जब एक जैसे आरोप पर शिकायत और प्रति-शिकायत दर्ज कराई जाए तो दोनों पक्ष इस आधार पर मामले को रद्द करने की मांग नहीं कर सकते कि मामला दीवानी प्रकृति का हैः कर्नाटक हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

28 Jan 2021 4:38 AM GMT

  • जब एक जैसे आरोप पर शिकायत और प्रति-शिकायत दर्ज कराई जाए तो दोनों पक्ष इस आधार पर मामले को रद्द करने की मांग नहीं कर सकते कि मामला दीवानी प्रकृति का हैः कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने स्टार्ट-अप्स माईगेट और नोब्रोकर की ओर से एक-दूसरे के खिलाफ दायर आपराधिक शिकायतों को खत्म करने की याचिकाओं को खारिज कर दिया है। अदालत ने याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा कि जब एक बार एक पक्ष दूसरे पक्ष के खिलाफ आपराधिक शिकायत दर्ज करता है और दूसर पक्ष, पहले पक्ष के खिलाफ आपराधिक शिकायत दर्ज करता है तो पहला शिकायतकर्ता को यह कहने के लिए नहीं सुना जा सकता है कि दूसरी शिकायत पूरी तरह से वाणिज्यिक है और रद्द की जाए।

    जस्टिस सूरज गोविंदराज ने कहा, "दायर किए गए दस्तावेज दो कंपनियों के बीच खेदजनक स्थिति को जन्म देते हैं, जो अपने क्षेत्र में प्रमुख कंपनी होने का दावा करती हैं। पेश किए गए दस्तावेज दोनों कंपनियों द्वारा एक-दूसरे के खिलाफ कीचड़ उछालने के अभियान का संकेत देते हैं।"

    उन्होंने कहा, "आपराधिक मुकदमे को इस आधार पर रद्द करने, कि लगाए गए आरोप दीवानी विवाद से संबंधित है, का दाव कर रहे पक्ष के लिए एक आधारभूत नियम यह है कि इस प्रकार के व्यक्ति को एक ही मामले में तथ्यों के समुच्चय और / या समान आरोपों के आधार पर आपराधिक शिकायत दर्ज नहीं करना चाहिए।"

    कोर्ट ने कहा, "जब आपराधिक आरोपों के आधार पर एक शिकायत और जवाबी शिकायत दर्ज की जाती है, तो दोनों पक्षों में से किसी को भी यह कहने के लिए नहीं सुना जा सकता है कि शिकायत दीवानी/ वाणिज्यिक प्रकृति की है, जबकि शिकायत उचित है..।"

    कोर्ट ने आगे कहा, "वर्तमान मामले में, माईगेट और नोब्रोकर ने एक-दूसरे के खिलाफ समान, यदि वह हूबहू एक जैसे नहीं थी, आरोप लगाए। दोनों का आरोप था कि एक पक्ष के डेटा को दूसरे पक्ष ने चुराया। एक दूसरे के खिलाफ ऐसी शिकायत करने के बाद, अब दोनों पक्षों पर यह नहीं है कि वह कहें कि दायर शिकायत को जारी नहीं रखा जा सकता है क्योंकि वाणिज्यिक प्रकृ‌ति के विवाद हैं।"

    मामला

    'माइगेट' ने 19.06.2020 को नोब्रोकर और उसके निदेशकों / अधिकारियों के खिलाफ सीआईडी, साइबर क्राइम डिवीजन, बैंगलोर के समक्ष धारा 406, 408, 411 और 420 आईपीसी और धारा 66 (C), सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के तहत मुकदमा दर्ज करवाया था।

    यह आरोप लगाया गया कि 'माईगेट की गोपनीय जानकारियों को' नोब्रोकर और उसके कर्मचारियों ने चुराया है। नोब्रोकर, माईगेट के मौजूदा ग्राहकों के साथ व्यावसायिक संबंध स्थापित करने के लिए माईगेट की जानकारियों का दुरुपयोग कर रहा है और उन्हें बदनाम भी कर रहा है।

    यह दावा किया गया कि माईगेट ने एक विस्तृत आंतरिक जांच की थी, जिसमें ये पाया गया कि नोब्रोकर माईगेट का डेटा चुरा रहा था। माईगेट ने बैंगलोर में एक नकली ग्राहक और ग्राहकों की नकली जानकारी के जर‌िए जाल बिछाया। उस नकली ग्राहक को नोब्रोकर से एक कॉल आई। नोब्रोकर के एक कर्मचारी ने नोब्रोकर पैकेज और/या सेवाओं को बेचने का प्रयास किया। माईगेट के अनुसार, इससे यह स्थापित होता है कि नोब्रोकर की माईगेट की जानकारी तक पहुंच थी, जिसे किसी और के साथ साझा नहीं किया गया था और माईगेट के अनुसार यह नोब्रोकर द्वारा माईगेट के डेटा और जानकारी की चोरी करने के बराबर था।

