पति के खिलाफ तीन आपराधिक मामले दर्ज कराने वाली पत्नी कानूनी प्रक्रिया से पूरी तरह वाकिफ होगी, अज्ञानता का दावा नहीं कर सकती: बॉम्बे हाईकोर्ट ने तलाक को बरकरार रखा
Avanish Pathak
8 Nov 2022 3:57 PM IST
यह देखते हुए कि एक महिला, जिसने अपने पति के खिलाफ तीन आपराधिक मामले दायर किए हैं, कानूनी प्रक्रिया से पूरी तरह अवगत होगी, बॉम्बे हाईकोर्ट ने उसकी गैर-मौजूदगी के कारण फैमिली कोर्ट की ओर से दी गई तलाक की डिक्री को रद्द करने से इनकार कर दिया।
जस्टिस नितिन जामदार और जस्टिस शर्मिला देशमुख की खंडपीठ ने पत्नी के इस दावे को खारिज कर दिया कि वह अनपढ़ है और गलत कानूनी सलाह की शिकार है, इसके अलावा उसकी उपस्थिति सुनिश्चित करना अदालत का कर्तव्य था।
हाईकोर्ट की पीठ ने कहा, "अपीलकर्ता तीन आपराधिक मामले दर्ज कर चुकी है, उसे कानूनी प्रक्रिया का ज्ञान था।" पत्नी ने कई अदालती सम्मनों को स्वीकार करने से इनकार करने के बाद फैमिली कोर्ट ने एकतरफा डिक्री पारित की थी।
कोर्ट ने कहा,
"मौजूदा मामले में, अपीलकर्ता - पत्नी ने सम्मन दिए जाने के बावजूद उपस्थित नहीं रहने का विकल्प चुना, और उसके बाद अपीलकर्ता का यह तर्क नहीं सुना जा सकता है कि फैमिली कोर्ट का यह कर्तव्य था कि वह उसे उपस्थित रहने के लिए मजबूर करे।"
इस जोड़े ने 26 मई, 1986 को शादी की थी और विवाह से उनके तीन बच्चे थे। पति ने 2006 में मानसिक क्रूरता का आरोप लगाते हुए फैमिली कोर्ट में तलाक के लिए अर्जी दी। उसने पत्नी पर किसी अन्य पुरुष के साथ संबंध रखने का आरोप लगाया। उसने दावा किया कि "उसे गाली देने और अपमानित करने" के बाद, उसने 2003 में वैवाहिक घर छोड़ दिया था।
मामले में पेश होने के लिए पत्नी को समन जारी किया गया था लेकिन उसने पेश होने से इनकार कर दिया। फैमिली कोर्ट जज ने कहा कि तलाक के लिए एक मामला बनाया गया था और तदनुसार, 17 दिसंबर 2007 को तलाक की डिक्री दी गई थी।
जिसके बाद पत्नी ने तलाक के आदेश को रद्द करने के लिए एक आवेदन दायर किया, जिसे 2008 में फैमिली कोर्ट ने खारिज कर दिया। इन दोनों आदेशों को तब हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई थी।
हाईकोर्ट ने कहा, "लगभग छह महीने तक इंतजार करने के बाद, फैमिली कोर्ट के पास आगे बढ़ने और तलाक की डिक्री देने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। हमें फैमिली कोर्ट के विद्वान जज के विचार में कोई त्रुटि नहीं मिली।"
पीठ ने कहा कि पत्नी ने 11 दिसंबर 2006 को दाम्पत्य अधिकारों की बहाली के लिए एक याचिका दायर की। उसने फिर उसी अदालत में भारतीय दंड संहिता की धारा 34 के साथ धारा 498 ए, 506 भाग- II के तहत भरण-पोषण और अन्य आपराधिक मामला दायर किया।
इसके बावजूद, जब जून 2007 से दिसंबर 2007 के बीच फैमिली कोर्ट ने उन्हें कई समन जारी किए, तो वह एक भी तारीख को उपस्थित नहीं हुईं, जिसके बाद उनके पति की याचिका को स्वीकार कर लिया गया। अपने आदेश में फैमिली कोर्ट के जज ने यह भी कहा कि पति ने दोबारा शादी कर ली है और उसके खिलाफ धोखाधड़ी का कोई मामला नहीं बनता है।
व्यक्तिगत रूप से पेश हुए पति ने अदालत को सूचित किया कि महिला गुजरात में अपने प्रेमी के साथ रह रही है और उसे परेशान करने के लिए उसके खिलाफ वर्तमान कार्यवाही कर रही है।
पीठ ने कहा,
"परिस्थितियों की समग्रता को देखते हुए हम पाते हैं कि आक्षेपित आदेश को रद्द करने के लिए कोई मामला नहीं बनाया गया है। इसलिए अपील खारिज की जाती है।"
केस टाइटल: रोहिणी राजू खमकर बनाम राजू रानबा खमकर