''जांच के बिना पुलिस कैसे दावा कर सकती है कि आरोप झूठे हैं'' : दिल्ली कोर्ट ने दंगों के दौरान बुर्का पहनने वाली महिलाओं की हत्या के आरोप में एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया

LiveLaw News Network

2 Nov 2020 5:42 PM IST

  • जांच के बिना पुलिस कैसे दावा कर सकती है कि आरोप झूठे हैं : दिल्ली कोर्ट ने दंगों के दौरान बुर्का पहनने वाली महिलाओं की हत्या के आरोप में एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया

    कड़कड़डूमा कोर्ट (दिल्ली) ने सोमवार (26 अक्टूबर) को पुलिस को रेडीमेड कपड़ों के एक व्यापारी की उस शिकायत पर प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया है, जिसने दावा किया है कि दिल्ली दंगों के दौरान बुर्का पहनने वाली महिलाओं की हत्या की गई थी और उनके शवों को भागीरथी विहार नाले में फेंक दिया गया था।

    मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट राकेश कुमार सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत दायर एक आवेदन पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया है कि 24.02.2020 को सांप्रदायिक हिंसा हुई, जिसमें एक विशेष समुदाय के कुछ सदस्यों को बेरहमी से घायल किया गया और उन्हें मार भी दिया गया था।

    आवेदन में लगाए गए आरोप

    शिकायतकर्ता ने दावा किया कि मृतकों के शवों को भागीरथी विहार नाले में फेंक दिया गया था व सारी रात खुली लूट के साथ नरसंहार भी हुआ था और शिकायतकर्ता ने उस सारी घटना को देखा है। उसने अपने आप को अपने परिवार के साथ अपने घर के अंदर बंद कर लिया था।

    आवेदक द्वारा यह भी कहा गया है कि 25 फरवरी को, 200 लोगों की भीड ़ उसके घर पर आई और गेट को तोड़ दिया और उसकी दुकान को लूट लिया। उनकी मोटरसाइकिलों को सड़क पर घसीटा गया और आग लगा दी गई।

    उसने यह भी बताया कि उनकी एक बड़ी संदूक को भीड़ ने लूट लिया गया था,जिसमें उनकी बहू के गहने व उनकी शादी से जुड़ा अन्य सामान भी रखा था।

    हालांकि, जब उन्होंने हत्या के उक्त अपराध से संबंधित एक प्राथमिकी दर्ज करवाने की कोशिश की, तो उन्हें बताया गया कि एक आस मोहम्मद (चोरी के लिए) की शिकायत पर गोकलपुरी पुलिस स्टेशन में एक और प्राथमिकी दर्ज की गई है। वह भी अज्ञात दंगाइयों का शिकार हुआ था और उनके यहां भी चोरी हुई थी। (पीएस गोकलपुरी की एफआईआर नंबर 78/2020)।

    उल्लेखनीय रूप से, पुलिस ने आस मोहम्मद की शिकायत पर चोरी का मामला दर्ज किया था। यह मामला बुर्का-पहनने वाली महिलाओं की कथित हत्याओं से संबंधित नहीं था। जबकि निसार अहमद की शिकायत को उस एफआईआर के साथ जोड़ दिया गया था।

    आवेदक के वकील ने अदालत से आग्रह किया कि वह सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत पुलिस को इस शिकायत के आधार पर एक अलग एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दें।

    दूसरी ओर, जांच अधिकारी ने अपने जवाब में कहा कि शिकायत में बुर्का पहनने वाली महिलाओं की हत्या और उनके शवों को भगीरथी विहार नाले में फेंकने संबंधी लगाए गए आरोप गलत और निराधार है।

    कोर्ट का विश्लेषण

    न्यायालय का विचार था कि वर्तमान स्तर पर न्यायिक विचार, इस कानूनी औचित्य पर विचार करने तक सीमित था कि शिकायतकर्ता ने उसके द्वारा दी गई सूचना पर पुलिस द्वारा एक अलग से प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की है। वर्तमान मामले में उसके द्वारा की गई शिकायत में विभिन्न संज्ञेय अपराधों का खुलासा हो रहा है,जो दूसरे केस (पीएस गोकलपुरी की एफआईआर नंबर 78/2020)की शिकायत से अपराध के स्थान, समय और प्रभाव के संदर्भ में अलग हैं।

    अदालत ने आगे टिप्पणी की,

    ''हालांकि, अदालत इस बात को समझने में विफल रही है कि पुलिस यह दावा कैसे कर सकती है कि आवेदक के आरोप, जैसे कि उसने अपने घर से देखा था कि कुछ बुर्का पहनने वाली महिलाएं या मुस्लिम महिलाएं जैसी दिखने वाली महिलाओं को तलवारों से मार दिया गया था और उनके शव भागीरथी नाले में फेंके गए हैं,झूठे और बिना किसी सबूत के लगाए गए हैं। जबकि उन्होंने कानून के अनुसार इस मामले में कोई भी उचित जांच नहीं की है,जो सीआरपीसी के तहत दी गई योजना के तहत एफआईआर से शुरू होती है।''

    न्यायालय ने यह भी कहा है कि अगर पुलिस को पता चलता है कि शिकायतकर्ता द्वारा दी गई जानकारी झूठी थी और उचित जांच के बाद किसी भी निर्दोष व्यक्ति के खिलाफ दुर्भावनापूर्ण इरादे से प्रेरित थी, तो इस तरह के गैरकानूनी दुराचार/अपराध की चूक के लिए शिकायतकर्ता को कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।

    अंत में, अदालत का विचार था कि पुलिस को शिकायतकर्ता द्वारा दी गई सूचनाओं के आधार पर कानून के उपयुक्त प्रावधानों के तहत एफआईआर दर्ज करनी चाहिए क्योंकि उन सूचनाओं से कुछ गंभीर संज्ञेय अपराधों के कमीशन का भी पता चलता है, जिनकी जांच राज्य की जांच एजेंसी द्वारा ही ठीक से की जा सकती है।

    इस प्रकार, संबंधित थाने के एसएचओ को निर्देश दिया गया है कि वह आदेश की एक प्रति प्राप्त होने के पांच दिनों के भीतर एफआईआर दर्ज कर लें। जिसके बाद आरोपों की प्रकृति को देखते हुए इस मामले की कानून के अनुसार उचित व जल्दी से जांच की जाए।

    उपरोक्त टिप्पणियों के साथ, शिकायतकर्ता के सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत दायर किए गए आवेदन का निस्तारण किया है।

    शिकायतकर्ता निसार अहमद की तरफ से वकील एम आर शमशाद उपस्थित हुए।

    आदेश की काॅपी यहां से डाउनलोड करें


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