गवाह से यह उम्‍मीद नहीं की जा सकती कि उसकी याददाश्त पिक्चर जैसी हो, तथ्यों/बयानों में सुधार या बदलाव प्राकृतिकः पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

14 July 2020 3:24 AM GMT

  • P&H High Court Dismisses Protection Plea Of Married Woman Residing With Another Man

    Punjab & Haryana High Court

    पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा है कि आपराधिक मामले में, "किसी से आइडेटिक/ फोटोग्राफिक मेमोरी की उम्मीद नहीं की जा सकती है" और "तथ्यों मामूली बदलाव या या कथित सुधार होना स्वाभाविक है।"

    जस्टिस अनिल क्षेतरपाल ने कहा, "प्राकृतिक बदलाव होते हैं और ऐसे निक्षेपों पर सावधानीपूर्ण विश्लेषण के बाद अदालतों द्वारा विचार और भरोसा किया जाता है।"

    सिंगल बेंच उक्त टिप्‍पणी दो दोषियों - एक महिला और उसके जीजा (बहन के पति) की अपील को खारिज करते हुए की - ‌जिन पर अपनी खुद की नाबालिग बेटी के यौन उत्पीड़न का आरोप था। महिला अपने पति से अलग रहती है और आरोप ‌था कि सह-दोषी के साथ उसके अवैध संबंध थे, जिसने उसकी बेटी का यौन शोषण करने का भी प्रयास किया था। महिला का जीजा जब भी उसकी बेटी के‌ साथ छेड़छाड़ की कोशिश करता था, वह अपने जीजा का ही साथ देती थी। यहां तक कि जब बेटी इस बारे में शिकायत करती तो वह उसकी पिटाई भी करती थी।

    हाईकोर्ट के समक्ष अपील में अपीलकर्ता ने कहा था कि एफआईआर के बाद से अभियोजन पक्ष के बयानों में और फिर धारा 164 सीआरपीसी के तहत दियों बयानों में अहम बदलाव हुए हैं।

    पीठ ने नोट किया,

    " विद्वान ट्रायल कोर्ट ने आठ अलग-अलग सुनवाइयों में अभियुक्त का प्रतिनिधित्व कर रहे विद्वान वकील को अभियोजन पक्ष से जिरह करने की अनुमति दी थी। ...अपने बयान में पीड़िता ने अपीलकर्ता-सुरिंदर सिंह @ शिंदा के हाथों हुए उत्पीड़न का विस्तृत ब्योरा दिया है। उसने विशेष रूप से यह बताया है कि अपीलकर्ता- सुरिंदर सिंह @ शिंदा ने उसका यौन उत्पीड़न, किया मारपीट की और छेड़छाड़ की।"

    पीठ ने कहा कि यदि इन कथित सुधारों को ध्यान से देखा जाए तो यह स्पष्ट हो जाता है कि ये कथित सुधार एफआईआर में दर्ज आरोपों के स्पष्टीकरण/ विवरण हैं। न्यायालय कहा कि अभियोजन पक्ष लम्बी जिरह के बावजूद अपने बयान पर अड़ा रहा।

    पीठ ने कहा कि यह तय है कि एफआईआर अभियोजन पक्ष के आरोपो का ज्ञानकोश नहीं हो सकती है। फैसले में कहा गया, "इन परिस्थितियों में, यह उम्मीद करना गलत है कि एफआईआर में, सभी घटनाओं का पूर्ण विवरण दिया जाना चाहिए। एफआईआर में अभियोजन की ओर से पेश किए जाने वाले प्रस्तावित साक्ष्य को शामिल होने की उम्मीद नहीं की जा सकमी है।"

    "यहां एक मामला है जहां अभियोजन पक्ष, एक बेटी, को यह आरोप लगाने के लिए मजबूर किया गया है कि उसका मां सहित करीबी रिश्तेदारों ने यौन उत्पीड़न किया,...। यह ध्यान में रखा जाना चाहिए उसके पिता ने वर्ष 2009 से परिवार से अलग रहना/ निवास करना शुरू कर दिया था। उनका परिवार टूट गया था। यह भी सबूत है कि उसकी मां का सुरिंदर सिंह @ शिंदा के साथ यौन संबंध था, जिसके लिए वह नियमित रूप से उसके घर आता था।"

    जस्टिस क्षेतरपाल ने कहा,

    "यह ध्यान में रखना होगा कि अभियोजन पक्ष दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों में थी, उसे अपनी मां से भी आवश्यक सुरक्षा / सहायता नहीं मिली, पहली बार, जब यह घटना हुई, तब उसकी उम्र मुश्किल से 15 साल थी। यह भी सबूत है कि अपीलकर्ता-सुरिंदर सिंह @ शिंदा लाइसेंस प्राप्त पिस्तौल ले कर उसके घर आता था। अपीलकर्ता सुरिंदर सिंह @ शिंदा अभियोजन पक्ष के परिवार की मदद भी करता थे।"

    एफआईआर दर्ज करने में डेढ़ महीने की देरी से अभियोजन का मामला निरस्त नहीं होता, "वह अपनी मां के खिलाफ खड़े होने का पर्याप्त साहस / ताकत नहीं तुरंत नहीं जुटा पाई। उसने अपनी मां से 04.10.2014 को पहला बार शि‌कायत की। उसकी मां, अपीलकर्ता-रूपिंदर कौर ने तब निर्दयता से उसकी पिटाई शुरू कर दी थी ... वह दुविधा में था।"

    एक तरफ, वह परिवार की प्रतिष्ठा के बारे में चिंतित थी, जबकि दूसरी तरफ अपीलकर्ता उसे पागल कर रहे थे।

    अदालत ने आगे उल्लेख किया कि बहुत विचार-विमर्श के बाद, उसने 07.11.2014 को एक शिकायत का मसौदा तैयार किया, लेकिन 11 दिनों की अवधि के लिए पुलिस को नहीं सौंपा, और यह कि "ये तथ्य स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि एक संवेदनशील युवा बच्चे ने कार्रवाई शुरू करने का निर्णय लेने से पहले अपना समय लिया। पीठ ने इस तथ्य पर जोर दिया कि 04.10.2014 के बाद, वह अपने पिता के साथ रहना शुरू कर दी थी।

    पीठ ने कहा,

    "यह बहुत कम होता है कि एक बेटी अपनी ही मां पर मुकदमा चलाने का फैसला करती है। यह स्पष्ट है कि 04.10.2014 को पीटने के बाद भी कानूनी कार्यवाही करने से अभियोजन पक्ष की ओर से संकोच जाहिर किया गया था।"

    "04.10.2014 को, उसके पिता ने पुलिस को फोन किया था, लेकिन तब उसने पुलिस को बयान दिया कि वह कानूनी कार्रवाई नहीं करना चाहती। यह दिखाता है कि अभियोजक अभियुक्त के खिलाफ कानूनी कार्रवाई का सहारा लेने की इच्छुक नहीं थी।"

    पीठ ने यह कहते हुए अपनी सहानुभूति का प्रदर्शन किया कि "इसके बाद, उसे पुलिस से संपर्क करने का फैसला करने से पहले अपने आंतरिक संघर्ष को हल करने में एक महीने से अधिक का समय लग गया।"

    सिंगल जज ने कहा, "इस पृष्ठभूमि में, यदि अभियोजन पक्ष के साक्ष्यों का आंकलन किया जाता है तो यह अदालत यह नहीं पाती है कि अभियोजन पक्ष अपने मामले को साबित करने में विफल रहा है।"

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