उपभोक्ता आयोग ने इंश्योरेंस कंपनी को अमेरिका में कैंसर उपचार का दावा अस्वीकार करने पर ₹66.50 लाख चुकाने का आदेश दिया

Praveen Mishra

8 Dec 2025 11:54 AM IST

  • उपभोक्ता आयोग ने इंश्योरेंस कंपनी को अमेरिका में कैंसर उपचार का दावा अस्वीकार करने पर ₹66.50 लाख चुकाने का आदेश दिया

    मुंबई उपनगरीय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग ने नीवा बूपा हेल्थ इंश्योरेंस लिमिटेड को सेवा में कमी का दोषी ठहराते हुए शिकायतकर्ता को ₹66.50 लाख का भुगतान करने का आदेश दिया है। आयोग ने पाया कि बीमा कंपनी ने शिकायतकर्ता की पॉलिसी को गलत आधार पर रद्द किया और उसके बाद अमेरिका में कैंसर उपचार के लिए किए गए दावे को अवैध रूप से अस्वीकार किया। आयोग ने कहा कि गलत रद्दीकरण की वजह से शिकायतकर्ता कैशलेस सुविधा प्राप्त नहीं कर सका, इसलिए कंपनी का “कैशलेस-ओनली” आधार पर दावा ठुकराना न्यायसंगत नहीं है।

    मामले की पृष्ठभूमि

    शिकायतकर्ता आलोक राजेन्द्र बेक्टेर नीवा बूपा की हार्टबीट–फैमिली फर्स्ट प्लेटिनम पॉलिसी के तहत ₹65 लाख सम–बीमित राशि से बीमित थे। अगस्त 2018 में उन्हें कोलोरेक्टल कैंसर का निदान हुआ, जिसके बाद उन्होंने भारत और फिर अमेरिका में उपचार करवाया। बीमाकर्ता ने प्रारंभिक दावा ₹20,47,343 को “अस्थमा की पूर्व-अघोषित जानकारी” का हवाला देते हुए अस्वीकार किया और बाद में पॉलिसी रद्द कर दी।

    शिकायतकर्ता ने इस निर्णय को बीमा लोकपाल के समक्ष चुनौती दी। लोकपाल ने पॉलिसी रद्दीकरण को अवैध करार दिया और कंपनी को ₹20,47,343 की राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया, जिसे शिकायतकर्ता को जून 2020 में मिला। बाद में अमेरिका के मेमोरियल स्लोन केटरिंग कैंसर सेंटर में हुए इलाज का ₹88,34,560 का बिल प्रस्तुत किया गया, परन्तु कंपनी ने इसे यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि विदेशी उपचार केवल कैशलेस आधार पर ही मान्य है।

    दोनों पक्षों के तर्क

    शिकायतकर्ता का कहना था कि पॉलिसी में विश्व-स्तरीय उपचार का कवरेज स्पष्ट रूप से शामिल था और आवश्यक सूचनाएँ बीमा कंपनी को समय पर दे दी गई थीं। कंपनी ने कैंसर उपचार के दौरान लगातार दावे ठुकराए, जिससे उन्हें गंभीर मानसिक व आर्थिक नुकसान हुआ।

    दूसरी ओर, नीवा बूपा ने तर्क दिया कि विदेश में उपचार केवल कैशलेस व्यवस्था में कवर होता है, और शिकायतकर्ता ने प्री-ऑथराइजेशन नहीं लिया। कंपनी ने नॉन-डिस्क्लोज़र का मुद्दा भी दोहराया और दावा किया कि अस्वीकृति पॉलिसी शर्तों के अनुरूप थी।

    आयोग के मुख्य अवलोकन

    आयोग ने माना कि पॉलिसी रद्द करने का बीमा कंपनी का कदम पहले ही बीमा लोकपाल द्वारा गलत घोषित किया जा चुका था। चूँकि पॉलिसी कंपनी ने ही अवैध रूप से रद्द की थी, इसलिए शिकायतकर्ता कैशलेस सुविधा प्राप्त नहीं कर सका। ऐसे में कंपनी “कैशलेस-ओनली” का हवाला देकर दावा नहीं ठुकरा सकती थी। आयोग ने इसे स्पष्ट सेवा में कमी और अनुचित व्यापार व्यवहार करार दिया, खासकर तब जब शिकायतकर्ता जीवन-रक्षक उपचार से गुजर रहा था।

    आयोग का आदेश

    इंश्योरेंस कंपनी शिकायतकर्ता को ₹66,50,000 का दावा भुगतान करेगी।

    भुगतान 60 दिनों के भीतर किया जाए।

    समय पर भुगतान न करने पर 6% वार्षिक ब्याज लागू होगा।

    मानसिक उत्पीड़न के लिए ₹30,000, तथा विधिक खर्च के लिए ₹10,000 अतिरिक्त दिए जाएँगे।

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