    इसके बाद, नोब्रोकर ने 28.06.2020 को माईगेट और उसके कर्मचारियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 420 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66 और 43 के तहत दंडनीय अपराध के लिए शिकायत दर्ज की। नोब्रोकर ने माईगेट पर अनैतिक व्यवहार का आरोप लगाया।

    दोनों पक्षों की दलील

    दोनों पक्षों के वकीलों ने दायर की गई शिकायतों के संदर्भ में दलील दी कि ‌कथित अपराध वाणिज्यिक और दीवानी प्रकृति के हैं और आपराधिक कार्यवाही को जारी नहीं रखा जाना चाहिए। हालांकि, दोनों पक्षों ने शिकायतों की जांच जारी रखने को भी कहा।

    कोर्ट का अवलोकन

    पीठ ने कहा कि "हालांकि, आपराधिक शिकायतें दर्ज की गई हैं, जांच जारी है और मामला कोर्ट में है, पेश किए गए दस्तावेजों से यह स्पष्ट है कि, उपरोक्त मामला जब अदालत के समक्ष लंबित था, दोनों कपंनियों, सोशल मीडिया जैसे फेसबुक, व्हाट्सएप, ट्विटर आदि पर भयानक लड़ाई लड़ी। दोनों कंपनियों ने एक दूसरे पर आरोप लगाने में तनिक भी संयम नहीं बरता।"

    पीठ ने सीआईडी ​​को दोनों पक्षों की शिकायतों की जांच करने का निर्देश दिया।

    जांच का आदेश

    नोब्रोकर के निदेशकों ने सीआईडी द्वारा दर्ज की गई शिकायतों को रद्द करने की मांग की। उनकी दलील है कि वे नोब्रोकर में इन्वेस्टी डायरेक्टर हैं, क्योंकि वे नोब्रोकर में निवेशकों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसमें, निवेशक एक वेंचर कैप‌िटल कंपनी है और वे केवल निवेशकों- वेंचर कैपिटल कंपनी के निवेश की सुरक्षा के लिए हैं। उनका नोब्रोकर के रोजमर्रा के काम कोई दखल नही हैं।

    निदेशकों की ओर से पेश एडवोकेट डीपी सिंह a/w एडवोकेट रघुराम कदंबी ने कहा, "याचिकाकर्ता केवल इन्वेस्टी निदेशक हैं, 'नोब्रोकर' के दैनिक कामकाज में उनकी कोई भूमिका नहीं है। माईगेट ‌की शिकायत में इन निदेशकों पर कोई विशेष आरोप नहीं लगे हैं, केवल यह कहा गया है कि वे कंपनी के दिन-प्रतिदिन के प्रभार में हैं, यह इन्वेस्टी निदेशकों के खिलाफ कार्यवाही शुरू करने के लिए पर्याप्त नहीं है।"

    उन्होंने मास्टर सर्कुलर नंबर 1/2011 डेटेड 29.07.2011, जिसे भारत सरकार, कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय द्वारा जारी किया गया है, मंत्रालय द्वारा जारी किए गए जनरल सर्कुलर 1/2020 और सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों पर भरोसा किया।

    माईगेट की ओर से पेश वकील ने यह कहते हुए विरोध किया कि इन्सेस्टी निदेशक कंपनी के दैनिक मामलों के प्रभारी हैं, क्योंकि वे कंपनी में किए गए निवेश कारण कंपनी के वित्त के नियंत्रण में हैं। निवेशक- वेंचन कैपिटल कंपनी के निवेश के ‌बिना नोब्रोकर के पास किए गए अपराधों पर खर्च करने के लिए वित्तीय संसाधन नहीं होते। उनकी सहमति और अनुमोदन के बिना नोब्रोकर कोई राशि खर्च नहीं कर सकती थी। इसलिए, वह मानते हैं कि उन्होंने अपराध किए हैं और उन पर मुकदमा चलाने की आवश्यकता है। कोर्ट ने फैसले में कहा कि कंपनी के खिलाफ लगे कथित अपराध के आरोप के संबंध में, जिसमें निवेश किया गया है, वैंचर कैपिटल कंपनी द्वारा नियुक्त निदेशक पर मुकदमा चलाया जा सकता है।

    केस ड‌िटेल

    केस टाइटिल: शांतनु रस्तोगी और कर्नाटक राज्य

    केस नंबर: आपराधिक याचिका 5084/2020

    आदेश की तिथि: 21 जनवरी, 2021

    कोरम: न्यायमूर्ति सूरज गोविंदराज

    प्रतिनिधित्व: एडवोकेट डीपी सिंह a/w नंदकुमार सीके

    सीनियर एडवोकेट उदय होल्ला a/w एडवोकेट हरीश बीएन।

    एडवोकेट के नागेश्वरप्पा और एडवोकेट मोहम्मद शकीब

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