बलात्कार का प्रयास-महिला कर्मचारियों को इस तरह के आरोप लगाने के लिए साहस की जरूरत : यूपी कोर्ट ने जज को अग्रिम जमानत देने से इनकार किया

LiveLaw News Network

16 Jan 2022 1:29 PM GMT

  • बलात्कार का प्रयास-महिला कर्मचारियों को इस तरह के आरोप लगाने के लिए साहस की जरूरत : यूपी कोर्ट ने जज को अग्रिम जमानत देने से इनकार किया

    यूपी की एक कोर्ट ने एक महिला कर्मचारी के साथ बलात्कार करने के मामले में आरोपी वाणिज्यिक न्यायालय, झांसी के पीठासीन अधिकारी को अग्रिम जमानत देने से इनकार करते हुए कहा, ''एक महिला कर्मचारी को उस पीओ के खिलाफ इतनी गंभीर प्रकृति के आरोप लगाने के लिए बहुत साहस चाहिए होता है, जिसके अंतर्गत वह काम कर रही हो।''

    सत्र न्यायाधीश, झांसी ज्योत्सना शर्मा इस मामले में न्यायिक अधिकारी कौटिल्य गौड़ की अग्रिम जमानत की अर्जी पर सुनवाई कर रही थी। न्यायिक अधिकारी गौड़ के खिलाफ वर्ष 2020 में एक कर्मचारी ने भारतीय दंड संहिता की धारा 376, 511, 354ए, 354बी, 509, 323, 504,506 के तहत मामला दर्ज कराया था। यह महिला कर्मचारी आरोपी-न्यायाधीश की अदालत में काम करती थी।

    संक्षेप में तथ्य

    शिकायतकर्ता पीड़िता ने न्यायाधीश के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई और आरोप लगाया कि दिसंबर 2020 में उसे पीठासीन अधिकारी (पीओ) के चैंबर के अंदर बुलाया गया। जैसे ही वह पीओ के चैंबर में अंदर जाने लगी तो उसी समय रीडर श्रीमती शमशाद बानो पीओ के कक्ष से बाहर निकल रही थी और कह रही थी कि वह (पीड़िता) अनुकम्पा के आधार पर उक्त अदालत में कार्यरत है।

    चैंबर में प्रवेश करते ही पीओ यह कहते हुए उस पर चिल्लाया कि उसके कितने पति हैं। इस बात पर उसने बताया कि उसके पति के.के यादव (जो मुंसिफ मजिस्ट्रेट थे) की मृत्यु के बाद उसने एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश से दोबारा शादी कर ली थी और हाईकोर्ट को उसके पुनर्विवाह की सूचना पहले ही दे दी गई है।

    यह जानने के बाद पीओ ने उसकी कोई भी बात सुनने से इनकार कर दिया और उसे धमकी दी कि वह उसकी पेंशन रोकने के लिए हाईकोर्ट को पत्र लिखेगा और उसने अपशब्दों का इस्तेमाल किया। इसके बाद उसने अपने चैंबर का दरवाजा बंद कर दिया और अपनी रिवॉल्वर निकालकर उस पर तान दी।

    कथित तौर पर उसने अपना निजी अंग दिखाया और उसका मोबाइल फोन भी छीन लिया। जब महिला ने अपना फोन वापस लेने की कोशिश की तो उसने उसे टेबल पर गिरा दिया और उसके साथ बलात्कार करने की कोशिश की।

    यह भी आरोप लगाया गया कि किसी तरह वह बाहर निकलने में कामयाब रही और उसने अपने पति को सूचित किया और मोबाइल से कॉल करके पुलिस को भी बुलाया। पुलिस के आने के बाद ही चैंबर का दरवाजा खोला गया और वह बाहर आ सकी।

    दलीलें

    आरोपित अधिकारी की ओर से तर्क दिया गया कि कथित घटना के समय कमर्शियल कोर्ट के रीडर, अर्दली, स्टेनो और गनर मौजूद थे और उस समय एक मध्यस्थता मामले में सुनवाई चल रही थी।

    उन्होंने यह भी तर्क दिया कि कथित घटना के समय, स्टाफ के सदस्यों के अलावा, अधिवक्ता भी मौजूद थे और अगर उसके आरोपों में सच्चाई होती, तो उपरोक्त गवाह उसका समर्थन करते। उन्होंने यह भी दावा किया कि छुट्टी के लिए पीड़िता का आवेदन खारिज कर दिया गया था, इसलिए वह इस तरह के हथकंडे अपना रही थी।

    यह तर्क दिया गया कि शिकायतकर्ता को अपना काम नहीं आता है और वह पूरी तरह से अक्षम कर्मचारी है। पूर्व में भी कुछ न्यायाधीशों ने उसके खिलाफ लिखा था और उसकी सेवा पुस्तिका में कुछ प्रतिकूल प्रविष्टियां भी की गई थी।

    राज्य ने तर्क दिया कि प्राथमिकी की सामग्री को झूठा नहीं कहा जा सकता क्योंकि एक महिला को जिला न्यायाधीश रैंक के एक मौजूदा न्यायिक अधिकारी के खिलाफ इस तरह के आरोप लगाने के लिए बहुत साहस चाहिए।

    यह भी तर्क दिया गया कि अगर शिकायतकर्ता अपने काम में सक्षम नहीं है या यहां तक कि अगर वह अक्सर दुर्व्यवहार करती है तो भी एक पी.ओ. को इस बात का लाइसेंस नहीं मिल जाता है कि वह भी बदले में गलत व्यवहार करे।

    वहीं घटना के समय अदालत में उपस्थित अन्य स्टाफ सदस्यों से यह उम्मीद नहीं की जा सकती है कि वह अपने स्वयं के पीओ के खिलाफ बयान देंगे और एक तृतीय श्रेणी की महिला कर्मचारी का पक्ष लेंगे।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    प्राथमिकी की सामग्री को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने पाया कि आवेदक के खिलाफ लगाए गए आरोप काफी गंभीर और अत्यधिक अपमानजनक हैं।

    कोर्ट ने अग्रिम जमानत अर्जी को खारिज करते हुए कहा कि,

    ''इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, जैसा कि डीजीसी (सीआरएल) द्वारा तर्क दिया गया है कि एक महिला कर्मचारी को उसी पीओ के खिलाफ इस तरह के गंभीर प्रकृति के आरोप लगाने के लिए बहुत साहस चाहिए होता है, जिसके अंतर्गत वह काम कर रही हो।''

    कोर्ट ने यह भी नोट किया कि आरोपी की गिरफ्तारी या इसकी आशंका के संबंध में कोई ठोस तथ्य अदालत के सामने नहीं रखे गए हैं। इसलिए आरोपों की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए, कोर्ट ने उन्हें अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया।

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