करीब 25 साल बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने CISF अधिकारी की अनिवार्य सेवानिवृत्ति रद्द की
Amir Ahmad
27 Dec 2025 5:17 PM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) के सहायक कमांडेंट की अनिवार्य सेवानिवृत्ति को लगभग 25 वर्ष बाद रद्द करते हुए कहा कि यह सख्त दंड ऐसे आरोपों पर आधारित था, जिन्हें ठोस साक्ष्यों से साबित नहीं किया जा सका। न्यायालय ने माना कि विभागीय कार्रवाई ने अधिकारी की प्रतिष्ठा को गंभीर क्षति पहुंचाई।
जस्टिस दिनेश मेहता और जस्टिस विमल कुमार यादव की खंडपीठ ने कहा कि वर्ष 2005 में यौन उत्पीड़न के आरोपों के आधार पर अधिकारी को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी गई। अब जब लगभग 25 वर्ष बीत चुके हैं और याचिकाकर्ता की आयु 72 वर्ष हो चुकी है, ऐसे में न्यायालय का कर्तव्य है कि उसकी खोई हुई प्रतिष्ठा को बहाल किया जाए।
खंडपीठ ने टिप्पणी की कि अनिवार्य सेवानिवृत्ति का आदेश पारित कर अधिकारी का सम्मान नष्ट कर दिया गया था।
न्यायालय ने रिकॉर्ड का अवलोकन करते हुए पाया कि अधिकारी को पहले ही दो प्रारंभिक जांचों में निर्दोष पाया गया, इसके बावजूद तीसरी प्रारंभिक जांच कराई गई। पीठ ने कहा कि तीसरी जांच के लिए कोई संतोषजनक कारण सामने नहीं रखा गया जबकि पहली और दूसरी जांच में आरोप निराधार पाए गए।
अदालत ने यह भी कहा कि लगाए गए आरोपों के समर्थन में कोई ठोस और विश्वसनीय साक्ष्य नहीं था। खंडपीठ के अनुसार, आरोपों की प्रकृति से ऐसा प्रतीत होता है कि मामला वास्तविक उत्पीड़न से अधिक व्यक्तिगत प्रतिशोध का परिणाम था और इसमें किसी गंभीर कदाचार का आरोप भी सामने नहीं आया।
न्यायालय ने यह भी ध्यान दिया कि अधिकारी के लंबे सेवा काल के दौरान उसके विरुद्ध किसी प्रकार का पूर्व कदाचार दर्ज नहीं था और न ही कभी कोई अन्य शिकायत सामने आई थी। ऐसे में विभाग को मामले पर निष्पक्षता से विचार करते हुए विशेष सचिव की राय के अनुरूप निर्णय लेना चाहिए था।
इन सभी तथ्यों के आधार पर दिल्ली हाईकोर्ट ने सहायक कमांडेंट की अनिवार्य सेवानिवृत्ति रद्द करते हुए कहा कि बाद में कराई गई जांचें अनावश्यक थीं और कानून की दृष्टि से उचित नहीं थीं।

