व्हाट्सएप संदेशों का कोई स्पष्ट मूल्य नहीं, जब तक कि उन्हें भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65 बी (4) के अनुसार प्रमाणित नहीं किया जाताः पंजाब और हरियाणा उच्‍च न्यायालय

LiveLaw News Network

17 Jan 2021 12:31 PM GMT

  • व्हाट्सएप संदेशों का कोई स्पष्ट मूल्य नहीं, जब तक कि उन्हें भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65 बी (4) के अनुसार प्रमाणित नहीं किया जाताः पंजाब और हरियाणा उच्‍च न्यायालय

    पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने कहा है कि व्हाट्सएप संदेशों का कोई स्पष्ट मूल्य नहीं होगा, जब तक कि उन्हें भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65 बी के अनुसार प्रमाणित नहीं किया जाता है। (राकेश कुमार सिंगला बनाम यूनियन ऑफ इंडिया)

    जस्टिस जयश्री ठाकुर की एकल पीठ ने नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट (एनडीपीएस एक्ट) के तहत एक मामले में जमानत अर्जी की सुनवाई करते हुए यह अवलोकन किया।

    जमानत अर्जी का विरोध करने के लिए, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) ने आरोपियों के कुछ कथित व्हाट्सएप चैट पर भरोसा किया था। एनसीबी ने प्रस्तुत किया कि व्हाट्सएप संदेशों के स्क्रीनशॉट ने याचिकाकर्ता को प्रतिबंध‌ित पदार्थों से जोड़ा है।

    हालांकि, कोर्ट ने पूछा कि क्या ऐसे संदेश को धारा 65 बी प्रमाण पत्र के साथ प्रस्तुत किया गया हैं।

    नकारात्मक उत्तर प्राप्त होने पर पीठ ने कहा, "अर्जुन पंडितराव खोतकर बनाम कैलाशकुशनराव गोरान्‍त्याल और अन्य (2020) 7 SCC 1 मामले में द‌िए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही माना है कि इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड पर निर्भरता होने पर भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65 बी की आवश्यकता होती है। इसलिए, उक्त संदेश आज की तारीख में कोई भी स्पष्ट मूल्य नहीं होगा।"

    खंडपीठ ने हालांकि एनसीबी को धारा 65 बी का अनुपालन करने के बाद व्हाट्सएप संदेशों पर भरोसा करने की स्वतंत्रता प्रदान की।

    पीठ ने आरोपियों को जमानत देते हुए कहा, "यह कहने की जरूरत नहीं है कि नारकोटिक्स ब्यूरो हमेशा भारतीय साक्ष्य अध‌िनियम की धारा 65 बी के प्रावधानों के अनुपालन के बाद व्हाट्सएप संदेशों पर भरोसा करने के लिए स्वतंत्रता पर होगा।"

    एनसीबी ने आरोपी द्वारा एनडीपीएस अधिनियम की धारा 67 के तहत हिरासत में दिए गए बयानों पर भरोसा करके प्रथम दृष्टया अपराध किए जाने का तर्क दिया था।

    हालांकि, पीठ ने तोफान सिंह बनाम यू‌नियन ऑफ इंडिया में हाल ही दिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आलोक में धारा 67 के बयानों पर भरोसा नहीं करने का फैसला किया, जिसमें कहा गया था कि ऐसे बयान, हिरासत की स्‍वीकारोक्तियों को बराबर हैं, यह उन्हें सबूतों में शामिल किए जाने लायक नहीं बनाता है।

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