न्यायिक प्रणाली का काम बहुत धीमा, न्याय की मांग कर रहे लोगों में निराशा पैदा करता है: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

Avanish Pathak

6 Dec 2022 2:36 PM GMT

  • न्यायिक प्रणाली का काम बहुत धीमा, न्याय की मांग कर रहे लोगों में निराशा पैदा करता है: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में एक 'निष्पादन न्यायालय' के असंवेदनशील दृष्टिकोण की निंदा करते हुए कहा कि हमारी न्यायिक प्रणाली का काम बेहद धीमा और सुस्त है, जो न्याय की मांग करने वालों में निराशा पैदा करता है।

    जस्टिस एचएस मदान की पीठ अनिवार्य रूप से दीवानी विवाद से जुड़े एक मामले की सुनवाई कर रही थी, जिसमें वर्ष 2014 में अपने पक्ष में एक डिक्री प्राप्त करने के बावजूद, वादी/डिक्री-धारकों को अतिक्रमित हिस्से पर कब्जा नहीं मिल सका।

    अदालत ने कहा कि इस मामले में प्रतिवादी, ट्रायल कोर्ट के साथ-साथ प्रथम अपीलीय अदालत में मुकदमा हार जाने के बाद, एक या दूसरे बहाने से एक के बाद स्थगन प्राप्त करता रहा और सफलतापूर्वक मामले को खींचता रहा।

    मामला

    वादी ने हिसार (हरियाणा) स्थित भूमि के कब्जे की मांग करते हुए प्रतिवादियों (संख्या में 4) के खिलाफ दीवानी मुकदमा दायर किया। भूमि क‌थित रूप से प्रतिवादियों के कब्जे में थी। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद सिविल जज (जूनियर डिविजन), हांसी ने 3.7.2014 के फैसले और डिक्री के जरिए वादीगण के दावे को स्वीकार कर लिया।

    परिणामतः, प्रतिवादियों के खिलाफ दायर वाद की सुनवाई हुई और वादी प्रतिवादियों से वाद भूमि का कब्जा पाने के अधिकारी पाए गए। जिसके बाद प्रतिवादियों ने जिला न्यायाधीश, हिसार के समक्ष अपील दायर की, जिसने मई 2018 में इसे खारिज कर दिया।

    जिसके बाद, वादियों ने एक निष्पादन याचिका दायर की, जो प्रतिवादी के मामले में उपस्थित नहीं होने के कारण स्थगित होती रही, और इसलिए, दो साल बाद, अगस्त 2022 में, वादियों के पक्ष में एक पक्षीय आदेश पारित किया गया। जिसके बाद, वाद भूमि का कब्जा डिक्रीधारियों को न सौंपे जाने के संबंध में निर्णीत देनदारों की ओर से एक आवेदन दायर किया गया।

    इस बीच, प्रतिवादी संख्या एक द्वारा एक पुनरीक्षण याचिका दायर की गई थी। हाईकोर्ट के समक्ष 8.8.2022 के एक आदेश को रद्द करने की मांग की गई थी, जिसके तहत वादी के पक्ष में एक पक्षीय आदेश दिया गया था।

    निष्कर्ष

    इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि एक निष्पादन याचिका लगभग दो साल पहले दायर की गई थी, लेकिन आज तक, अतिक्रमित हिस्से का कब्जा डिक्री-धारकों को नहीं दिया जा सका, अदालत ने कहा, (यह) हमारी न्यायिक प्रणाली के बारे में बहुत कुछ कहती है, जो पीड़ादायी रूप से धीमी और सुस्त है जो न्याय की मांग करने वाले लोगों में निराशा पैदा कर रही है।

    नतीजतन, सिविल पुनरीक्षण याचिका में कोई गुण नहीं पाया गया, उसे इस उम्मीद के साथ खारिज कर दिया गया कि निष्पादन न्यायालय अपनी जिम्मेदारी का एहसास करेगा और जल्द से जल्द डिक्री को निष्पादित करेगा।

    केस टाइटल- रतन सिंह @ रतन लाल बनाम भिरवां बाई व अन्य

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