"अगर अनुमति दी गई तो ऐसा कृत्य अराजकता की ओर ले जाएगा": वैवाहिक विवाद में बार-बार अदालत के निर्देशों की अवज्ञा करने वाले व्यक्ति को दिल्ली हाईकोर्ट ने तीन महीने की सजा दी
LiveLaw News Network
26 Nov 2021 2:27 PM IST
दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को एक व्यक्ति को तीन महीने की साधारण कारावास की सजा सुनाई और 2000 रुपये का जुर्माना लगाया। उस व्यक्ति ने वैवाहिक विवाद में न्यायालय के निर्देशों की बार-बार जानबूझकर अवज्ञा की थी। उसे अपनी पत्नी को भरण-पोषण का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था।
जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस जसमीत सिंह ने कहा कि यह देखते हुए कि अदालत के आदेशों की पूर्ण अवहेलना करने के लिए पति के कृत्यों या चूक को स्वीकार नहीं किया जा सकता है, यदि इस प्रकार की कार्रवाई की अनुमति दी जाती है तो इससे अराजकता बढ़ेगी और कानून का शासन समाप्त हो जाएगा। न्यायालयों के आदेशों को हल्के में लिया जाएगा और संबंधित व्यक्ति अपनी मर्जी से उल्लंघन करने लगेगा।
न्यायालय ने इस तथ्य पर ध्यान दिया कि व्यक्ति ने पारिवारिक न्यायालय द्वारा पारित आदेशों के अनुपालन और हाईकोर्ट द्वारा पत्नी को भरण-पोषण का भुगतान करने की आवश्यकता से बचने के लिए अपनी वास्तविक आय को छुपाया था। न्यायालय का विचार था कि व्यक्ति ने हठी और जिद्दी होना चुना था।
अदालत ने निर्देश दिया, "हमने इस पहलू पर विचार किया है कि मात्र 2,000 रुपये का जुर्माना लगाने से न्याय का लक्ष्य पूरा नहीं होगा और यह कि कारावास की सजा इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए आवश्यक है कि उसकी बकाया राशि जुर्माने से कहीं अधिक है। तथ्य यह है कि उसने जानबूझकर, इच्छापूर्वक, इरादतन और मुंहजोरी से परिवार न्यायालय और इस न्यायालय द्वारा अवसरों दिए जाने के बावजूद उसे जारी किए गए निर्देशों की अवज्ञा की है।"
कोर्ट ने हालांकि यह भी कहा कि वह सजा वापस लेने पर विचार करेगी बशर्ते कि व्यक्ति दो सप्ताह के भीतर उक्त निर्देश का अनुपालन करे और आदेशों का पालन करके अपनी माफी प्रदर्शित करे।
अदालत ने कहा , " अगर वह अगले दो हफ्तों में इस निर्देश का पालन नहीं करता है, तो उसे नौ दिसंबर 2021 को जेल अधीक्षक, केंद्रीय जेल, तिहाड़, नई दिल्ली के सामने आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया जाता है।"
अदालत पत्नी द्वारा कंटेम्पट ऑफ कोर्ट एक्ट, 1971 की 10, 11 और 12 के तहत दायर अवमानना याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें फैमिली कोर्ट द्वारा पारित आदेश की अवमानना के साथ-साथ उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश का अवमानना का आरोप लगाया गया था।
फैमिली कोर्ट ने निर्देश दिया था कि पत्नी को 35,000 रुपये का मासिक भरण-पोषण दिया जाए और पति छह महीने के भीतर किश्तों में भरण-पोषण का बकाया चुका सकता है। हाईकोर्ट ने तब पति को फैमिली कोर्ट द्वारा पारित अंतरिम भरण-पोषण आदेश का पालन करने का निर्देश दिया था।
कोर्ट ने कहा, "स्थिति यह है कि प्रतिवादी ने अपनी वित्तीय अक्षमता के पूरी तरह से झूठे आधार पर उक्त आदेशों का पालन करने से हठपूर्वक मना कर दिया है। हमारे बार-बार आदेशों के बावजूद, वह अपने सभी खातों, आय और व्यय का स स्पष्ट ब्योरा देने में विफल रहा है।"
कोर्ट ने जोड़ा, "प्रतिवादी ने आदेशों का पालन करने में अदालत की महिमा के प्रति कोई सम्मान नहीं दिखाया है। उसने उपरोक्त आदेशों का पालन न करने के लिए कोई पछतावा या खेद नहीं दिखाया है। यदि किसी निर्णय, डिक्री निर्देश, आदेश रिट की जानबूझकर अवज्ञा की गई है या अदालत की अन्य प्रक्रिया, या अदालत को दी गई अंडरटेकिंग का जानबूझकर उल्लंघन, किया गया है, अवमानना अदालत ऐसे उल्लंघन पर ध्यान देगी, जिस पर दंडित करने की आवश्यकता है। अवमाननाकर्ता द्वारा जानबूझकर अवज्ञा न्यायालयों की गरिमा और अधिकार को कमजोर करती है....।"
केस शीर्षक: सोनाली भाटिया बनाम अभिवंश नारंग