जबरन धर्मांतरण के खिलाफ गंभीर कदम उठाएंगे; केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा, किसी को धर्मांतरण का मौलिक अधिकार नहीं
Avanish Pathak
28 Nov 2022 6:46 PM IST
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर एक हलफनामे में कहा कि वह जबरन धर्म परिवर्तन के मुद्दे की "गंभीरता से अवगत" है।
उल्लेखनीय है कि भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय ने एक जनहित याचिका दायर की है, जिसमें उन्होंने जबरन धर्मांतरण को नियंत्रित करने के लिए उपायों की मांग की है।
जनहित याचिका के जवाब में यूनियन ऑफ इंडिया में कहा कि, "याचिका में मांगी गई राहत को यूनियन ऑफ इंडिया ने पूरी गंभीरता से लेगी और उचित कदम उठाए जाएंगे। केंद्र सरकार मामले से वाकिफ है।"
याचिका में डर, धमकी और धोखे से प्रलोभन और मौद्रिक लाभों के जरिए धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए कड़े कदम उठाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश देने की मांग की गई है। उपाध्याय ने याचिका में मांग की है कि धर्मांतरण नियंत्रित करने के लिए एक रिपोर्ट के साथ-साथ एक विधेयक तैयार करने के लिए विधि आयोग को निर्देश दिया जाए।
पिछली सुनवाई पर सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे को 'बेहद गंभीर' करार दिया था और यूनियन को अपना रुख स्पष्ट करने का निर्देश दिया था।
न्यायालय के निर्देश के बाद दायर हलफनामे में गृह मंत्रालय ने कहा "धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार में अन्य लोगों को किसी विशेष धर्म में परिवर्तित करने का मौलिक अधिकार शामिल नहीं है। उक्त अधिकार में निश्चित रूप से एक व्यक्ति का धोखाधड़ी, जबरदस्ती, प्रलोभन या ऐसे किसी माध्यम से धर्म परिवर्तन कराने का अधिकार शामिल नहीं है।"
रेव स्टेनिस्लॉस बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लेख करते हुए केंद्र सरकार ने कहा,
"माननीय न्यायालय ने कहा कि 'प्रचार' शब्द के तहत किसी व्यक्ति को धर्मांतरित करने के अधिकार की परिकल्पना नहीं की गई है, बल्कि यह अपने सिद्धांतों की व्याख्या द्वारा किसी के धर्म को फैलाने के सकारात्मक अधिकार की प्रकृति का है।"
सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने, जिसकी अगुवाई चीफ जस्टिस एएन ने की थी, 'प्रचार' और 'सार्वजनिक व्यवस्था' शब्दों के दायरे की जांच की थी। केंद्र ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में उन कृत्यों को बरकरार रखा है, जो संगठित, बड़े पैमाने पर परिष्कृत, अवैध धर्मांतरण के खतरे को नियंत्रित करने और रोकने की मांग करते हैं।
केंद्र ने इस तथ्य पर जोर दिया कि महिलाओं और आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों सहित समाज के कमजोर वर्गों के पोषित अधिकारों की रक्षा के लिए ऐसे अधिनियम आवश्यक हैं। केंद्र ने यह भी बताया कि ओडिशा, मध्य प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और हरियाणा राज्यों ने पहले ही इस संबंध में कानून बना लिए हैं।
अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम यूनियन ऑफ इंडिया- डब्ल्यूपी (सी) 63/2022