अक्टूबर के लिए सूचीबद्ध की।

    यह जनहित याचिका वकील शशांक श्री त्रिपाठी ने दायर की। उन्होंने आरोप लगाया कि राष्ट्रीय राजधानी में संचालित विभिन्न ई-कॉमर्स, खाद्य और सेवा प्लेटफॉर्म द्वारा नियोजित डिलीवरी कर्मियों द्वारा मोटर वाहन अधिनियम, 1988 और केंद्रीय मोटर वाहन नियम, 1989 का व्यापक निरंतर और अनियंत्रित उल्लंघन किया जा रहा है।

    याचिका में प्रतिवादी कंपनियां अर्बनक्लैप, ज़ोमैटो, स्विगी, अमेज़न, ज़ेप्टो, फ्लिपकार्ट, डोमिनोज़, मैकडॉनल्ड्स, बिगबास्केट और पोर्टर हैं।

    सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार के वकील ने अदालत को बताया कि जनहित याचिका में उठाए गए मुद्दों के समाधान के लिए 21 नवंबर, 2023 को दिल्ली मोटर वाहन एग्रीगेटर और डिलीवरी सेवा प्रदाता योजना, 2023 शीर्षक से एक नीति तैयार की गई है और अधिसूचित की गई।

    अदालत ने दिल्ली सरकार से नीति और रिकॉर्ड पेश करने को कहा। साथ ही अदालत ने अधिकारियों से उक्त नीति के संदर्भ में उनके द्वारा की गई कार्रवाई का संकेत देने को कहा है।

    याचिका में कहा गया कि यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा व्यवस्थित और खतरनाक परिवहन प्रथाओं पर तुरंत अंकुश लगाया जाए और सड़क सुरक्षा और वाहन अनुपालन से संबंधित वैधानिक दायित्वों का सख्ती से पालन किया जाए।

    कहा गया,

    "यह लगातार देखा गया है कि प्रतिवादी नंबर 4 से 13 द्वारा नियोजित या अनुबंधित डिलीवरी कर्मचारी नियमित रूप से बड़े आकार के भारी और अत्यधिक भारी सामान जैसे औद्योगिक टूलकिट, फोल्डेबल फ़र्नीचर और व्यावसायिक आकार के डिलीवरी बॉक्स के परिवहन के लिए दोपहिया वाहनों का उपयोग कर रहे हैं। ये सामान अक्सर भारतीय यातायात नियमों के तहत स्वीकार्य आयाम और भार सीमा से अधिक होते हैं, वाहनों की स्थिरता से समझौता करते हैं, सवारों की दृष्टि में बाधा डालते हैं और सार्वजनिक सुरक्षा को खतरे में डालते हैं।"

    इसके अलावा याचिका में यह भी कहा गया कि कंपनियों और अधिकारियों को क्रमशः विभिन्न नोटिस और अभ्यावेदन लिखे गए लेकिन उनका जवाब या तो पूरी तरह से अनुपस्थित रहा या पूरी तरह से अपर्याप्त रहा।

    इसके अतिरिक्त कहा गया कि शहरी भारत में डिलीवरी पारिस्थितिकी तंत्र को ऐसे नियामक शून्य में विकसित होने की अनुमति नहीं दी जा सकती, जो डिलीवरी कर्मचारियों, यात्रियों और पैदल चलने वालों सभी के जीवन को खतरे में डालता है।

    यही नही कहा गया कि इसलिए याचिकाकर्ता प्रतिवादियों को कानून का पालन करने लागू करने योग्य डिलीवरी सुरक्षा मानकों को अपनाने और यह सुनिश्चित करने के लिए तत्काल निर्देश देने का अनुरोध करता है कि उनके परिचालन मॉडल वैधानिक परिवहन सीमाओं के नियमित उल्लंघन को प्रोत्साहित या अनिवार्य न करें।

    केस टाइटल: शशांक श्री त्रिपाठी बनाम भारत संघ एवं अन्य

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