पत्नी की तम्बाकू चबाने की आदत के आधार पर तलाक की डिक्री को मंजूरी नहीं दी जा सकती : बॉम्बे हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

18 Feb 2021 1:00 PM GMT

  • पत्नी की तम्बाकू चबाने की आदत के आधार पर तलाक की डिक्री को मंजूरी नहीं दी जा सकती : बॉम्बे हाईकोर्ट

    फैमिली कोर्ट के जजमेंट के खिलाफ एक पति की तरफ से दायर अपील को खारिज करते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट (नागपुर बेंच) ने पिछले हफ्ते फैसला सुनाया कि तलाक की डिक्री पारित करने के लिए पत्नी की तम्बाकू चबाने की आदत अकेले पर्याप्त आधार नहीं है। इससे पहले फैमिली कोर्ट ने भी पति की तरफ से दायर तलाक की अर्जी को खारिज कर दिया था।

    यह देखते हुए कि यदि विवाह को भंग कर दिया जाता है, तो बच्चों को बहुत नुकसान होगा, न्यायमूर्ति पुष्पा वी गणेदीवाला और न्यायमूर्ति ए.एस. चंदुरकर की पीठ ने कहा कि अपीलकर्ता/पति द्वारा ऐसे कोई सबूत पेश नहीं किए गए,जिसके आधार पर ट्रायल कोर्ट के सुविचारित निष्कर्षों में हस्तक्षेप किया जाए।

    संक्षेप में तथ्य

    एक शंकर (अपीलकर्ता/पति) ने दिनांक 21 जनवरी 2015 को फैमिली कोर्ट, नागपुर द्वारा पारित फैसले के खिलाफ एक अपील दायर की थी। फैमिली कोर्ट ने पति की तरफ से हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 (1)(i-a) के तहत क्रूरता के आधार पर दायर तलाक की अर्जी को खारिज कर दिया था।

    अपीलकर्ता/पति और प्रतिवादी/पत्नी के बीच शादी 15 जून 2003 को नागपुर में हुई थी और दंपति का एक बेटा और एक बेटी है।

    अन्य बातों के अलावा, यह भी कहा गया था कि वह तंबाकू चबाने की आदी थी और इसलिए उसके पेट में सिस्ट बन गए थे और अपीलकर्ता-पति को उसके इलाज के लिए भारी चिकित्सा खर्च उठाना पड़ा।

    अंत में, यह कहा गया कि 17 जनवरी 2012 को, उसने अपीलकर्ता/ पति का साथ छोड़ दिया क्योंकि वह उसके साथ सहवास करने की इच्छुक नहीं थी।

    दूसरी ओर, प्रतिवादी/पत्नी ने अपने लिखित बयान में अपीलकर्ता/ पति पर की गई क्रूरता के सभी प्रतिकूल आरोपों का खंडन किया और बताया कि अपीलकर्ता/पति व उसकी सास ने ही कई बार उसका मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न किया था।

    उसने यह भी बताया कि अपीलकर्ता/पति ने उसके माता-पिता से दुपहिया वाहन की मांग की थी और इस बात पर कई बार उसकी पिटाई की।

    प्रतिवादी/पत्नी ने आगे आरोप लगाया कि वर्ष 2008 में अपीलकर्ता/पति एचआईवी से पीड़ित था, परंतु फिर भी वह उसका साथ छोड़कर नहीं गई। हालांकि ससुराल वालों उसके साथ लगातार बुरा व्यवहार कर रहे थे,इसलिए वह अपीलकर्ता/पति की साथ छोड़ने के लिए विवश हो गई थी।

    कोर्ट का अवलोकन

    शुरुआत में, न्यायालय ने कहा,

    ''अपीलकर्ता/ पति द्वारा दी गई दलीलों और समर्थन में पेश किए गए सबूतों पर सावधानी से विचार करने के बाद यह प्रकट हुआ है कि अपीलकर्ता ने जिस क्रूरता के संबंध में आरोप लगाए हैं,वो एक आम शादी-शुदा जिदंगी की छोटी-मोटी परेशानी के सिवाय कुछ नहीं हैं।''

    कोर्ट ने कहा कि,

    ''घरेलू काम न करना, बिना किसी कारण के उसके परिवार के सदस्यों के साथ झगड़ा करना, उसकी अनुमति के बिना अपने माता-पिता के घर जाना, पति का टिफिन तैयार न करना आदि के संबंध में लगाए गए आरोप,इस न्यायालय के विचार में यह राय बनाने के लिए पर्याप्त नहीं हैं कि अपीलकर्ता/पति तीव्र मानसिक पीड़ा,दुख, निराशा और हताशा से गुजर रहा था और ऐसे में उसके लिए प्रतिवादी/पत्नी के साथ में रहना संभव नहीं है।''

    न्यायालय ने यह भी कहा कि जब अपीलकर्ता/पति को एचआईवी पॉजिटिव पाया गया, तो उसके बाद भी प्रतिवादी/पत्नी अपीलकर्ता/ पति के साथ 2010 तक रही।

    पत्नी के चिकित्सा उपचार पर काफी खर्च किया गया था (उसकी तंबाकू की आदत के कारण), पति की तरफ से किए गए इस दावे पर बेंच ने कहा,

    ''ट्रायल कोर्ट ने ठीक ही कहा है कि वह इस दलील के समर्थन में मेडिकल कागजात और बिलों को रिकॉर्ड पर लाने में विफल रहा है।''

    अंत में, कोर्ट ने कहा,

    ''इसके अलावा, ट्रायल कोर्ट द्वारा यह भी सही रूप से आयोजित किया गया है कि अपीलकर्ता/पति की दलीलें इतनी गंभीर और वजनदार नहीं हैं कि उनकी शादी को भंग किया जा सकें।''

    दिए गए तथ्यों में, न्यायालय की यह भी राय थी कि ट्रायल कोर्ट के ''सुविचारित निष्कर्षों''में हस्तक्षेप करने के लिए अपीलकर्ता/पति की तरफ से कोई सबूत पेश नहीं किया गया।

    इस प्रकार, अपील को योग्यता से रहित होने के कारण खारिज कर दिया गया।

    केस का शीर्षक - शंकर बनाम रीना,फैमिली कोर्ट अपील नंबर 70/2016

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