कैश फॉर क्वेरी प्रकरण : लोकपाल द्वारा CBI को मंज़ूरी के खिलाफ महुआ मोइत्रा की याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने आदेश सुरक्षित रखा, अंतरिम राहत नहीं

Amir Ahmad

21 Nov 2025 4:43 PM IST

  • कैश फॉर क्वेरी प्रकरण : लोकपाल द्वारा CBI को मंज़ूरी के खिलाफ महुआ मोइत्रा की याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने आदेश सुरक्षित रखा, अंतरिम राहत नहीं

    दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को तृणमूल कांग्रेस (TMC) सांसद महुआ मोइत्रा द्वारा दायर उस याचिका पर आदेश सुरक्षित रख लिया, जिसमें उन्होंने लोकपाल द्वारा CBI को चार्जशीट दाखिल करने की मंज़ूरी देने के आदेश को चुनौती दी है। हालाँकि अदालत ने अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया।

    जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने कहा कि सभी पक्षों की दलीलें सुन ली गई हैं और निर्णय सुरक्षित रखा जा रहा है।

    अदालत ने यह निर्णय मोइत्रा CBI और शिकायतकर्ता निशिकांत दुबे की ओर से विस्तृत बहस सुनने के बाद लिया।

    महुआ मोइत्रा की ओर से सीनियर एडवोकेट निधेश गुप्ता ने दलील दी कि लोकपाल ने लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम 2013 में निर्धारित प्रक्रिया का उल्लंघन किया है। उन्होंने कहा कि धारा 20(7) के अनुसार लोकपाल को आरोपी लोकसेवक की टिप्पणियाँ प्राप्त करना अनिवार्य है लेकिन लोकपाल ने उनके द्वारा प्रस्तुत सामग्री देखे बिना ही मंज़ूरी दी।

    गुप्ता ने कहा कि इस प्रक्रिया में उनके समापन रिपोर्ट के विकल्प को सीधे नकार दिया गया। उन्होंने तर्क दिया कि लोकपाल ने यह कहते हुए धारा 20(7) के तहत उनके अधिकारों को नज़रअंदाज़ किया कि आगे धारा 20(8) में दूसरी मंज़ूरी दी जा सकती है, जबकि कानून में दूसरी मंज़ूरी का कोई प्रावधान ही नहीं है।

    इसके विपरीत CBI की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एस.वी. राजू ने कहा कि आरोपी को मौखिक सुनवाई का अधिकार नहीं है बल्कि केवल लिखित टिप्पणी देने का अधिकार होता है, जो मोइत्रा को दिया भी गया। उन्होंने कहा कि आरोपी दस्तावेज़ पेश नहीं कर सकता और केवल टिप्पणी देने का अधिकार ही सीमित रूप से उपलब्ध है।

    शिकायतकर्ता निशिकांत दुबे की ओर से पेश वकील ने दलील दी कि धारा 20 की पूरी योजना का पालन किया गया है और टिप्पणी लोकपाल के समक्ष प्रस्तुत की गई थी।

    गुप्ता ने प्रत्युत्तर में लोकपाल द्वारा पारित पांच आदेशों का हवाला देते हुए कहा कि अब तक लोकपाल ने हमेशा पूरी सामग्री देखने के बाद ही निर्णय लिया लेकिन इस मामले में केवल CBI की प्रार्थना पर विचार किया गया।

    दलीलों के बाद अदालत ने आदेश सुरक्षित रख लिया।

    महुआ मोइत्रा ने 12 नवंबर को जारी लोकपाल के आदेश को चुनौती देते हुए कहा है कि यह आदेश कानून के विपरीत है और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। उनका कहना है कि लोकपाल ने उनके पक्ष से दिए गए दस्तावेज़ों और दलीलों पर विचार ही नहीं किया और सीधे मंज़ूरी दी।

    उनकी याचिका में कहा गया कि लोकपाल का यह आदेश उसे केवल CBI रिपोर्ट की मुहर लगाने वाली संस्था में बदल देता है, जबकि लोकपाल पर यह कर्तव्य है कि वह आरोपी लोकसेवक की दलीलों पर विचार करते हुए यह तय करे कि चार्जशीट दाखिल की जाए या मामला बंद किया जाए।

    मामले की पृष्ठभूमि में महुआ मोइत्रा पर आरोप था कि उन्होंने व्यवसायी दर्शन हीरानंदानी से रिश्वत लेकर संसद में प्रश्न पूछे। उन्होंने इंटरव्यू में स्वीकार किया कि उन्होंने हीरानंदानी को अपना संसद लॉग-इन और पासवर्ड दिया था लेकिन धन लेने के आरोपों से इनकार किया। विवाद तब शुरू हुआ जब सांसद निशिकांत दुबे ने लोकसभा अध्यक्ष को शिकायत भेजकर मोइत्रा पर सवाल पूछने के लिए रिश्वत लेने का आरोप लगाया।

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