आश्रित, सात साल बाद मृत मान लिए गए लापता कर्मचारी की सेवा समाप्ति को चुनौती दे सकता है और उसके सेवा लाभों का दावा कर सकता है: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

Shahadat

19 Oct 2025 7:12 PM IST

  • आश्रित, सात साल बाद मृत मान लिए गए लापता कर्मचारी की सेवा समाप्ति को चुनौती दे सकता है और उसके सेवा लाभों का दावा कर सकता है: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

    छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की जस्टिस संजय के. अग्रवाल और जस्टिस राधाकिशन अग्रवाल की खंडपीठ ने कहा कि किसी लापता सरकारी कर्मचारी की आश्रित पत्नी उसकी एकतरफा सेवा समाप्ति को चुनौती दे सकती है और सात साल बाद मृत मान लिए गए लापता कर्मचारी के सेवा लाभों का दावा कर सकती है।

    पृष्ठभूमि तथ्य

    प्रतिवादी का पति भिलाई इस्पात संयंत्र (BSP) की राजहरा खदान में वरिष्ठ तकनीशियन (विद्युत) के पद पर कार्यरत था। वह मानसिक रूप से बीमार था और बाद में लापता हो गया। इसलिए वह लंबे समय तक अपने कर्तव्यों से अनुपस्थित रहा। उसकी पत्नी ने 14.01.2010 को उसके लापता होने के संबंध में FIR दर्ज कराई। 18.02.2010 को स्थानीय समाचार पत्र में एक सार्वजनिक सूचना प्रकाशित की गई। स्थानीय पुलिस थाने ने औपचारिक रूप से BSP प्रबंधन को कर्मचारी के लापता होने की स्थिति के बारे में सूचित किया।

    हालांकि, BSP अधिकारियों ने 11.12.2010 को उनके खिलाफ आरोप-पत्र जारी कर दिया। उनके स्थानीय और स्थायी पतों पर नोटिस भेजे गए लेकिन वे बिना तामील हुए वापस आ गए। इसके अलावा, नोटिस कंपनी के नोटिस बोर्ड पर भी चिपका दिए गए। एक पक्षीय विभागीय जांच की गई। अनुशासनात्मक प्राधिकारी ने 17.09.2011 को आदेश पारित कर पति को सेवा से हटा दिया। उसने परिवार को कंपनी क्वार्टर खाली करने का निर्देश दिया।

    व्यथित प्रतिवादी पत्नी ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT), जबलपुर पीठ के समक्ष बर्खास्तगी के आदेश को चुनौती दी। न्यायाधिकरण ने निष्कासन आदेश रद्द कर दिया। न्यायाधिकरण ने माना कि BSP द्वारा लापता कर्मचारी के खिलाफ विभागीय जांच करना उचित नहीं था। उसने सेल/BSP को पत्नी को सभी परिणामी लाभ प्रदान करने का निर्देश दिया।

    इससे व्यथित होकर याचिकाकर्ताओं (सेल) ने रिट याचिका दायर की।

    याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि लापता कर्मचारी की पत्नी को अपने पति की मृत्यु मानकर सक्षम प्राधिकारी द्वारा औपचारिक घोषणा न किए जाने के कारण रिट याचिका दायर करने का कोई अधिकार नहीं है। आगे दलील दी गई कि केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण द्वारा आवेदन स्वीकार करने और निष्कासन आदेश रद्द करने का निर्णय अनुचित था।

    दूसरी ओर, प्रतिवादी ने दलील दी कि लापता BSP कर्मचारी की पत्नी को न्यायाधिकरण के समक्ष विषयगत आवेदन दायर करने का अधिकार है। प्रतिवादी ने तर्क दिया कि सिविल कोर्ट से औपचारिक घोषणा अनिवार्य नहीं है, क्योंकि इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि उसके पति के बारे में सात वर्षों से अधिक समय से कोई जानकारी नहीं है। आगे दलील दी गई कि लापता BSP कर्मचारी की पत्नी को केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के समक्ष आवेदन दायर करने का अधिकार है और केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण ने इसे उचित रूप से स्वीकार किया है।

