जब न्यूनतम सजा का वर्णन न किया गया हो, तो 60 दिन के भीतर आरोपपत्र दाखिल न होने पर अभियुक्त डिफॉल्ट बेल का हकदार होता है : दिल्ली हाईकोर्ट ने पत्रकार राजीव शर्मा की जमानत मंजूर की

LiveLaw News Network

5 Dec 2020 6:38 AM GMT

  • जब न्यूनतम सजा का वर्णन न किया गया हो, तो 60 दिन के भीतर आरोपपत्र दाखिल न होने पर अभियुक्त डिफॉल्ट बेल का हकदार होता है : दिल्ली हाईकोर्ट ने पत्रकार राजीव शर्मा की जमानत मंजूर की

    दिल्ली हाईकोर्ट ने चीन के खुफिया विभाग को संवेदनशील सूचना लीक करने के आरोपों के तहत गिरफ्तार किए गए पत्रकार राजीव शर्मा की जमानत मंजूर कर ली है।

    कोर्ट ने कहा कि यदि आरोपी के खिलाफ 60 दिनों के भीतर आरोप पत्र दायर नहीं किया जाता है और जिस अपराध के तहत उसे गिरफ्तार किया गया है उसकी सजा की न्यूनतम अवधि कानून में वर्णित ना हो, तो संबंधित अभियुक्त डिफॉल्ट ज़मानत का हकदार होता है।

    इससे पहले राजीव शर्मा ने इस आधार पर डिफॉल्ट जमानत की अर्जी दाखिल की थी कि उनकी गिरफ्तारी के 60 दिन बीत चुके हैं और अभियोजन पक्ष की ओर से अभी तक आरोप पत्र दायर नहीं किए गए हैं। मजिस्ट्रेट ने इस अर्जी को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि इस मामले में आरोप पत्र दायर करने की अवधि 90 दिन है। कोर्ट ने सरकार की वह दलील स्वीकार कर ली थी कि चूंकि इस मामले में न्यूनतम सजा का वर्णन नहीं किया गया है और अधिकतम सजा 10 साल से अधिक है, इसलिए आरोप पत्र गिरफ्तारी के 60 दिन बाद, लेकिन 90 दिन से पहले दायर किया जा सकता है।

    न्यायमूर्ति योगेश खन्ना ने पुनर्विचार याचिका पर विचार करते हुए 'राजीव चौधरी बनाम दिल्ली सरकार 2001(5) एससीसी 34' और 'राकेश कुमार पॉल बनाम असम सरकार' के मामलों में दिये गये फैसलों का उल्लेख किया तथा कहा कि धारा 167(2) में 'नॉट लेस दैन' (इससे कम नहीं) शब्दों का अर्थ है कि जेल की सजा 10 साल या उससे अधिक की होगी तथा इसमें केवल वे मामले आएंगे जिनमें सजा और जेल की अवधि स्पष्ट तौर पर 10 साल या उससे अधिक होगी।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि 'राकेश कुमार पॉल' मामले में यह कहा गया था कि उन सभी मामलों में जहां न्यूनतम सजा 10 साल से कम है, लेकिन अधिकतम सजा मृत्युदंड या आजीवन कारावास न हो तो सीआरपीसी की धारा 167(2)(ए)(ii) लागू होगी और आरोप पत्र दाखिल न किये जाने की स्थिति में अभियुक्त 60 दिन बाद डिफॉल्ट जमानत पाने का हकदार होगा।

    "जिस आधिकारिक गोपनीयता कानून के तहत याचिकाकर्ता को अभियुक्त बनाया गया है, उसके तहत हालांकि सजा को 14 साल तक बढ़ाये जाने का प्रावधान है, लेकिन संबंधित धारा सजा की न्यूनतम अवधि के बारे में कुछ भी नहीं कहती और 'राजीव चौधरी' और 'राकेश कुमार पॉल' के मामलों में दिये गये फैसलों के अनुसार यह '10 साल या उससे अधिक' की स्पष्ट अवधि की कसौटी पर पास नहीं करती। ऐसे में चालान की अवधि 60 दिन की होगी, इसलिए मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट द्वारा दिये गये देश को निरस्त किया जाता है तथा जमानत याचिका मंजूर की जाती है। इस प्रकार याचिकाकर्ता डिफॉल्ट जमानत का हकदार है, क्योंकि चालान 60 दिनों के भीतर नहीं दाखिल किया गया।"

    "राकेश कुमार पॉल मामले में कोर्ट ने कहा था कि विधायिका निस्संदेह सजा का निर्धारण करते वक्त सजा देने वाले कोर्ट को न्यूनतम सजा (नॉट लेस दैन) के लिए बाध्य कर सकती है और यह अधिकतम सजा भी तय कर सकती है। यदि न्यूनतम सजा का निर्धारण कर दिया जाता है तो सजा सुनाने वाले जज के पास निर्धारित न्यूनतम सजा से कम देने का विकल्प नहीं होता। इसलिए सीआरपीसी की धारा 167 की उपधारा (2) प्रोवाइजो (ए) के क्लॉज (i) में वर्णित 'नॉट लेस दैन' शब्दों को स्वाभाविक एवं स्पष्ट अर्थ दिया जाना चाहिए, जो कहता है - न्यूनतम सीमा से कम नहीं, और सीआरपीसी की धारा 167 के मामले में इन शब्दों को 10 साल की न्यूनतम सजा वाले दंडनीय अपराध से संबंधित होना चाहिए।"

    यह टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने राजीव शर्मा की डिफॉल्ट जमानत मंजूर कर ली तथा जेल अधीक्षक/ ड्यूटी एमएम की संतुष्टि के लिए एक लाख रुपये के निजी बांड भरने का निर्देश दिया।

    केस : राजीव शर्मा बनाम दिल्ली सरकार [क्रिमिनल रिवीजन पिटीशन, 363 / 2020]

    कोरम : न्यायमूर्ति योगेश खन्ना

    वकील : सीनियर एडवोकेट आदीश सी अग्रवाल, सरकारी वकील राहुल मेहरा

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