पति की मृत्यु के बाद 'करेवा' विवाह करने वाली महिला नहीं है विधवा पेंशन प्राप्त करने की हकदार : पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

6 July 2020 10:30 AM GMT

  • पति की मृत्यु के बाद करेवा विवाह करने वाली महिला नहीं है विधवा पेंशन प्राप्त करने की हकदार : पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि एक महिला जो अपने पति की मृत्यु के बाद 'करेवा''(एक विधवा द्वारा पुनर्विवाह के मामले में 'करेवा या चादर अंदाजी' की जाती है। इस सेरेमनी के दौरान भविष्य में बनने वाला पति महिला के सिर पर एक सफेद चादर ड़ाल देता है) विवाह स्वीकार कर लेती है, उसके बाद वह विधवा पेंशन पाने की हकदार नहीं है क्योंकि वह अब ''निराश्रित'' नहीं है।

    न्यायमूर्ति लिसा गिल ने कहा,

    ''यह स्पष्ट है कि उक्त योजना एक ऐसी स्थिति का ध्यान रखने के लिए बनाई गई है, जिसमें अपने पति की मौत के बाद एक महिला आय के स्रोत के अभाव में ''निराश्रित'' हो जाती है।''

    इस मामले में याचिकाकर्ता सुमन को एक रिकवरी नोटिस जारी किया गया था,जिसे उसने चुनौती दी थी, जिस पर सुनवाई के बाद पीठ ने यह फैसला सुनाया है। इस नोटिस के तहत सुमन से विधवा पेंशन के रूप में दिए गए 1,82,727 रुपये वापस मांगे थे। यह राशि सुमन को 'विधवा और निराश्रित महिलाओं के लिए हरियाणा पेंशन योजना नियम 1988-1989 'के तहत दी गई थी। अब यह राशि यह कहते हुए वापस मांगी गई थी कि उसने अपने देवर के साथ विवाह /करेवा विवाह कर लिया था।

    याचिका को आंशिक तौर पर स्वीकार कर लिया गया है। इस मामले में अदालत ने रिकवरी की कार्यवाही पर रोक लगा दी है। परंतु यह भी साफ कर दिया है कि याचिकाकर्ता को विधवा पेंशन योजना के तहत भविष्य में कोई और राशि नहीं मिलेगी।

    पीठ ने कहा कि-

    '' याचिकाकर्ता अब विधवा और निराश्रित महिलाओं के लिए हरियाणा पेंशन योजना नियम 1988-1989 के तहत पेंशन पाने की हकदार नहीं है क्योंकि उसने अपने देवर के साथ करेवा विवाह कर लिया था।''

    पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील द्वारा दिए गए उस तर्क को खारिज कर दिया है,जिसमें कहा गया था कि करेवा विवाह वास्तव में विवाह नहीं है।

    पीठ ने कहा कि,

    '' यह तर्क स्पष्ट रूप से किसी भी योग्यता से रहित है और पूरी तरह से निराधार है।'' हालांकि पीठ ने सरकार को याचिकाकर्ता के पुनः विवाह के बाद उसे जारी की गई पेंशन राशि को वसूलने से रोक दिया है।"

    अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता ने संबंधित प्राधिकरण को एक पत्र लिखकर सूचित किया था कि उसने फिर से शादी कर ली है।

    अदालत ने कहा,

    ''याचिकाकर्ता ने खुद आवेदन (संलग्रक R1) दायर किया था और स्पष्ट रूप से कहा था कि वह चाहती है कि उसे मिलने वाली पेंशन को रोक दिया जाए क्योंकि उसने अपने पति की मृत्यु के तीन साल बाद करेवा विवाह कर लिया था।''

    इन परिस्थितियों में अदालत ने कहा कि प्राधिकरण इस बात की जांच करने में विफल रहा है कि याचिकाकर्ता गलत तरीके से पेंशन प्राप्त कर रही थी। ऐसे में याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई कोई प्रतिकूल कार्रवाई नहीं बनती है।

    पीठ ने कहा कि-

    '' विधवा और निराश्रित महिलाओं के लिए हरियाणा पेंशन योजना के नियम यह बताते हैं कि पेंशन पाने वालों का सत्यापन किया जाए। नियमों में यह भी प्रावधान किया गया है कि जांच समिति इस बात की भी जांच कर सकती है कि क्या कोई पेंशनभोगी अब पेंशन पाने के योग्य नहीं रहा है? यह स्पष्ट है कि उक्त जांच नहीं की गई थी। याचिकाकर्ता ने स्वयं आवेदन प्रस्तुत किया है, संलग्रक R1, जिसमें उसके करेवा विवाह का खुलासा करते हुए पेंशन बंद करने की मांग की गई थी। इन परिस्थितियों में, यह माना जाता है कि यद्यपि याचिकाकर्ता पूर्वोक्त योजना के तहत पेंशन पाने की हकदार नहीं है, लेकिन प्रतिवादी उसे पहले जारी की गई राशि को वसूलने के हकदार भी नहीं है।''

    मामले का विवरणः

    केस का शीर्षक- सुमन बनाम हरियाणा राज्य व अन्य।

    केस नंबर-सीडब्ल्यूपी नंबर 28008/2017

    कोरम- जस्टिस लिसा गिल

    प्रतिनिधित्व- वकील विनोद भारद्वाज (याचिकाकर्ता के लिए),एडीशनल एजी आशीष यादव (राज्य के लिए)

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