डिफॉल्टर द्वारा बताए गए कारणों से संतुष्ट हो तो रिट कोर्ट 'वन टाइम सेटलमेंट' योजना की समयसीमा बढ़ा सकता है: तेलंगाना हाईकोर्ट

Avanish Pathak

29 Sept 2022 2:23 PM IST

  • डिफॉल्टर द्वारा बताए गए कारणों से संतुष्ट हो तो रिट कोर्ट वन टाइम सेटलमेंट योजना की समयसीमा बढ़ा सकता है: तेलंगाना हाईकोर्ट

    तेलंगाना हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए एक रिट कोर्ट बैंक द्वारा व्यवस्थित 'वन टाइम सेटलमेंट' योजना के तहत भुगतान के लिए उल्लिखित अवधि को बढ़ा सकती है, यदि वह डिफॉल्टर द्वारा उल्लिखित परिस्थितियों से संतुष्ट है।

    जस्टिस के लक्ष्मण ने कहा,

    "मौजूदा मामले में, याचिकाकर्ता द्वारा विशेष रूप से यह तर्क दिया गया है कि वह रियल एस्टेट बिजनेस कर रहा है, COVID-19 महामारी के कारण उसे नुकसान हुआ है। हालांकि ऋण चुकाने के लिए उसने संपत्ति बेच दी और परचेज़र से धन प्राप्त किया और उसे खाते में जमा किया और ब्याज सहित पूरी ऋण राशि का भुगतान अपने 28.07.2021 के पत्र के माध्यम से किया। केवल एक दिन की देरी हुई है। इसलिए, इस न्यायालय के अनुसार याचिकाकर्ता को ऋण राशि चुकाने के लिए यह समय बढ़ाने के लिए एक उपयुक्त मामला है।"

    याचिकाकर्ता ने भारतीय स्टेट बैंक से 1.55 करोड़ रुपये की ऋण सुविधा प्राप्त की थी। रिपेमेंट में चूक के बाद याचिकाकर्ता कंपनी को एनपीए घोषित किया गया था। अक्टूबर 2020 में, बैंक ने SBI OTS 2020 योजना की घोषणा की, जिसके लिए यहां याचिकाकर्ता पात्र था।

    बैंक ने उक्त योजना के तहत याचिकाकर्ता के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और यह सहमति हुई कि याचिकाकर्ता 76,14,995 रुपये की ओटीएस राशि का भुगतान करेगा। अंतिम भुगतान 27 जुलाई, 2021 को या उससे पहले किया जाना था, जिसमें विफल रहने पर ओटीएस स्वीकृति को निष्फल किया जाना था।

    चूंकि याचिकाकर्ता उक्त तिथि को शेष किश्तों का भुगतान नहीं कर सका, बैंक ने ओटीएस योजना को रद्द कर दिया और याचिकाकर्ता से ब्याज सहित पूरी बकाया राशि चुकाने का अनुरोध किया। इससे क्षुब्ध होकर याचिकाकर्ता कंपनी ने हाईकोर्ट का रुख किया।

    याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि भुगतान करने में केवल एक दिन की देरी हुई थी। 28 जुलाई, 2021 को बकाया चुकाने के लिए एक चेक प्रस्तुत किया गया था।

    न्यायालय ने कई उदाहरणों का अवलोकन किया जिसमें सर्वसम्मति से यह माना गया कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए हाईकोर्ट के पास ओटीएस पत्र में मूल रूप से प्रदान की गई निपटान की अवधि बढ़ाने की शक्ति है।

    कोर्ट ने अनु भल्ला बनाम जिला मजिस्ट्रेट, पठानकोट को संदर्भित किया, जिसमें पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने मामले के आधार पर विचार करने के लिए कुछ दिशानिर्देश निर्धारित किए हैं ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि कोई आवेदक ओटीएस के विस्तार के लिए हकदार होगा या नहीं और उसका उल्लेख नीचे किया गया है:

    (i) निपटान में प्रदान किया गया मूल समय; (ii) निपटान के तहत या याचिका दायर करने से पहले या सेटलमेंट के तहत पहले ही जमा किए गए भुगतान की सीमा; (iii) भुगतान में देरी के कारण; (iv) निर्धारित तिथि के बाद बैंक/वित्तीय संस्थानों द्वारा स्वीकार किया गया भुगतान; (v) निपटान के तहत शेष राशि का भुगतान करने के लिए उधारकर्ता की वास्तविक मंशा; (vi) आवेदक द्वारा शेष निपटान राशि के भुगतान के लिए मांगी जा रही समयावधि; (vii) उपस्थित कारक और परिस्थितियां; (viii) आवेदक को अपूरणीय क्षति।

    उपरोक्त के मद्देनजर याचिका की अनुमति दी गई और हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि "यह अदालत भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपनी अंतर्निहित शक्तियों को लागू करके, उल्लिखित कारणों को पूरा करने पर ओटीएस के तहत सहमत राशि का भुगतान करने के लिए ऋणी को समय बढ़ा सकती है.."

    केस टाइटल: मोहम्मद अफरोज बेग बनाम भारतीय स्टेट बैंक, मुंबई, और अन्य

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