Ad-Interim Maintenance विशेष आवेदन दाखिल किए बिना भी दिया जा सकता है, यह आदेश की तारीख से देय: दिल्ली हाईकोर्ट

Avanish Pathak

2 July 2025 10:59 AM

  • Ad-Interim Maintenance विशेष आवेदन दाखिल किए बिना भी दिया जा सकता है, यह आदेश की तारीख से देय: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में अंतरिम भरण-पोषण (Interim Maintenance) और अस्‍थायी भरण-पोषण (Ad-Interim Maintenance) के बीच अंतर किया। कोर्ट ने माना कि Ad-Interim Maintenance संबंधित पक्ष की ओर से किसी विशिष्ट आवेदन दाखिल किए बिना दिया जा सकता है। साथ ही ऐसे भरण-पोषण न्यायालय की ओर से पारित आदेश की तिथि से देय है, न कि भरण-पोषण आवेदन या याचिका दाखिल करने की तिथि से।

    जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि न्यायालय Interim Maintenance के अनुदान और उसकी मात्रा के निर्धारण पर निर्णय लंबित रहने तक दावेदार की कठिनाई को कम करने के लिए उसे Ad-Interim Maintenance दे सकता है।

    न्यायालय ने माना कि Interim Maintenance कार्यवाही लंबित रहने और अंतिम निर्णय तक पीड़ित पक्ष को दिया जाने वाला भत्ता है, जैसे कि CrPC की धारा 125 या घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत। आम तौर पर इसे दोनों पक्षों द्वारा प्रस्तुत दलीलों और सामग्री पर विचार करने के बाद दिया जाता है।

    कोर्ट ने कहा कि दूसरी ओर, Ad-Interim Maintenance प्रारंभिक चरण में दिया जाने वाला एक अनंतिम भरण-पोषण है, यानि Interim Maintenance पर निर्णय लेने से पहले, आश्रित पति या पत्नी या बच्चे को हो रही तत्काल कठिनाई को कम करने के लिए से मामले पर अधिक विस्तृत विचार-विमर्श तक की अव‌धि के लिए।

    जस्टिस शर्मा ने कहा, इस प्रकार, जबकि दोनों प्रकृति में अस्थायी हैं, मुख्य अंतर अनुदान के चरण, राहत दिए जाने से पहले दी गई सुनवाई की सीमा और न्यायालय द्वारा बनाई गई प्रथम दृष्टया राय में है।

    कोर्ट ने आगे कुसुम शर्मा बनाम महिंदर कुमार शर्मा में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जिसमें यह माना गया था कि न्यायालय को पक्षों की सुनवाई के बाद Ad-Interim Maintenance देने का अधिकार है और भरण-पोषण के निष्पक्ष निर्धारण के लिए दोनों पक्षों द्वारा संपत्ति, आय और व्यय के व्यापक हलफनामे दाखिल करने के महत्व पर जोर दिया गया था।

    न्यायालय ने कहा,

    "तदनुसार, Ad-Interim Maintenance का निर्धारण करने के लिए कुसुम शर्मा बनाम महिंदर कुमार शर्मा (सुप्रा) में निर्धारित प्रक्रिया ही इस क्षेत्र को नियंत्रित करती रहेगी, क्योंकि आज तक, माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस संबंध में की गई टिप्पणियों में न तो हस्तक्षेप किया गया है और न ही उन्हें खारिज किया गया है।"

    हालांकि, जस्टिस शर्मा ने स्पष्ट किया कि Ad-Interim Maintenance हर मामले में नियमित रूप से नहीं दिया जाना चाहिए और यह एक विवेकाधीन राहत है, जिसका प्रयोग न्यायालय द्वारा केवल तभी विवेकपूर्ण तरीके से किया जाना चाहिए, जब तथ्य और परिस्थितियां इसकी मांग करती हों।

    न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला, "चूंकि Ad-Interim Maintenance का आदेश न्यायालय स्वयं पारित करता है, जो मामले की विशिष्ट परिस्थितियों के मद्देनजर अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग कर रहा है और उचित दलीलों के अभाव में, इसे अपने आदेश की तिथि से पारित करना होगा, यानि न्यायालय द्वारा अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने की तिथि से।"

    न्यायालय एक पति की याचिका पर विचार कर रहा था, जिसमें उसने पारिवारिक न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसे पत्नी द्वारा भरण-पोषण आवेदन दाखिल करने की तिथि से 6,000 रुपये प्रतिमाह का Ad-Interim Maintenance भुगतान करने का निर्देश दिया गया था। याचिका का निपटारा करते हुए न्यायालय ने माना कि पारिवारिक न्यायालय ने CrPC की धारा 125 के तहत पत्नी के Interim Maintenance आवेदन के लंबित रहने के दौरान उसे Ad-Interim Maintenance प्रदान करने में कोई त्रुटि नहीं की है। हालांकि, न्यायालय ने कहा कि आदेश की तिथि के बजाय आवेदन दाखिल करने की तिथि से ऐसा भुगतान करने का निर्देश संधारणीय नहीं है।

    न्यायालय ने कहा,

    "चूंकि Ad-Interim Maintenance एक अस्थायी राहत है, जिसे पूर्ण निर्णय के बिना प्रारंभिक चरण में दिया जाता है, इसलिए आदेश से पहले इसके भुगतान का निर्देश देना उचित नहीं होगा। इस सीमा तक, 24.05.2024 के विवादित आदेश को संशोधित करने की आवश्यकता है।"

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