जहां तक न्यायपालिका की संस्थाओं (शैक्षणिक) का सवाल, विधि के छात्रों के कल्याण का मामला भी जनहित से जुड़ा मामला : कर्नाटक हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

24 July 2020 12:55 PM GMT

  • जहां तक न्यायपालिका की संस्थाओं (शैक्षणिक) का सवाल, विधि के छात्रों के कल्याण का मामला भी जनहित से जुड़ा मामला : कर्नाटक हाईकोर्ट

    बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने शुक्रवार को कर्नाटक हाईकोर्ट को सूचित किया कि उसने एक उप-समिति का गठन कर दिया है, जो इस मुद्दे पर विचार करेगी कि क्या पांच वर्षीय लॉ कोर्स के अंतिम वर्ष के छात्रों के लिए मूट कोर्ट, इंटर्नशिप, प्री-ट्रायल तैयारी आदि करने के लिए बने अनिवार्य नियम में छूट दी जा सकती है या वैकल्पिक नियम तैयार किए जा सकते हैं?

    काउंसिल की तरफ से पेश अधिवक्ता श्रीधर प्रभु ने हाईकोर्ट को सूचित किया कि उप-समिति इस बात पर भी विचार कर रही है कि क्या शैक्षणिक वर्ष 2019-20 के लिए लॉ विश्वविद्यालयों को उनके वैकल्पिक नियम बनाने की स्वतंत्रता दी जा सकती है?

    उन्होंने तर्क दिया कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने अनिवार्य किया है कि सितंबर 2020 से सभी अंतिम वर्ष की परीक्षाएं करवाई जाएं। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित है और याचिका पर सोमवार को सुनवाई होने की संभावना है। उन्होंने कहा, ''मान लीजिए सर्वोच्च न्यायालय ने यह कह दिया कि अंतिम वर्ष की परीक्षा बिल्कुल नहीं हो सकती है, तो इस याचिका पर निर्णय देने आवश्यकता नहीं रहेगी।''

    प्रभु ने तर्क दिया कि काउंसिल एक कैच -22 या उलझन की स्थिति में है, जैसा कि ''एक दृष्टिकोण यह है कि कुछ छात्र ऐसे हैं,जिन्होंने पहले वर्ष से ही चैंबर्स में भाग लेना, डायरी बनाना आदि शुरू कर दिया था,जबकि यह सब सिलेबस अंतिम वर्ष के लिए निर्धारित किया गया है। वास्तव में, यह भी सच है कि अंतिम सेमेस्टर के छात्रों ने भी अपने सेमेस्टर के शुरूआती चरण यानि फरवरी माह से ही चैंबर मीटिंग और मूट कोर्ट में भाग लेना शुरू कर दिया था। छात्रों के एक समूह कहना है कि हम पहले ही अपनी उपस्थित दर्ज करवा चुके हैं और हमें उन छात्रों के साथ नहीं रखा जा सकता है जिन्होंने कभी मूट कोर्ट या चैंबर मीटिंग में भाग नहीं लिया है। छात्रों के दूसरे समूह का कहना है कि हमें ऐसी स्थिति पैदा होने की कभी उम्मीद नहीं की थी, इसलिए हम इसे पूरा करने के लिए सेमेस्टर के दूसरे चरण की प्रतीक्षा कर रहे थे।''

    उन्होंने यह भी दलील दी कि यूनिवर्सिटी लॉ कॉलेज, बैंगलोर के छात्र याचिकाकर्ता गौथम आर और कृष्णमूर्ति टी के, ने व्यक्तिगत लाभ के लिए यह याचिका दायर की है और इस तरह याचिका सार्वजनिक हित याचिका यानि पीआईएल नहीं हो सकती है।

    मुख्य न्यायाधीश अभय ओका और न्यायमूर्ति एचपी संदेश की पीठ ने कहा, ''इस तरह की प्रार्थनाएं एक जनहित याचिका या रिट याचिका में की जा सकती हैं। जहां तक न्यायपालिका की संस्थाओं (शैक्षणिक) का सवाल है, विधि के छात्रों के कल्याण का मामला भी जनहित से जुड़ा मामला है।''

    अदालत ने अब याचिकाकर्ताओं को निर्देश दिया है कि वह याचिका में कर्नाटक राज्य विधि विश्वविद्यालय को भी एक प्रतिवादी पक्षकार बनाएं ताकि समान निर्देश उनको भी दिए जा सकें।

