S. 138 NI Act | चेक रिटर्न मेमो में दोष होने से पूरी ट्रायल अमान्य नहीं होती: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने दोहराया

Amir Ahmad

10 April 2025 6:44 AM

  • S. 138 NI Act | चेक रिटर्न मेमो में दोष होने से पूरी ट्रायल अमान्य नहीं होती: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने दोहराया

    छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने दोहराया कि अगर चेक रिटर्न मेमो में कोई त्रुटि (infirmity) होती भी है तो भी धारा 138 निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 (NI Act) के तहत चल रही पूरी ट्रायल को शून्य (nullity) नहीं माना जा सकता।

    जस्टिस नरेंद्र कुमार व्यास ने अपने आदेश में यह पाया कि ट्रायल कोर्ट ने यह माना कि चेक देयता (liability) चुकाने के लिए दिए गए, न कि सुरक्षा (security) के लिए, और आरोपी इस बात को खारिज नहीं कर सका।

    कोर्ट ने स्पष्ट किया,

    "NI Act की धारा 139 के तहत वादिनी (Complainant) के पक्ष में अनुमान (Presumption) स्थापित होता है। इसलिए केवल इस आधार पर कि बैंक द्वारा चेक रिटर्न फॉरवर्डिंग मेमो में कोई मुहर या हस्ताक्षर नहीं है, यह कहना कि चेक अनादरण (dishonor) को लेकर कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता – यह निष्कर्ष गलत है।”

    कोर्ट की व्याख्या:

    कोर्ट ने समझाया कि चेक रिटर्न मेमो का उद्देश्य यह जानकारी देना होता है कि चेक किसी कारणवश भुगतान हेतु अस्वीकार कर दिया गया।

    "NI Act की धारा 146 के अनुसार भी जब चेक रिटर्न होता है तो यह माना जाता है कि चेक का अनादरण हुआ, जब तक कि इसका खंडन (disprove) न किया जाए। न ही धारा 138 और न ही धारा 146 में किसी विशेष प्रकार के चेक रिटर्न मेमो का स्वरूप निर्धारित किया गया।"

    अगर चेक रिटर्न मेमो में बैंक की मुहर या हस्ताक्षर नहीं है तो भी उसे अमान्य (invalid) या गैरकानूनी नहीं कहा जा सकता।

    कोर्ट ने कहा कि बैंकर बुक एविडेंस एक्ट, 1891 के तहत यह ऐसा दस्तावेज नहीं है, जिसे विशेष प्रमाण की आवश्यकता हो। अतः चेक रिटर्न मेमो में कोई कमी होने से पूरी ट्रायल रद्द नहीं हो सकती।

    कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के निर्णय (Guneet Bhasin v. State of NCT of Delhi & Ors.) और मद्रास हाईकोर्ट के निर्णय (India Cements Investments Services Ltd. v. T. P. Nallusamy) का हवाला भी दिया।

    मामले की पृष्ठभूमि:

    वादिनी (Tulshi Steel Traders) जो सीमेंट, ईंट और निर्माण सामग्री की आपूर्ति का कार्य करता है, ने आरोप लगाया कि आरोपी ने ₹67,470 और ₹1,70,600 की सामग्री ली थी और इस देयता को चुकाने के लिए चेक दिए।

    ये चेक पर्याप्त धनराशि न होने के कारण बाउंस हो गए, जिसके बाद वादिनी ने आरोपी को कानूनी नोटिस भेजा। लेकिन आरोपी ने न तो राशि चुकाई और न ही कोई जवाब दिया।

    ट्रायल कोर्ट ने वाद को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि चेक रिटर्न मेमो पर बैंक की मुहर और हस्ताक्षर नहीं थे। कोई बैंक अधिकारी भी पेश नहीं किया गया, जिससे धारा 146 का उल्लंघन हुआ। कोर्ट ने यह मानते हुए भी कि चेक देयता के लिए दिए गए, शिकायत खारिज कर आरोपी को बरी कर दिया।

    हाईकोर्ट का निर्णय:

    हाईकोर्ट को यह तय करना था कि क्या ट्रायल कोर्ट का चेक रिटर्न मेमो को बिना मुहर और हस्ताक्षर के आधार पर अस्वीकार करना सही था।

    कोर्ट ने कहा,

    “ट्रायल कोर्ट का यह मानना सही था कि चेक देयता के लिए दिए गए। लेकिन यह कहना कि चेक के अनादरण की कोई धारणा नहीं बनती, सिर्फ इसलिए क्योंकि मेमो पर मुहर नहीं थी – यह गलत है।”

    ट्रायल कोर्ट के आदेश की आंशिक रूप से पुष्टि करते हुए कोर्ट ने फिर से ट्रायल कोर्ट को भेजा गया ताकि यह साबित किया जा सके कि चेक बैंक में प्रस्तुत किए गए और खाते में "पर्याप्त धनराशि न होने" के कारण रिटर्न हो गए। इसके लिए बैंक अधिकारी की गवाही और बैंक रिकॉर्ड की जांच हो।

    टाइटल: Tulshi Steel Traders Propritor Pushpendra Kesharwani v. Purva Construction Propritor - Mitrabhan

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