पत्नी ने पति के खिलाफ आपराधिक आचरण के गंभीर अप्रमाणित आरोप लगाकर 'क्रूरता' की: दिल्ली हाईकोर्ट ने तलाक की डिक्री बरकरार रखी

LiveLaw News Network

14 Nov 2021 12:17 PM GMT

  • पत्नी ने पति के खिलाफ आपराधिक आचरण के गंभीर अप्रमाणित आरोप लगाकर क्रूरता की: दिल्ली हाईकोर्ट ने तलाक की डिक्री बरकरार रखी

    दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में पाया कि एक पत्नी अपने पति और उसके माता-पिता के खिलाफ आपराधिक आचरण के गंभीर आरोप लगा रही थी, लेकिन उक्त आरोपों को वह ट्रायल कोर्ट में साबित करने में असमर्थ रही। अदालत ने पत्नी के इस प्रकार अप्रमाणित आरोपों को "क्रूरता" का कार्य माना।

    जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस जसमीत सिंह की डिवीजन बेंच ने इस तरह फैमिली कोर्ट द्वारा पति को दी गई तलाक की डिक्री बरकरार रखी और फैमिली कोर्ट एक्ट की धारा 19 के तहत पत्नी की अपील को खारिज कर दिया।

    'क्रूरता'

    फैमिली कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि पत्नी के अप्रमाणित आरोपों के कारण पति को मानसिक क्रूरता का सामना करना पड़ा, क्योंकि उसे और उसके माता-पिता को उसकी पत्नी की शिकायत पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498ए से दर्ज एक मामले में बरी कर दिया गया था। उक्त बरी करने के खिलाफ दायर एक अपील भी खारिज कर दी गई।

    हालांकि अपीलकर्ता-पत्नी का मामला यह है कि जब उसके पति और ससुराल वालों ने जमानत के लिए आवेदन किया तो उसका विरोध नहीं किया गया। उसने हिंदू विवाह की धारा नौ के तहत वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए भी एक याचिका दायर की।

    कोर्ट ने कहा,

    "हमारे विचार में केवल इसलिए कि अपीलकर्ता ने प्रतिवादी और उसके माता-पिता द्वारा पेश की गई जमानत याचिका का विरोध नहीं किया ,अपीलकर्ता के गैर-जिम्मेदाराना आचरण को खत्म करने के लिए पर्याप्त नहीं है। मात्र तथ्य यह है कि उसने प्रतिवादी और उसके माता-पिता के खिलाफ आपराधिक आचरण के गंभीर आरोप लगाए हैं, जिसे वह अदालत के समक्ष स्थापित नहीं कर सकी, प्रतिवादी के खिलाफ क्रूरता के कृत्यों का गठन करने के लिए पर्याप्त है।"

    कोर्ट ने आगे यह जोड़ा:

    "इन परिस्थितियों में प्रतिवादी से यह आशा कैसे की जा सकती है कि वह अपीलकर्ता को अपने जीवन में आने की अनुमति देगा? एक विश्वास- जो वैवाहिक बंधन की नींव है, अपीलकर्ता के पूर्वोक्त आचरण से पूरी तरह से ध्वस्त हो गया। एक आदमी के लिए अपने माता-पिता को हिरासत में देखना और उन्हें जेल में देखना एक अनकही पीड़ा होगी। बेशक, अपीलकर्ता ने प्रतिवादी और उसके माता-पिता के खिलाफ उसके आरोपों को भी अपील में रखा। क्या उसे नहीं पता था कि उनकी सजा क्या होगी? उन्हें कारावास की सजा सुनाई गई है? इसलिए, जमानत अर्जी का विरोध न करने का उनका आचरण मायने नहीं रखता।"

    तदनुसार, अपील में कोई योग्यता नहीं पाते हुए कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया।

    हालांकि, अपीलकर्ता पत्नी की दलील पर कि वह स्थायी गुजारा भत्ता की हकदार होगी और पति अपने नाबालिग बच्चे के भरण पोषण के लिए बाध्य है, जो पत्नी के साथ ही है, अदालत ने पत्नी और बच्चे के भरण-पोषण के अनुदान के लिए स्थायी गुजारा भत्ता देने के पहलू पर पति को नोटिस जारी किया।

    केस शीर्षक: नीलम बनाम जय सिंह

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