गलत तरीके से खून चढ़ाने से हुई मौत मेडिकल लापरवाही का मामलाः एनसीडीआरसी

Shahadat

7 Jun 2022 5:42 AM GMT

  • गलत तरीके से खून चढ़ाने से हुई मौत मेडिकल लापरवाही का मामलाः एनसीडीआरसी

    राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (National Consumer Disputes Redressal Commission-NCDRC) की जस्टिस आर.के. अग्रवाल, अध्यक्ष और डॉ. एस.एम. कांतिकर सदस्य की पीठ ने कहा कि ज्यादातर मामलों में अस्पताल के कर्मचारी गलत तरीके से खून चढ़ाने के संकेतों और लक्षणों का जवाब देने में विफल रहते हैं। इस प्रकार, इसका कारण खराब सुरक्षा प्रोटोकॉल या खराब प्रशिक्षण जितना सरल हो सकता है।

    पीठ ने कहा कि हालांकि अधिकांश अस्पतालों और सर्जिकल मेडिकल सेंटर में ब्लड स्टोरेज पर सख्त प्रक्रियाओं के तहत होता हैं, लेकिन कभी-कभी अनुचित या खराब ब्लड स्टोरेज दे दिया जाता है। ब्लड रिफ्यूजन से संबंधित सभी प्रतिकूल प्रतिक्रियाओं की तुरंत ब्लड बैंक को रिपोर्ट करना अधिक महत्वपूर्ण है।

    इस मामले में एके नज़ीर और उनकी पत्नी सजीना का समद अस्पताल, तिरुवनंतपुरम ('विपरीत पक्ष नंबर एक') में बांझपन का इलाज चल रहा था। एब्डोमिनल अल्ट्रासोनोग्राफी (यूएसजी) स्कैन में फाइब्रॉएड गर्भाशय का पता चला। सजीना की लेप्रोस्कोपिक सर्जरी हुई। डॉ. सार्थी एम. पिल्लई ('विपरीत पक्ष नंबर दो) ने ब्लड रिफ्यूजन के लिए कहा। ब्लड रिफ्यजून के बाद तुरंत रिएक्शन हुआ। यह रिफ्यूजन मिसमैच ब्लड़ के कारण हुआ था।

    ब्लड रिफ्यजून के दौरान कथित लापरवाही से व्यथित होकर, शिकायतकर्ताओं ने राज्य आयोग, केरल के समक्ष उपभोक्ता शिकायत दायर की और ब्याज सहित 45 लाख रु. चिकित्सा व्यय के लिए 4.5 लाख रुपये के मुआवजे की प्रार्थना की। राज्य आयोग ने आंशिक रूप से शिकायत की अनुमति दी और प्रतिवादी पक्ष नंबर एक और दो को शिकायतकर्ता को कुल 9,33,000/- रुपये मुआवजे का भुगतान करने का निर्देश दिया।

    राज्य आयोग ने देखा कि:

    "विपरीत पक्ष नंबर एक और दो ब्लड रिफ्यूजन को रिएक्प्रशन के बाद मानक प्रक्रियाओं का पालन करने में विफल रहे हैं। अस्पताल ब्लड बैंक को संप्रेषित करने में विफल रहा और शेष ब्लड बैग, रोगी के रक्त और मूत्र के नमूने भेजकर रिफ्यूजन रिएक्शन की जांच नहीं की। डीडब्ल्यू-2 की जिरह से स्पष्ट है कि रिफ्यजून रिएक्शन विकसित की गई और समद अस्पताल द्वारा तत्काल कोई कदम नहीं उठाया गया। केस शीट में उपचार के विवरण का भी अभाव है।"

    राज्य आयोग केरल के निर्णय से व्यथित अपीलकर्ताओं ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 19 के तहत राष्ट्रीय आयोग के समक्ष अपील दायर की।

    विश्लेषण:

    पीठ के समक्ष विचार के लिए मुद्दे:

    सबसे पहले, क्या गलत ब्लड रिफ्यूजन किया गया था, यदि हां- तो क्या अस्पताल या ब्लड बैंक उत्तरदायी है? दूसरे, यह ट्रांसफ्यूजन रिएक्शन था या डीआईसी?

    पहले प्रश्न का उत्तर देते हुए पीठ ने कहा कि इसका समर्थन डॉ. वेलेंटीना ने किया, ब्लड रिफ्यूजन रिएक्शन का संभावित कारण बेमेल रक्त आधान है। रोगी ओलिगुरिक बना रहता है। नतीजतन, एडमिशन ही यह साबित करने के लिए पर्याप्त है कि बेमेल ब्लड रोगी को दिया गया था।

    पीठ ने आगे कहा कि इसके अलावा, यह साबित करना अस्पताल का कर्तव्य है कि ब्लड बैंक से गलत ब्लड जारी किया गया था, लेकिन अपीलकर्ता इसे साबित करने में विफल रहा। राज्य आयोग का निष्कर्ष विपक्षी पक्ष नंबर एक और दो की स्पष्ट चूक को दर्शाता है, जिन्होंने बैग की संख्या, इसकी प्राप्ति या उपयोग या निपटान की तारीख दिखाते हुए आधान रजिस्टर नहीं रखा है। तदनुसार, ब्लड बैगों की पहचान या रोगियों की पहचान करने में त्रुटि की संभावना अधिक थी।

