दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र से शस्त्र लाइसेंस के लिए दायर याचिका पर निर्णय लेने को कहा

Shahadat

19 July 2025 5:06 AM

  • दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र से शस्त्र लाइसेंस के लिए दायर याचिका पर निर्णय लेने को कहा

    दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में एक पूर्व NIA जज द्वारा दायर याचिका को बंद कर दिया, जिसमें केंद्र और दिल्ली पुलिस को व्यक्तिगत सुरक्षा के आधार पर उन्हें शस्त्र लाइसेंस जारी करने का निर्देश देने की मांग की गई थी।

    त्रिपुरा के इस न्यायिक अधिकारी ने नवंबर 2023 में लाइसेंस के लिए आवेदन किया, लेकिन उन्होंने तर्क दिया कि आवेदन पर आज तक कोई निर्णय नहीं लिया गया, जो शस्त्र लाइसेंस प्राधिकरण के 'लापरवाह' रवैये को दर्शाता है।

    याचिकाकर्ता ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) के स्पेशल जज सहित कई संवेदनशील पदों पर कार्य किया है, जो आतंकवाद, राष्ट्रीय सुरक्षा और अन्य गंभीर अपराधों से संबंधित महत्वपूर्ण अपराधों से संबंधित है। याचिका में कहा गया कि याचिकाकर्ता और उनके परिवार को जान का खतरा अत्यधिक है, क्योंकि उन्होंने त्रिपुरा में NIA कोर्ट के स्पेशल जज के रूप में कार्य किया है, जो आतंकवादियों की बढ़ती संख्या से निपटने वाले सबसे संवेदनशील भौगोलिक क्षेत्रों में से एक है।

    जज वर्तमान में दिल्ली में प्रतिनियुक्त हैं। उन्होंने कहा कि यह बेहद चौंकाने वाला है कि उन्हें और उनके परिवार को संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदत्त उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हुए बिना किसी सुरक्षा के रहने पर मजबूर किया जा रहा है।

    याचिका में आगे कहा गया,

    "याचिकाकर्ता और उनके परिवार की राजधानी दिल्ली में भय के साथ रहने और यात्रा करने की स्वतंत्रता की सीमित भावना ही याचिकाकर्ता द्वारा शस्त्र लाइसेंस के लिए आवेदन करने का एकमात्र उद्देश्य है...याचिकाकर्ता को किसी भी बाहरी आपराधिक खतरे और संभावित जोखिम से मुक्त होना चाहिए और उसकी मुक्त आवाजाही में कोई हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए और यदि किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप या खतरे का प्रश्न उठता है तो वह अपना बचाव करने में सक्षम होना चाहिए।"

    सरकार की ओर से उपस्थित वकील ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता के आवेदन पर चार सप्ताह के भीतर आवश्यक निर्णय लिया जाएगा।

    यह सुनकर न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता की शिकायत का निपटारा हो चुका है। तदनुसार, याचिका का निपटारा कर दिया।

    Case title: Ravi Dahiya v. Union of India

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