किसी व्यक्ति को अदालत में पेश होने के लिए मजबूर करने के लिए सीआरपीसी की धारा 82, 83 के तहत उद्घोषणा कब जारी की जानी चाहिए?: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया

Avanish Pathak

11 March 2023 10:50 AM GMT

  • Allahabad High Court

    Allahabad High Court

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया कि कब किसी व्यक्ति को अदालत में पेश होने के लिए मजबूर करने के लिए सीआरपीसी की धारा 82, 83 के तहत उद्घोषणा जारी की जाए।

    जस्टिस राजेश सिंह चौहान की पीठ ने उद्घोषणा, समन और गिरफ्तारी वारंट जारी करने के लिए सीआरपीसी में निर्धारित प्रक्रिया की व्याख्या की।

    उद्घोषणा जारी करने के संबंध में आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) में निर्धारित जटिल प्रक्रिया को सुलझाते हुए, पीठ ने भ्रष्टाचार के एक मामले से संबंधित पुरुषोत्तम चौधरी नामक व्यक्ति के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 82 के तहत एक गैर जमानती वारंट और प्रक्रिया जारी करने को रद्द कर दिया।

    कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि यदि ट्रायल कोर्ट के समक्ष किसी व्यक्ति/आरोपी व्यक्ति की उपस्थिति आवश्यक है, तो सबसे पहले सम्मन जारी किया जाना चाहिए, और यदि संबंधित व्यक्ति निर्धारित तिथि पर संबंधित न्यायालय के समक्ष उपस्थित नहीं होता है, तो संबंधित न्यायालय ‌को पहले यह सत्यापित करना चाहिए कि आवेदक पर ऐसा सम्‍मन तामील किया गया है या नहीं और यदि ऐसा सम्‍मन उस पर व्यक्तिगत रूप से तामील नहीं किया गया है तो उसे कम से कम एक और सम्मन जारी किया जाना चाहिए था।

    न्यायालय ने आगे कहा कि अगली तारीख पर, संबंधित न्यायालय को इस तथ्य को सत्यापित करना चाहिए कि संबंधित व्यक्ति को ऐसा सम्मन तामील किया गया है या नहीं और यदि न्यायालय को यह विश्वास है कि संबंधित व्यक्ति को सम्मन तामील किए जाने के बावजूद वह टाल रहा है तब कानूनी प्रक्रिया के तहत जमानती वारंट जारी किया जा सकता है।

    हालांकि, कोर्ट ने कहा कि गैर जमानती वारंट के चरण में, अदालत को उचित सावधानी बरतनी चाहिए और खुद को आश्वस्त करना चाहिए कि जमानती वारंट की तामील के बावजूद, कुछ तारीखों पर कानून की प्रक्रिया की अनदेखी की गई है, केवल उस चरम परिस्थिति में ही गैर जमानती वारंट जारी किया जाए।

    न्यायालय ने तर्क दिया कि कानून की ऐसी प्रक्रिया प्रत्यक्ष रूप से किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता से संबंधित है, जिसे संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत किया गया है। दूसरे शब्दों में, न्यायालय ने कहा कि गैर-जमानती वारंट जारी करने से पहले ट्रायल कोर्ट को उचित सावधानी बरतना जरूरी है। गैर-जमानती वारंट को सरसरी तौर पर जारी नहीं किया जाना चाहिए।

    किसी आरोपी के खिलाफ धारा 82 और 83 सीआरपीसी के तहत उद्घोषणा जारी करने के संबंध में कोर्ट ने कहा कि ऐसी स्थिति में सावधानी और एहतियात की मात्रा बढ़ाई जाएगी।

    न्यायालय ने कहा कि उद्घोषणा संबंधित ऐसे आदेश केवल अभियोजन पक्ष की ओर से दिए आवेदन, जिसके साथ एक हलफनामा भी दिया गया हो कि अभियुक्त के खिलाफ जमानती वारंट और गैर-जमानती वारंट ‌की तामील के लिए सभी उचित प्रयास किए गए है और वह कानून की प्रक्रिया से बच रहा/रही है, के बाद जारी किए जा सकते हैं।

    और कोर्ट को इस आशय के विशिष्ट और ठोस कारण बताने चाहिए कि अब 82 सीआरपीसी । और 83 सीआरपीसी के तहत कार्यवाही शुरू करने के अलावा कोई रास्ता नहीं है।

    इस संबंध में, कोर्ट ने इंदर मोहन गोस्वामी और अन्य बनाम उत्तरांचल और अन्य राज्य, 2007 AIR SCW 6679 पर भरोसा किया, जिसमें यह विशेष रूप से कहा गया था कि उद्घोषणा सरसरी तौर पर जारी नहीं की जा सकती है।

    केस टाइटलः पुरुषोत्तम चौधरी बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो, पुलिस अधीक्षक सीबीआई / एसीबी लखनऊ के माध्यम से[ Appl U/S 482 No. - 1974 of 2023]

    केस साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (एबी) 92

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