पत्नी का पति और उसके परिवार के प्रति सम्मान नहीं रखना क्रूरता के बराबर: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने विवाह विच्छेद को बरकरार रखा

Avanish Pathak

22 March 2023 3:34 PM GMT

  • Writ Of Habeas Corpus Will Not Lie When Adoptive Mother Seeks Child

    MP High Court

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने क्रूरता के आधार पर एक जोड़े के विवाह के विघटन को सही ठहराते हुए कहा कि पत्नी का पति या उसके परिवार के सदस्य के प्रति सम्मान नहीं होना पति के प्रति क्रूरता माना जाएगा।

    कोर्ट ने इस तथ्य को भी ध्यान में रखा कि पत्नी ने अपना ससुराल छोड़ दिया और 2013 से बिना किसी उचित कारण के पति से अलग रह रही है। वह पति के साथ रहने की इच्छुक भी नहीं है, जिससे यह क्रूरता के आधार पर विवाह विच्छेद का एक वैध मामला बनता है।

    इसके साथ, जस्टिस शील नागू और जस्टिस वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने फैमिली कोर्ट के निष्कर्षों को बरकरार रखा, जिसमें कहा गया था कि पति ने क्रूरता साबित कर दी है और इसलिए, पीठ ने फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ पत्नी की अपील को खारिज कर दिया। फैमिली कोर्ट ने पति की याचिका मंजूर कर तलाक की डिक्र पारित की थी।

    पति पेशे से संयुक्त आयकर आयुक्त है। उसकी शादी वर्ष 2009 में हुई थी, हालांकि, शादी चल नहीं सकी और इसलिए उन्होंने क्रूरता और परित्याग के आधार पर फैमिली कोर्ट, जयपुर में तलाक की याचिका दायर की। बाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार याचिका भोपाल स्थित कोर्ट में स्थानांतरित कर दी गई थी।

    फैमिली कोर्ट ने दोनों आधारों को सही पाया, हालांकि, यह नोट किया कि चूंकि पति द्वारा याचिका दायर करने के समय तक 2 साल की वैधानिक अवधि पूरी नहीं हुई थी, इसलिए परित्याग के उस आधार पर डिक्री नहीं दी जा सकती है। .

    हालांकि, इसने याचिका को 'क्रूरता' के आधार पर स्वीकार कर लिया और तलाक की डिक्री के जर‌िए उनकी शादी को भंग कर दिया। डिक्री को चुनौती देते हुए पत्नी ने हाईकोर्ट में अपील की।

    पत्नी ने कहा कि फैमिली कोर्ट ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि पति का आचरण अपीलकर्ता के प्रति उचित नहीं था और उसने केवल उसे परेशान करने और बच्चे की कस्टडी देने के लिए उसके खिलाफ कई तुच्छ शिकायतें दर्ज कीं।

    यह भी प्रस्तुत किया गया कि अदालत ने आईपीसी की धारा 498ए के तहत उसकी याचिका के लंबित होने के तथ्य को नजरअंदाज कर दिया था, इसलिए उसने विवादित फैसले के तहत दी गई तलाक की डिक्री को रद्द करने की प्रार्थना की।

    यह भी दावा किया गया कि पर्याप्त दहेज नहीं लाने के लिए पति और उसके परिवार के अन्य सदस्य उसे ताने, अपमान और परेशान करते थे और कई मौकों पर पति ने उसके साथ मारपीट भी की।

    दूसरी ओर, पति ने प्रस्तुत किया कि पत्नी बहुत ही घमंडी, जिद्दी, गुस्सैल और दिखावटी महिला है, जिसके मन में यह भ्रम है कि वह एक आईपीएस अधिकारी की बेटी है।

    इन प्रस्तुतियों की पृष्ठभूमि और संभाव्यता की प्रबलता के सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए, इस पूरे साक्ष्य की जांच पर, न्यायालय ने कहा, "फैमिली कोर्ट के सामने प्रतिवादी/पति की ओर से जांचे गए गवाहों के बयानों को ध्यान से पढ़ने पर, हमें ऐसा कुछ भी नहीं मिला है, जो उन्हें किसी भी भौतिक पहलू पर अविश्वसनीय या संदिग्ध मानता हो।"

    नतीजतन, क्रूरता के आधार पर पति के पक्ष में तलाक की डिक्री देने वाले फैमिली कोर्ट के आदेश को उचित पाते हुए, अदालत ने पत्नी की अपील को खारिज कर दिया।


    केस टाइटलः संतोष मीणा बनाम सिद्धार्थ बीएस मीणा [प्रथम अपील संख्या 1797/2019]



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