'किसी भी पद के लिए उम्मीदवारों को उनकी अस्वीकृति के पीछे उचित और सही कारण बताए जाने चाहिए': दिल्ली हाईकोर्ट

Shahadat

11 Dec 2024 9:48 AM IST

  • किसी भी पद के लिए उम्मीदवारों को उनकी अस्वीकृति के पीछे उचित और सही कारण बताए जाने चाहिए: दिल्ली हाईकोर्ट

    जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शालिंदर कौर की दिल्ली हाईकोर्ट की खंडपीठ ने पाया कि याचिकाकर्ता की नियुक्ति खारिज करते समय प्रतिवादियों को सही कारण बताना चाहिए था, यानी प्राथमिकता सूची में अंतिम प्राथमिकता में आना, बजाय इसके कि उन्हें सूचित किया जाए कि वे लिखित परीक्षा में असफल हो गए हैं। यह देखा गया कि इस तरह के मुकदमे उम्मीदवारों के साथ-साथ अदालतों पर भी बोझ डालते हैं। अगर अधिकारी सावधान रहें तो इससे बचा जा सकता है। तदनुसार, खंडपीठ ने प्रतिवादियों को सलाह दी कि वे भविष्य में उन उम्मीदवारों को बचाने के लिए सावधान रहें जो अपनी अल्प आय को देखते हुए मुकदमेबाजी का खर्च वहन करने में सक्षम नहीं हो सकते हैं।

    मामले की पृष्ठभूमि:

    28.10.2017 को अधिसूचना जारी की गई और जनवरी 2018 में 3 EME सेंटर, भोपाल में एक भर्ती रैली आयोजित की गई। याचिकाकर्ता ने रैली में भाग लिया और आवश्यकतानुसार चयन प्रक्रिया से गुजरा। चयन प्रक्रिया एक महीने तक चली और बाद में याचिकाकर्ता को सूचित किया गया कि लिखित परीक्षा में असफल होने के कारण उसका चयन नहीं हुआ है। उसे यह भी बताया गया कि उसके राज्य के लिए उपलब्ध रिक्तियों की मेरिट सूची में उसका नाम नहीं है।

    पीड़ित होकर याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    याचिकाकर्ता की दलीलें:

    याचिकाकर्ता के वकील ने दावा किया कि यह कहना गलत है कि याचिकाकर्ता परीक्षा में असफल रहा है। उन्होंने याचिकाकर्ता द्वारा दायर RTI आवेदन के बारे में न्यायालय को सूचित किया, जिसके अनुसार याचिकाकर्ता ने फिजिकल फिटनेस टेस्ट में 100 में से 100 अंक और लिखित परीक्षा में 100 में से 66 अंक प्राप्त किए। इसके अलावा, चूंकि याचिकाकर्ता के पिता एक भूतपूर्व सैनिक थे, इसलिए उन्हें 20 अंकों का बोनस भी दिया गया।

    आवेदन के उत्तर में आगे उल्लेख किया गया कि 200 के लिए कट-ऑफ अंक 176 थे, जिसे याचिकाकर्ता ने पार कर लिया। वकील ने न्यायालय को इस बारे में अवगत कराते हुए कहा कि यह असत्य है कि याचिकाकर्ता लिखित परीक्षा में असफल रहा है, क्योंकि उसने न केवल कट-ऑफ स्कोर प्राप्त किया, बल्कि उससे अधिक अंक प्राप्त किए।

    इसके अतिरिक्त, याचिकाकर्ता ने याचिकाकर्ता द्वारा दायर अन्य RTI आवेदन का उल्लेख किया। अपने उत्तर में प्रतिवादियों द्वारा यह स्वीकार किया गया कि रैली अखिल भारतीय सर्वजातीय [AIAC] रिक्तियों के लिए आयोजित की गई और भारत के किसी भी क्षेत्र के उम्मीदवार इसमें भाग ले सकते थे। उन्होंने जोर देकर कहा कि उम्मीदवारों के राज्यों के अनुसार कोई निश्चित रिक्ति का उल्लेख नहीं किया गया। इसलिए याचिकाकर्ता के राज्य के लिए कोई रिक्तियां उपलब्ध न होने के कारण मेरिट सूची में न होने के आधार पर अस्वीकृति उचित नहीं थी।

