दिल्ली हाईकोर्ट ने POCSO मामले में व्यक्ति को बरी किया, कहा- बिना सबूत के 'शारीरिक संबंध' का आरोप बलात्कार की पुष्टि नहीं करता
Shahadat
20 Oct 2025 7:21 PM IST

POCSO मामले में एक व्यक्ति को बरी करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि बिना किसी सबूत के केवल "शारीरिक संबंध" शब्द का प्रयोग बलात्कार या गंभीर यौन उत्पीड़न की पुष्टि के लिए पर्याप्त नहीं है।
जस्टिस मनोज कुमार ओहरी ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण मामला है, जहां पीड़िता के माता-पिता ने बार-बार कहा कि "शारीरिक संबंध" स्थापित हुए, लेकिन इस अभिव्यक्ति का क्या अर्थ था, यह स्पष्ट नहीं था।
कोर्ट ने कहा,
"इस मामले के विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों में बिना किसी सबूत के "शारीरिक संबंध" शब्द का प्रयोग यह मानने के लिए पर्याप्त नहीं होगा कि अभियोजन पक्ष अपराध को संदेह से परे साबित करने में सक्षम रहा है। IPC की धारा 376 और POCSO Act की धारा 6 के तहत अपीलकर्ता की दोषसिद्धि टिकने योग्य नहीं है।"
जज ने दोषी की उस याचिका को स्वीकार कर लिया, जिसमें उसने IPC की धारा 376 और POCSO Act की धारा 6 के तहत अपनी दोषसिद्धि को चुनौती दी थी। उसने 10 साल के कठोर कारावास की अपनी सजा को भी चुनौती दी थी।
यह मामला 2023 में दर्ज किया गया। पीड़िता का आरोप था कि 2014 में दोषी, जो उसका चचेरा भाई है, उसने शादी का झांसा देकर उसके साथ एक साल से ज़्यादा समय तक यौन संबंध बनाए।
याचिका स्वीकार करते हुए अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष का मामला केवल मौखिक साक्ष्य पर आधारित है, जो पीड़िता और उसके माता-पिता की गवाही है और रिकॉर्ड में कोई फोरेंसिक साक्ष्य नहीं है।
जस्टिस ओहरी ने कहा कि "शारीरिक संबंध" शब्द का प्रयोग या परिभाषा IPC या POCSO Act के तहत नहीं की गई। अदालत ने कहा कि यह स्पष्ट नहीं किया गया कि पीड़िता का "शारीरिक संबंध" शब्द से क्या आशय था और क्या यह प्रवेशात्मक यौन हमला।
अदालत ने कहा,
“यदि ऐसा प्रतीत होता है कि बाल गवाह की गवाही में आवश्यक विवरणों का अभाव है तो कोर्ट का यह वैधानिक कर्तव्य है कि वह प्रासंगिक तथ्यों का उचित प्रमाण प्राप्त करने के लिए कुछ प्रश्न पूछे और पहले बाल पीड़ित की गवाही देने की क्षमता के बारे में स्वयं को संतुष्ट करे और उसके बाद यह सुनिश्चित करे कि पूरी गवाही रिकॉर्ड पर दर्ज हो।”
इसमें यह भी कहा गया कि यदि अभियोजन पक्ष अपेक्षित तरीके से अपना काम नहीं कर रहा है तो कोर्ट मूकदर्शक नहीं रह सकता और उसे मुकदमे में सहभागी भूमिका निभानी होगी।
यह भी देखा गया कि कोर्ट को मूकदर्शक न रहते हुए भी यह सुनिश्चित करना होगा कि कमज़ोर गवाह प्रक्रिया से अभिभूत न हों और संबंधित दिशानिर्देशों का उनकी वास्तविक भावना के अनुसार पालन किया जाए।
अदालत ने दोषी को रिहा करने का आदेश देते हुए निष्कर्ष निकाला,
“वर्तमान मामले में बाल पीड़ित या उसके माता-पिता की गवाही से पता चलता है कि बार-बार कहा गया कि “शारीरिक संबंध” स्थापित किए गए। हालांकि, “शारीरिक संबंध” शब्द का क्या अर्थ था, इस बारे में कोई स्पष्टता नहीं है। कथित कृत्य का कोई और विवरण नहीं दिया गया। दुर्भाग्य से अभियोजन पक्ष या ट्रायल कोर्ट द्वारा पीड़ित से कोई प्रश्न नहीं पूछा गया, जिससे यह स्पष्टता मिल सके कि अपीलकर्ता पर लगाए गए अपराध के आवश्यक तत्व सिद्ध हुए हैं या नहीं।"
Title: RAHUL @ BHUPINDER VERMA v. STATE (NCT OF DELHI)

