क्या अति-पिछड़े वर्गों को आरक्षण देने के लिए SC/ST को उपवर्गीकृत किया जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा
Shahadat
8 Feb 2024 6:14 PM IST
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की 7-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने आरक्षण के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (SC/ST) के भीतर उपवर्गीकरण की अनुमति के मुद्दे पर 3 दिवसीय सुनवाई पूरी कर ली।
3 दिन की सुनवाई में न्यायालय ने अस्पृश्यता के सामाजिक इतिहास, संविधान निर्माताओं के दृष्टिकोण से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की धारणा भारत में आरक्षण के उद्देश्य और इसे आगे बढ़ाने में अनुच्छेद 341 के महत्व पर विचार-विमर्श किया। इसका अंतर्संबंध अनुच्छेद 15(4) और 16(4) है।
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच में जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मिथल, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा भी शामिल हैं।
पंजाब राज्य बनाम दविंदर सिंह मामले में 2020 में 5-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा मामले को 7-न्यायाधीशों की पीठ के पास भेजा गया था।
5-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि ई.वी.चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य, (2005) 1 एससीसी 394 में समन्वय पीठ के फैसले पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है, जिसमें कहा गया कि उप-वर्गीकरण की अनुमति नहीं है।
पंजाब राज्य का प्रतिनिधित्व एडिशनल एडवोकेट जनरल शादान फरासत के साथ एडवोकेट जनरल गुरमिंदर सिंह ने किया।
याचिकाकर्ताओं की ओर से कपिल सिब्बल, गोपाल शंकरनारायणन, शेखर नफाड़े, पूर्व अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल, सिद्धार्थ लूथरा, सलमान खुर्शीद सहित कई सीनियर वकीलों ने भी अपनी दलीलें दीं।
भारत के अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता आरक्षण में उपवर्गीकरण के मुद्दे का समर्थन करते हुए संघ की ओर से पेश हुए।
उत्तरदाताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट मनोज स्वरूप ने पर्याप्त दलीलें दीं, जिनका पालन सीनियर एडवोकेट संजय हेगड़े और कुछ अन्य लोगों सहित अन्य हस्तक्षेपकर्ताओं ने किया।