ड्यूटी से अनुपस्थिति के आरोपों के आधार पर कॉन्ट्रैक्ट का विस्तार न करना, उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट
Amir Ahmad
22 Jan 2025 11:34 AM IST

रोजगार सहायक की सेवाओं का विस्तार न करने से संबंधित एक मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कहा कि जब इस तरह के निर्णय के नागरिक परिणाम होते हैं और यह लापरवाही और ड्यूटी से अनुपस्थिति के आरोपों पर आधारित होता है तो इसे प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन किए बिना नहीं लिया जा सकता।
न्यायालय ने पाया कि वर्तमान मामले में प्रतिवादी प्राधिकारी-जिला पंचायत, मुंगेली, अनिवार्य प्रक्रियाओं का पालन करने में विफल रहे, जिसमें एसीआर द्वारा सेवाओं का मूल्यांकन और याचिकाकर्ता को सुनवाई का अवसर प्रदान करना शामिल था।
जस्टिस पार्थ प्रतिम साहू ने कहा,
"उपर्युक्त तथ्यों और नियम 2012 [छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (संविदा नियुक्ति) नियम, 2012] के नियम 15 के अवलोकन से यह प्रतीत होता है कि प्रतिवादियों के लिए एसीआर लिखना अनिवार्य था, जिसे कॉन्ट्रैक्ट की अवधि बढ़ाने और याचिकाकर्ता द्वारा की गई कार्यों के मूल्यांकन के लिए विचार किया जा सकता है। वर्तमान मामले में प्रतिवादियों ने रिकॉर्ड पर यह नहीं लाया कि याचिकाकर्ता को प्रत्येक वर्ष समय-समय पर ACR की कॉपी दी गई। उनकी सेवाओं का विस्तार न करने के आदेश के नागरिक परिणाम हो सकते हैं। खासकर तब जब विस्तार न करने का आधार याचिकाकर्ता के खिलाफ अपनी सेवाओं के निर्वहन में लापरवाही और सेवा से अनुपस्थित रहने के आरोप लगाना है।"
न्यायालय ने कहा,
"मामले के तथ्यों और परिस्थितियों तथा ऊपर चर्चित निर्णयों को ध्यान में रखते हुए इस न्यायालय की राय में, प्रतिवादी क्रमांक 4 (मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत, मुंगेली) ने याचिकाकर्ता को सुनवाई का अवसर दिए बिना उसकी सेवा अवधि न बढ़ाकर गलती की है। इसलिए दिनांक 12.02.2019 (अनुलग्नक पी/2) का पत्र निरस्त किया जाता है।"
याचिकाकर्ता जिसे संविदा के आधार पर रोजगार सहायक के रूप में नियुक्त किया गया, उसने समय-समय पर विस्तार के साथ 2017 तक लगातार सेवा की। वहीं बिना कोई कारण बताए 2017 में उसका कॉन्ट्रैक्ट नहीं बढ़ाया गया। याचिकाकर्ता ने विस्तार न किए जाने के संबंध में कारण पूछे, जिस पर मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत, मुंगेली (प्रतिवादी क्रमांक 4) ने उत्तर दिया कि ऐसा उसकी सेवा से कथित अनुपस्थिति के कारण किया गया। उल्लेखनीय रूप से याचिकाकर्ता को उसकी ACR की कॉपी उपलब्ध नहीं कराई गईं, जो उसके प्रदर्शन का आकलन करने और यह निर्धारित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं कि कॉन्ट्रैक्ट का नवीनीकरण किया जाना चाहिए या नहीं।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि चूंकि प्रतिकूल आधारों पर सेवा अवधि नहीं बढ़ाई गई, इसलिए इसमें दीवानी परिणाम शामिल थे। ऐसे में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन किया जाना चाहिए। इस प्रकार याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि कारण बताओ नोटिस जारी किए बिना और आरोपों का जवाब देने का अवसर दिए बिना ऐसा कोई आदेश पारित नहीं किया जा सकता था। उचित प्रक्रिया के अभाव में सेवा अवधि न बढ़ाने का आदेश अवैध था।
प्रतिवादियों ने आगे तर्क दिया कि याचिकाकर्ता को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। उसने जवाब दिया, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पर्याप्त अनुपालन था। इस प्रकार प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता के दावे टिकने योग्य नहीं थे क्योंकि आवश्यक प्रक्रिया का पालन किया गया।
न्यायालय ने पाया कि प्रतिवादी कोई ऐसा रिकॉर्ड पेश करने में विफल रहे, जो यह दर्शाता हो कि याचिकाकर्ता को निर्धारित अवधि के भीतर कारण बताओ नोटिस दिया गया। इसके अतिरिक्त याचिकाकर्ता को समाप्ति या विस्तार न करने का कोई विशिष्ट आदेश नहीं बताया गया। न्यायालय ने रेखांकित किया कि ACR की अनुपस्थिति प्रतिवादी अधिकारियों के कॉन्ट्रैक्ट को आगे न बढ़ाने के निर्णय को और अमान्य बनाती है।
याचिका स्वीकार करते हुए छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायत लोरमी, जिला मुंगेली (प्रतिवादी संख्या 3) और मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत (प्रतिवादी संख्या 4) को कानून के अनुसार उचित कदम उठाने और याचिकाकर्ता की सेवाओं को जारी रखने पर निर्णय लेने का निर्देश दिया।
केस टाइटल: देव सिंह परमार बनाम छत्तीसगढ़ राज्य एवं अन्य।