यदि सामान्य आशय नहीं है तो व्हाट्सएप ग्रुप एडमिन ग्रुप मेंबर की आपत्तिजनक पोस्ट के लिए ज़िम्मेदार नहींः बॉम्बे हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

26 April 2021 2:00 PM IST

  • यदि सामान्य आशय नहीं है तो व्हाट्सएप ग्रुप एडमिन ग्रुप मेंबर की आपत्तिजनक पोस्ट के लिए ज़िम्मेदार नहींः बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने माना है कि यदि सामान्य आशय नहीं है तो व्हाट्सएप ग्रुप एडमिन को ग्रुप के मेंबर द्वारा पोस्ट की गई आपत्तिजनक सामग्री के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है।

    अदालत ने कहा कि मैसेजिंग ऐप 'व्हाट्सएप' पर केवल एक ग्रुप के एडमिन के रूप में कार्य करना, 'सामान्य आशय' के रूप में नहीं माना जाएगा क्योंकि एडमिन ग्रुप पर पोस्ट करने से पहले सामग्री को विनियमित नहीं कर सकता है।

    जस्टिस जेड ए हक और जस्टिस ए बी बोरकर की खंडपीठ ने कहा कि,

    ''एक ग्रुप एडमिन को आपत्तिजनक सामग्री पोस्ट करने वाले ग्रुप के मेंबर के किसी ऐसे कार्य के लिए प्रतिनिधिक रूप से उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है, जब तक कि यह न दर्शाया जाए कि व्हाट्सएप ग्रुप के मेंबरऔर एडमिन द्वारा इस योजना के तहत कार्य को करने का एक जैसा आशय था या यह पूर्व-व्यवस्थित योजना का कार्य था। व्हाट्सएप सेवा उपयोगकर्ता के मामले में केवल एक ग्रुप एडमिनिस्ट्रेटर के रूप में कार्य करने से सामान्य आशय स्थापित नहीं होता है।''

    पीठ ने एक व्हाट्सएप ग्रुप के एडमिन के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी और आरोप पत्र को रद्द करते हुए यह आदेश दिया है। इस एडमिन के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 354-ए (1) (iv) (यौन संबंधी टिप्पणी करना), 509 (शब्द, इशारा या कियी कार्य द्वारा महिला की विनम्रता का अपमान करना),धारा 107(किसी काम के लिए उकसाना)और आईटी एक्ट की धारा 67 के तहत मामला बनाया गया था। उस पर आरोप था कि उसने एक महिला सदस्य के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी करने वाले ग्रुप के मेंबर के खिलाफ कार्रवाई में अपनी बेबसी दिखाई थी या उसने कोई कार्रवाई नहीं की थी।

    महिला ने तर्क दिया कि सदस्य ने उसके खिलाफ गंदी भाषा का उपयोग किया था,परंतु उसके बावजूद भी उस मेंबर के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। एडमिन ने न ही व्हाट्सएप ग्रुप से उस आरोपी को हटाया। इसके अलावा, एडमिन ने आरोपी से माफी मांगने के लिए भी नहीं कहा था, इसके विपरीत, उसने इस मामले में अपनी बेबसी जाहिर की थी।

    हालाँकि, न्यायालय ने कहा कि धारा 354-ए (1) (iv) का तात्पर्य प्रतिनिधिक दायित्व से नहीं है और न ही यह कहा जा सकता है कि विधानमंडल का उद्देश्य आवश्यक निहितार्थ द्वारा प्रतिनिधिक दायित्व को लागू करना था।

    पीठ ने कहा कि,''हमारी राय में, वर्तमान मामले के तथ्यों में, एक व्हाट्सएप समूह के एडमिन द्वारा आपत्तिजनक टिप्पणी पोस्ट करने वाले किसी मेंबर को ग्रुप से न हटाने या उस मेंबर से माफी मंगवाने में विफलता को एडमिन द्वारा यौन संबंधी टिप्पणी करने के समान नहीं माना जाएगा।''

    गौरतलब है कि पीठ ने कहा कि इन ग्रुप के मेंबर को उनके द्वारा किए गए पोस्ट के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है, परंतु आईपीसी में ग्रुप के एडमिन के प्रतिनिधिक दायित्व के संबंध में कोई प्रावधान नहीं है।

    ''व्हाट्सएप ग्रुप के एडमिन के पास ग्रुप पर आने से पहले सामग्री को विनियमित, सीमित या सेंसर करने की शक्ति नहीं है। लेकिन, अगर व्हाट्सएप ग्रुप का कोई मेंबर किसी सामग्री को पोस्ट करता है, जो कानून के तहत कार्रवाई योग्य है, तो ऐसे व्यक्ति को कानून के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत उत्तरदायी ठहराया जा सकता है। प्रतिनिधिक दायित्व बनाने वाले एक विशिष्ट दंडात्मक प्रावधान के अभाव में, एक व्हाट्सएप ग्रुप के एक प्रशासक को किसी समूह के मेंबर द्वारा पोस्ट की गई आपत्तिजनक सामग्री के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है।''

    खंडपीठ ने उल्लेख किया कि एक ग्रुप एडमिन के पास ग्रुप में किसी व्यक्ति को जोड़ने और हटाने की सीमित शक्तियां होती हैं।

    प्रत्येक चैट ग्रुप में एक या अधिक ग्रुप एडमिन होते हैं, जो ग्रुप के मेंबर को हटाकर या जोड़कर ग्रुप में मेंबर की भागीदारी को नियंत्रित करते हैं। एक ग्रुप एडमिन के पास ग्रुप के किसी मेंबर को हटाने या ग्रुप के अन्य मेंबर को जोड़ने की सीमित शक्ति होती है। एक बार ग्रुप बनाने के बाद, एडमिन और मेंबर का कार्य ग्रुप में मेंबर को जोड़ने या हटाने की शक्ति को छोड़कर, एक-दूसरे के बराबर होता है।

    याचिकाकर्ता के लिए एडवोकेट राजेंद्र डागा पेश हुए जबकि अतिरिक्त लोक अभियोजक टीए मिर्जा राज्य की ओर से पेश हुए।

    (किशोर तरोन बनाम महाराष्ट्र राज्य व अन्य)

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