    पीठ ने कहा कि खून की थैली अस्पताल परिसर के भंडारण में रखी गई थी। यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि ब्लड बैंक से प्राप्त क्रॉस-मैचेड ब्लड को उचित समय के भीतर अधिमानतः 24 घंटे के भीतर ट्रांसफ़्यूज़ किया जाएगा। हालांकि, इसका कोई रिकॉर्ड नहीं है कि ब्लड बैंक से ब्लड कब लाया गया। नतीजतन, यह निष्कर्ष निकाला जाता है कि रोगी को गलत ब्लड दिया गया था और अस्पताल के कर्मचारी लापरवाही के लिए उत्तरदायी हैं।

    दूसरे प्रश्न का उत्तर देते हुए पीठ ने देखा कि गवाह डॉ. वैलेंटीना ने बयान दिया कि बी+ वी समूह का ब्लड रिफ्यूजन जबकि रोगी ओ+ वी था। यदि ब्लड रिफ्यूजन रिएक्शन का संदेह है तो इलाज करने वाले डॉक्टर का कर्तव्य है कि वह तुरंत रक्त के नमूने को दूसरी तरफ के अंग से और ब्लड के साथ क्रॉस-मैचिंग के लिए भेजे। हीमोग्लोबिनुरिया के लिए मूत्र की जांच की जानी चाहिए। ब्लड बैंक का यह कानूनी कर्तव्य है कि वह ब्लड बैग के पायलट सैंपल को ब्लड की समाप्ति तक रखे। ऐसा कोई सबूत नहीं है कि रक्त और मूत्र का नमूना एकत्र किया गया था।

    पीठ ने कहा कि ज्यादातर मामलों में अस्पताल के कर्मचारी ब्लड रिफ्यूजन त्रुटि के संकेतों और लक्षणों का जवाब देने में विफल रहते हैं। इस प्रकार, इसका कारण सुरक्षा प्रोटोकॉल में खराबी या खराब प्रशिक्षण जितना सरल हो सकता है। हालांकि अधिकांश अस्पतालों और सर्जरी मेडिकल सेंटर में ब्लड बैंक की सख्त प्रक्रियाएं होती हैं, लेकिन कभी-कभी अनुचित या खराब स्टोरेज ब्लड जारी किया जाता है। ब्लड रिफ्यूजन से संबंधित सभी रिएक्शन की तुरंत ब्लड बैंक को रिपोर्ट करना अधिक महत्वपूर्ण है। ब्लड रिफ्यूजन रिएक्शन और प्रतिकूल घटनाओं की जांच नैदानिक ​​टीम और अस्पताल आधान टीम द्वारा की जानी चाहिए और अस्पताल आधान समिति द्वारा समीक्षा की जानी चाहिए।

    पीठ ने पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च चंडीगढ़ बनाम जसपाल सिंह और अन्य के मामले पर भरोसा किया, जिसमें यह माना गया कि "ब्लड रिफ्यूजन में मिसमैच, जिसके परिणामस्वरूप 40 दिनों के बाद रोगी की मृत्यु हो गई, मेडिकल लापरवाही का मामला था।"

    पीठ ने कहा कि सजीना को गलत तरीके से खून चढ़ाने की गलती एक ऐसी गलती थी, जो सामान्य देखभाल करने वाले किसी अस्पताल/डॉक्टर ने नहीं की होगी। इस तरह की त्रुटि पेशेवर निर्णय की त्रुटि नहीं है, लेकिन चीजों की प्रकृति में मेडिकल लापरवाही का निश्चित उदाहरण है और अस्पताल के कर्तव्य के उल्लंघन ने उसकी मृत्यु में योगदान दिया। विपक्षी पक्ष नंबर एक और दो सेवा में कमी और मेडिकल लापरवाही के लिए उत्तरदायी हैं।

    पीठ ने कहा कि राज्य आयोग ने 9,33,000/- रुपये मुआवजे की मात्रा निर्धारित करने में गलती की, लेकिन शिकायतकर्ता बढ़े हुए मुआवजे के पात्र हैं। पीठ ने अपीलकर्ताओं को 20 लाख रुपये मुआवजा और मृतक सजीना के माता-पिता को आदेश से 6 सप्ताह के भीतर मुकदमेबाजी की लागत के लिए एक लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया।

    केस का नाम: एम/एस. समद अस्पताल बनाम एस मोहम्मद बशीर

    केस नं.: प्रथम अपील नंबर 2012 का 172

    कोरम: जस्टिस आर.के. अग्रवाल, अध्यक्ष और डॉ. एस.एम. कांतिकर, सदस्य

    निर्णय लिया गया: 25 मई, 2022

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