जज को ₹50,000 रिश्वत देने के मामले में दिल्ली पुलिस कर्मी की सजा बरकरार, दो आरोपियों को हाईकोर्ट ने बरी किया
Praveen Mishra
24 Nov 2025 5:51 PM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में वर्ष 2021 की उस सजा को बरकरार रखा है, जिसमें दिल्ली पुलिस के पूर्व एएसआई तारा दत्त को तिस हज़ारी कोर्ट के एक जज को ₹50,000 रिश्वत की पेशकश करने का दोषी ठहराया गया था। यह रिश्वत कथित रूप से सह–अभियुक्त मुकुल कुमार को दिल्ली जिला न्यायालयों में चपरासी की नौकरी दिलाने के लिए दी जा रही थी।
हालाँकि, जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने तारा दत्त को आपराधिक साज़िश (धारा 120B IPC) के आरोप से बरी कर दिया।
इसके साथ ही मुकुल कुमार और उसके पिता रमेश कुमार को भी आरोपों से मुक्त कर दिया गया।
राउज एवेन्यू कोर्ट ने तीनों को पहले भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, धारा 12 और धारा 120B IPC के तहत दोषी ठहराकर तीन वर्ष की सजा सुनाई थी।
अभियोजन पक्ष का मामला
अभियोजन के अनुसार, तारा दत्त और सह–अभियुक्तों का सामान्य उद्देश्य तिस हज़ारी अदालत के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश चंद्रशेखर—जो चपरासी भर्ती समिति के सदस्य थे—को रिश्वत देकर मुकुल कुमार के पक्ष में अनुचित लाभ हासिल करना था।
तारा दत्त ने “SECRET” लिखे हुए एक लिफाफे में ₹50,000 नकद और मुकुल के रोल नंबर की फोटोकॉपी रखकर कोर्ट के नैब के माध्यम से जज चंद्रशेखर तक पहुँचाने की कोशिश की। जज ने उन्हें मिलने से मना कर दिया था, जिसके बाद लिफाफा नैब को देते हुए कहा गया कि “जज साहब इसकी सामग्री देखकर समझ जाएँगे।”
हाईकोर्ट की कठोर टिप्पणियाँ
अपील पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि यह मामला फिर एक बार दिखाता है कि देश में भ्रष्टाचार कितनी गहराई से फैला हुआ है—“एक ऐसी बीमारी जो लोगों में यह भ्रम पैदा करती है कि पैसा देकर कुछ भी खरीदा जा सकता है।”
अदालत ने कहा कि भले ही देश ने 1947 में विदेशी शासन से स्वतंत्रता पाई, लेकिन “भ्रष्टाचार के पंजों से स्वतंत्रता आज तक हासिल नहीं कर पाया है।”
साज़िश का आरोप सिद्ध नहीं
हाईकोर्ट ने पाया कि अभियोजन यह साबित ही नहीं कर पाया कि तारा दत्त की मुकुल और रमेश कुमार के साथ कोई साज़िश थी। इसलिए IPC की धारा 120B के तहत दोषसिद्धि टिक नहीं सकती और तीनों को इस आरोप से बरी कर दिया गया।
PC Act के तहत दोषसिद्धि कायम
धन–लालच के अपराध में अदालत ने पाया कि सबूत स्पष्ट रूप से साबित करते हैं कि तारा दत्त ने ही ₹50,000 वाला पैकेट हेड कांस्टेबल सुरेंद्र कुमार के जरिए जज तक पहुँचाया था।
लिफाफे में मौजूद राशि और इंटरव्यू लेटर की कॉपी इस बात का पर्याप्त प्रमाण था कि पैसा मुकुल कुमार को इंटरव्यू में फायदा पहुँचाने के लिए दिया जा रहा था।
तारा दत्त की ओर से यह तर्क दिया गया कि लिफाफे पर “SECRET” किसने लिखा—यह साबित नहीं हुआ, पर अदालत ने कहा:
“यह दलील निरर्थक है… सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि लिफाफा किसने दिया। और यह तथ्य तारा दत्त के खिलाफ संदेह से परे साबित हो चुका है।”
इस प्रकार, हाईकोर्ट ने तारा दत्त की धारा 12 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दोषसिद्धि को बरकरार रखा, जबकि धारा 120B IPC के तहत उन्हें बरी कर दिया।
मुकुल कुमार और रमेश कुमार को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया गया क्योंकि उनके खिलाफ कोई अपराध सिद्ध नहीं हुआ।

