पीड़ितों को त्वरित निवारण प्रदान करने के लिए जीरो एफआईआर का प्रावधान, यह वारदात की जगह पर ध्यान दिए बगैर किसी भी पुलिस थाने में दर्ज की जा सकती हैः दिल्ली हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

3 Dec 2021 6:12 AM GMT

  • पीड़ितों को त्वरित निवारण प्रदान करने के लिए जीरो एफआईआर का प्रावधान, यह वारदात की जगह पर ध्यान दिए बगैर किसी भी पुलिस थाने में दर्ज की जा सकती हैः दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में बलात्कार के मामले में एफआईआर दर्ज करने में दिल्ली पुलिस की विफलता और मामले में जांच को अवैध रूप से दूसरे पुलिस स्टेशन में स्थानांतरित करने पर नाराजगी जाहिर की।

    जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा,

    "इस अदालत को यह दुर्भाग्यपूर्ण लगता है कि आम नागरिकों के जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा करने वाली संस्थाएं अपनी जिम्मेदारियों से बचने के लिए तत्पर हैं। यह इन जांच एजेंसियों पर आम नागरिकों के भरोसे को कमजोर करता है।"

    पीठ गाजियाबाद की एक महिला की याचिका पर विचार कर रही थी, जिसने यौन उत्पीड़न और बलात्कार आरोप लगाया था। महिला ने दिल्ली में जीटीबी एन्क्लेव पुलिस स्टेशन द्वारा जांच बहाल करने की मांग की, जिसने इसे अवैध रूप से गाजियाबाद के इंद्रपुरम पुलिस स्टेशन में स्थानांतरित कर दिया था।

    याचिकाकर्ता का मामला था कि 23 जुलाई 2019 को उसने जीटीबी एन्क्लेव पुलिस स्टेशन के अधिकार क्षेत्र सहित विभिन्न स्थानों पर 2008 से 2019 तक हुए अपने यौन उत्पीड़न और बलात्कार की विभिन्न घटनाओं का खुलासा करते हुए एक एफआईआर दर्ज कराई थी। दिल्ली पुलिस ने आरोपों पर 'जीरो एफआईआर' दर्ज कर जांच यूपी पुलिस को ट्रांसफर कर दी।

    याचिका में जीटीबी एन्क्लेव पुलिस स्टेशन को एफआईआर दर्ज करके जांच जारी रखने और इंद्रपुरम पुलिस स्टेशन से इसे वापस लेने का निर्देश देने की मांग की गई थी।

    अदालत ने शुरुआत में यह माना था कि धारा 154 सीआरपीसी के अनुसार, यदि किसी संज्ञेय अपराध के घटित होने की कोई सूचना पुलिस स्टेशन को मिलती है तो पुलिस एफआईआर दर्ज करने के लिए बाध्य है। हालांकि, यदि अपराध उक्त पुलिस स्टेशन के अधिकार क्षेत्र में नहीं होता है तो 'जीरो एफआईआर' दर्ज करने के बाद उसे उस पुलिस स्टेशन को स्थानांतरित करना होगा जहां वास्तव में अपराध किया गया है।

    कोर्ट ने कहा,

    " 'एफआईआर' और 'जीरो एफआईआर' के बीच अंतर यह है कि यदि घटना पुलिस स्टेशन के क्षेत्राधिकार के भीतर होती है तो एफआई‌आर दर्ज होती है, और जीरो एफआईआर किसी भी पुलिस स्टेशन में दर्ज कराई जा सकता है, घटना किसी भी क्षेत्र में हुई हो।"

    कोर्ट ने जोड़ा,

    " एक जीरो एफआईआर अधिक कुशल और पीड़ित को त्वरित निवारण प्रदान करने के लिए है ताकि एफआईआर दर्ज होने के बाद समय पर कार्रवाई की जा सके।"

    मौजूदा मामले में कथित अपराध पुलिस स्टेशन जीटीबी एन्क्लेव के अधिकार क्षेत्र में हुआ था।

    इसलिए, कोर्ट की राय थी कि पुलिस स्टेशन जीटीबी एन्क्लेव को एफआईआर दर्ज करने के लिए बाध्य था, न कि "जीरो एफआईआर" के लिए, और इस पर ध्यान देने की आवश्यकता नहीं थी कि याचिकाकर्ता शहर में रहता है या नहीं या कथित घटना का विशिष्ट समय, तिथि और स्थान क्या था।

    कोर्ट ने कहा,

    "जांच को गाजियाबाद, स्थानांतरित करने की कोशिश करके, जीटीबी एन्क्लेव पुलिस स्टेशन ने याचिकाकर्ता के खिलाफ हुए अपराध की गंभीरता पर ध्यान देने के अपने दायित्व का निर्वहन करने में विफलता प्रदर्शित की।"

    गौरतलब है कि दिसंबर 2012 में हुए निर्भया रेप और मर्डर केस के बाद नए आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013 में जस्टिस वर्मा कमेटी की रिपोर्ट में सिफारिश के तौर पर 'जीरो एफआईआर' का प्रावधान आया था।

    प्रावधान के अनुसार,

    "पीड़ित एक जीरो एफआईआर दर्ज करा सकती है, चाहे उनका निवास स्थान या अपराध की जगह कुछ भी हो"।

    इस प्रकार, न्यायालय का विचार था कि पुलिस स्टेशन जीटीबी एन्क्लेव के आसपास के क्षेत्र में घटना का खुलासा होना ‌ही पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज करने के लिए पर्याप्त था, न कि जीरो एफआईआर, जैसा कि मामले में किया गया।

    आदेश में कहा गया,

    "नियमित एफआईआर न दर्ज करने पर कीमती समय खर्च होता है, जिसका उपयोग जांच करने में किया जा सकता है। इससे महत्वपूर्ण सबूत नष्ट हो सकते हैं।"

    अदालत ने इंद्रपुरम पुलिस स्टेशन को मामले के दस्तावजे जीटीबी एन्क्लेव पुलिस स्टेशन को सौंपने का निर्देश देकर याचिका का निपटारा किया।



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