''पत्नी ने पति व उसके परिवार के खिलाफ निराधार आपराधिक शिकायत दर्ज की, जो मानसिक क्रूरता का कारण बनी'': दिल्ली हाईकोर्ट ने विवाह भंग किया

LiveLaw News Network

11 March 2022 10:46 AM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने 12 साल से अलग रह रहे एक जोड़े के बीच विवाह भंग करते हुए कहा है कि पत्नी ने पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ एक निराधार आपराधिक शिकायत दर्ज की थी, जिससे उन्हें अत्यधिक मानसिक क्रूरता और पीड़ा हुई है।

    जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस जसमीत सिंह की पीठ ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(ia) और 13(1)(ib) के तहत तलाक की डिक्री द्वारा इस विवाह को भंग कर दिया है।

    बेंच ने माना कि पार्टियों के बीच सुलह का कोई अवसर नहीं बचा है और शादी पूरी तरह से टूट चुकी है। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि इस वैवाहिक बंधन को बनाए रखने से कोई उपयोगी उद्देश्य पूरा नहीं होगा और संबंध जारी रखने की जिद दोनों पक्षों के प्रति और अधिक क्रूरता को बढ़ावा देगी।

    कोर्ट ने कहा कि,

    ''वर्तमान में पार्टियों के बीच वैवाहिक कलह ऐसी है कि उनके बीच भरोसा, विश्वास, समझ और आपसी प्यार पूरी तरह समाप्त हो चुका है। प्रतिवादी (पत्नी) का आचरण ऐसा रहा है जिससे अपीलकर्ता (पति) को बहुत मानसिक पीड़ा हो रही है और पार्टियों से अब एक-दूसरे के साथ रहने की उम्मीद नहीं की जा सकती है।''

    न्यायालय इस मामले में फैमिली कोर्ट द्वारा पारित फैसले और डिक्री को चुनौती देने वाली एक अपील पर विचार कर रहा था। फैमिली कोर्ट के समक्ष अपीलकर्ता पति ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(ia) और 13(1)(ib) के तहत तलाक की मांग करने वाली याचिका दायर की थी। जिसे फैमिली कोर्ट ने खारिज कर दिया था।

    अदालत ने कहा कि अपीलकर्ता के आचरण से पता चलता है कि, कम से कम, जब तक उसने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 9 के तहत याचिका दायर नहीं की, तब तक वह इस शादी को बचाना चाहता था। हालांकि, यह नोट किया गया कि पत्नी ने उसके साथ फिर से रहना शुरू नहीं किया या वैवाहिक संबंधों में पति के साथ शामिल नहीं हुई।

    कोर्ट ने कहा कि,

    ''इसके बजाय, प्रतिवादी ने दहेज की मांग, जीवन के लिए खतरा, और अपीलकर्ता व उसके परिवार के सदस्यों के हाथों उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए सीएडब्ल्यू सेल के समक्ष एक शिकायत दर्ज करा दी। वही आरोप धारा 9 के तहत दायर याचिका के जवाब में दोहराए गए, जहां सीएडब्ल्यू सेल के समक्ष दायर शिकायत की प्रति भी संलग्न की गई थी। प्रतिवादी ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 9 के तहत दायर याचिका को भी खारिज करने के लिए प्रार्थना की।''

    कोर्ट ने कहा कि पत्नी के आचरण ने न केवल पति को छोड़ने की उसकी स्पष्ट मंशा को प्रदर्शित किया है, बल्कि पति की शारीरिक और भावनात्मक जरूरतों के प्रति उसकी संवेदनशीलता की कमी भी प्रदर्शित हुई है।

    कोर्ट ने कहा, ''वैवाहिक घर छोड़ने के लगभग दो साल और शादी के तीन साल बाद, प्रतिवादी ने 10.10.2011 को सीएडब्ल्यू सेल, कृष्णा नगर, दिल्ली में अपीलकर्ता और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ दहेज की मांग,दुर्व्यवहार, शारीरिक और मानसिक यातना और उत्पीड़न व अन्य क्रूरताओं का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई। जबकि ये आरोप निराधार रहे।''

    कोर्ट ने माना कि आरोप स्थापित नहीं हुए और यह पति के साथ-साथ उसके परिवार के सदस्यों के स्पष्ट चरित्र हनन के समान है।

    यह देखते हुए कि फैमिली कोर्ट ने मामले के उक्त पहलू की अनदेखी की, कोर्ट ने कहा,

    ''इसके अलावा, अपीलकर्ता को उक्त शिकायत के संबंध में पुलिस थाने के 30-40 चक्कर लगाने पड़े। एक पुलिस स्टेशन किसी के लिए भी आने जाने की सबसे अच्छी जगह नहीं है। जब भी उसे पुलिस स्टेशन जाना पड़ा होगा,उसे हर बार मानसिक प्रताड़ना और आघात हुआ होगा। वहीं उसके सिर पर खतरे की तलवार लटकी हुई थी, और उसे नहीं पता था कि कब उसके खिलाफ मामला दर्ज करके और उसे गिरफ्तार कर लिया जाएगा। जहां तक प्रतिवादी का सवाल है, उसने अपीलकर्ता और उसके परिवार को आपराधिक मामले में फंसाने के लिए सब कुछ किया था। उसकी शिकायत में भी यही प्रार्थना थी।''

    इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी कहा कि पत्नी वैवाहिक घर में वापस न लौटने का कोई औचित्य नहीं बता सकी और पति के साथ उसका रहने से इनकार करना उसके द्वारा किए गए परित्याग को स्थापित करने के लिए पर्याप्त है।

    कोर्ट ने कहा कि,

    ''इस मामले में, हमारा विचार है कि अपीलकर्ता प्रतिवादी के द्वारा की गई क्रूरता और परित्याग करने का मामला बनाने में सक्षम रहा है। हम फैमिली कोर्ट के निष्कर्षों से सहमत होने में असमर्थ हैं। वहीं अपीलकर्ता दोनों आधारों यानी धारा 13(1)(ia) और 13(1)(ib) पर सफल होने का हकदार है।''

    तद्नुसार याचिका का निस्तारण किया गया।

    अपीलार्थी की ओर से अधिवक्ता सुमीत वर्मा एवं महेन्द्र प्रताप सिंह उपस्थित हुए, जबकि प्रतिवादी की ओर से अधिवक्ता प्रत्यूष चिरन्तम उपस्थित हुए।

    केस का शीर्षक- एक्स बनाम वाई

    साइटेशन- 2022 लाइव लॉ (दिल्ली) 192

    आदेश पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें



    Next Story