    वकील ने प्रार्थना की कि याचिकाकर्ता को सैनिक (जीडी) के पद पर नियुक्त किया जाए।

    प्रतिवादी के तर्क:

    प्रतिवादी के वकील ने प्रस्तुत किया कि रैली मूल रूप से युद्ध विधवा/विधवाओं/पूर्व सैनिकों/सैनिकों के बेटों और सेवा के अपने भाइयों/पूर्व सैनिकों के लिए थी। उन्होंने कहा कि EME सेंटर से संबंधित उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी जानी थी।

    वकील ने पांच प्राथमिकताओं का उल्लेख किया:

    1. प्राथमिकता 1 (स्वयं रेजिमेंट/कोर) (युद्ध दुर्घटना/उदारीकृत पारिवारिक पेंशन)।

    2. प्राथमिकता II (स्वयं रेजिमेंट/कोर) (दिव्यांग पेंशनभोगी/विशेष पारिवारिक पेंशनभोगी)।

    3. प्राथमिकता III (स्वयं रेजिमेंट/कोर) (सेवारत/पूर्व सैनिक)।

    4. प्राथमिकता IV (अन्य रेजिमेंट/कोर) (युद्ध दुर्घटना/उदारीकृत पारिवारिक पेंशन)।

    5. प्राथमिकता V (अन्य रेजिमेंट) (दिव्यांग पेंशनभोगी/विशेष पारिवारिक पेंशनभोगी)।

    वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता को नियुक्त नहीं किया जा सकता, क्योंकि 'प्राथमिकता' को कुल अंकों से ऊपर माना जाना था। यह कहा गया कि प्राथमिकता 'V' में आने वाला याचिकाकर्ता भूतपूर्व सैनिक का बेटा है, जो गार्ड्स रेजिमेंट से संबंधित है न कि EME से, इसलिए उसे इस पद पर भर्ती के लिए नहीं चुना जा सकता।

    उन्होंने आगे कहा कि मूल्यांकन पूरी तरह से स्वचालित था। परिणाम मूल्यांकन, डिकोडिंग, योग्यता की तैयारी और शस्त्र और सेवाओं के आवंटन [E-DMASS] सॉफ्टवेयर का उपयोग करके संकलित किया गया। इसलिए प्रतिवादी अपने दम पर परिणाम नहीं बदल सकते।

    न्यायालय के निष्कर्ष:

    न्यायालय ने इस तथ्य पर निराशा व्यक्त की कि याचिकाकर्ता को नियुक्त न किए जाने के पीछे के वास्तविक कारणों के बारे में सूचित नहीं किया गया। इसके बजाय उसे बताया गया कि वह लिखित परीक्षा में असफल हो गया। न्यायालय ने कहा कि यदि उसे पद के लिए उसकी अस्वीकृति के कारणों के बारे में समय पर सूचित किया जाता तो उसके लिए न्यायालय में जाने का कोई कारण नहीं होता।

    न्यायालय ने प्रतिवादी के इस तर्क को स्वीकार किया कि अंकों और पात्रता का मूल्यांकन पूरी तरह से स्वचालित था। इसलिए प्रतिवादी इसके साथ छेड़छाड़ नहीं कर सकते। इसने माना कि भर्ती अधिसूचना के अनुसार, भर्ती ऊपर उल्लिखित प्राथमिकता सूची के आधार पर की जानी थी। चूंकि याचिकाकर्ता प्राथमिकता सूची में अंतिम प्राथमिकता में आता है, इसलिए उसे उस पद पर नियुक्त नहीं किया जा सकता जैसा कि उसने दावा किया था।

    यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता को कोई राहत नहीं दी जा सकती, न्यायालय ने प्रतिवादियों से उम्मीदवारों को अस्वीकृति के पीछे उचित कारणों से अवगत कराने के लिए भी कहा, जिससे उनका समय बच सके।

    केस टाइटल: संदीप कुमार सिंह बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य

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