    अदालत के निष्कर्ष

    अदालत के विचारणीय मुख्य प्रश्न यह था कि क्या भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 108 के आलोक में किसी व्यक्ति को मृत मानने के लिए सिविल कोर्ट द्वारा घोषणा आवश्यक है। अदालत ने यह टिप्पणी की कि धारा 108 मृत्यु की विधिक उपधारणा प्रदान करती है, जब यह सिद्ध हो जाता है कि किसी व्यक्ति के बारे में उन लोगों को सात वर्षों तक कोई सूचना नहीं मिली है, जो स्वाभाविक रूप से उससे सूचना प्राप्त कर सकते थे।

    अदालत ने रामरति कुएर बनाम द्वारिका प्रसाद सिंह एवं अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला दिया, जिसमें यह माना गया कि चूंकि गांव से गायब होने के बाद सात वर्षों से अधिक समय तक उस व्यक्ति के बारे में कोई सूचना नहीं मिली थी, इसलिए उसे मृत मान लिया जाना चाहिए। ऐसी परिस्थितियों में वादी उस संपत्ति के हकदार होंगे जिसका वह अंतिम पुरुष धारक था।

    यह भी टिप्पणी की गई कि विशिष्ट अनुतोष अधिनियम की धारा 34 के अंतर्गत औपचारिक घोषणा तब अनिवार्य नहीं है, जब उपधारणा को जन्म देने वाले तथ्य निर्विवाद हों। अदालत ने कहा कि यह निर्विवाद तथ्य है कि कर्मचारी सात वर्षों से लापता था तथा उसके बारे में कोई जानकारी नहीं थी।

    तारा देवी बनाम बैंक ऑफ इंडिया मामले में कलकत्ता हाईकोर्ट के निर्णय का हवाला दिया गया, जिसमें यह माना गया कि जब विशिष्ट तथ्य अनिश्चित या विवादित हों तो व्यक्ति की मृत्यु के समय के निर्धारण का प्रश्न उठेगा, अन्यथा नहीं। इसके अतिरिक्त, यह भी माना गया कि व्यक्ति की मृत्यु तब मानी जाएगी, जब सात वर्ष से अधिक समय तक लापता व्यक्ति का कोई पता नहीं चल पाया हो।

    अदालत ने यह भी कहा कि प्रतिवादी पत्नी लापता कर्मचारी पर आश्रित होने के कारण बर्खास्तगी को चुनौती देने का कानूनी अधिकार रखती है। अदालत ने पाया कि बर्खास्तगी का उसकी आजीविका पर सीधा प्रभाव पड़ा। अदालत ने इस बात पर ज़ोर दिया कि किसी लापता कर्मचारी के विरुद्ध एकपक्षीय जांच के माध्यम से स्वामी-सेवक संबंध को मनमाने ढंग से समाप्त नहीं किया जा सकता। यदि कोई कदाचार का मामला है तो आरोप-पत्र दाखिल करने और निर्दोषता साबित करने के लिए सुनवाई का अवसर देने के बाद ही कार्यवाही को अंतिम रूप दिया जा सकता है।

    इसके अलावा, परिणामी लाभ प्रदान करने के संबंध में अदालत ने पाया कि भारत सरकार द्वारा जारी दिनांक 28-04-2022 के कार्यालय ज्ञापन में लापता सरकारी कर्मचारियों के परिवारों को फैमिली पेंशन, ग्रेच्युटी और अवकाश नकदीकरण जैसे लाभों के भुगतान का प्रावधान है। अदालत ने माना कि यह ज्ञापन BSP पर भी लागू होता है। यह माना गया कि केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण ने पत्नी को सभी परिणामी सेवा लाभों के भुगतान का निर्देश देने में कोई त्रुटि नहीं की।

    उपरोक्त टिप्पणियों के साथ याचिकाकर्ताओं (सेल) द्वारा दायर रिट याचिका अदालत ने खारिज की।

    Case Name : Steel Authority of India Limited & Anr. vs. Vikash Kothe & Ors.

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