    पिछली सुनवाई पर कर्नाटक हाईकोर्ट ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) को निर्देश दिया था कि वह स्पष्ट करें कि क्या उनके पास नियमों को शिथिल करने या उनमें राहत देने का अधिकार है? क्या इस अधिकार का उपयोग विधि विश्वविद्यालयों को सभी अंतिम वर्ष के छात्रों के लिए अनिवार्य विनियमों के बजाय वैकल्पिक दिशा-निर्देश जारी करने की अनुमति देने के लिए किया जा सकता है ? ताकि पांच वर्षीय लाॅ कोर्स के अंतिम वर्ष के छात्रों को शैक्षिक वर्ष 2019-20 के लिए मूट कोर्ट, इंटर्नशिप, प्री-ट्रायल तैयारी आदि से छूट दी जा सकें।

    पीठ ने यह भी कहा था कि-

    ''आज बार काउंसिल के सदस्य यह निर्णय ले सकते हैं लेकिन कल हम नहीं जानते कि क्या होगा। इसलिए हमें छात्रों के भविष्य को सुरक्षित करना होगा।''

    पीठ ने कहा था कि-

    ''मान लीजिए कि एक छात्र पाठ्यक्रम पूरा होने के बाद एक विदेशी विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त करना चाहता है और यदि बाद में इस डिग्री को मान्यता नहीं दी जाती है, तो यह उनके करियर को प्रभावित करेगा।''

    याचिका में कहा गया था कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया रूल्स के पार्ट IV के शेड्यूल II में शैक्षणिक मानकों और पाठ्यक्रमों की रूपरेखा बताई गई है। जिसे एक कानूनी संस्थान द्वारा कानूनी शिक्षा के पाठ्यक्रम में पढ़ाने की आवश्यकता होती है। कानूनी शिक्षा के नियमों की शेड्यूल II की प्रविष्टि 6 के तहत पार्ट II (बी) ( बार काउंसिल आॅफ इंडिया रूल्स के पार्ट IV ) के तहत बताया गया है कि संबंधित विश्वविद्यालयों/ संस्थानों को ''अनिवार्य नैदानिक पाठ्यक्रम'' आयोजित करवाना होगा। उक्त प्रविष्टि 6 के तहत पेपर 24 ''मूट कोर्ट एक्सरसाइज और इंटर्नशिप'' से संबंधित है। जो इस प्रकार है-

    मूट कोर्ट एक्सरसाइज और इंटर्नशिप- इस पेपर में 30-30 अंकों के तीन घटक हो सकते हैं और 10 अंकों का एक वाइवा।

    (ए) मूट कोर्ट (30 अंक)- प्रत्येक छात्र को एक साल में कम से कम तीन कोर्ट करने की आवश्यकता होती है,जिनमें प्रत्येक के लिए 10-10 अंक होते हैं। मूट कोर्ट का काम बताई कई समस्या पर आधारित होता है। इसमें लिखित प्रस्तुतियों के लिए 5 अंक और ओरल एडवोकेसी या मौखिक दलीलों के लिए 5 अंक का मूल्यांकन किया जाता है।

    (बी) दो मामलों में ट्रायल का अनुसरण करना, एक सिविल और एक आपराधिक (30 अंक)-

    छात्रों को एलएलबी की पढ़ाई के दौरान अंतिम दो या तीन वर्षों के दौरान दो ट्रायल में भाग लेने की आवश्यकता होती है। उन्हें रिकॉर्ड बनाकर रखना होता है,जिसमें कोर्ट असाइनमेंट के दौरान जब वह कोर्ट जाते हैं तो उनकी उपस्थिति के दौरान देखे गए सभी चरणों के बारे में उल्लेख करना होता है। इस काम के लिए उनको तीस अंक मिलते हैं।

    (सी) साक्षात्कार तकनीक और प्री- ट्रायल तैयारी और इंटर्नशिप डायरी (30 अंक)- प्रत्येक छात्र को वकील के कार्यालय/कानूनी सहायता कार्यालय में दो मुविक्कलों के साक्षात्कार सत्र या बातचीत का निरीक्षण करना होगा और एक डायरी में यह सारी कार्यवाही रिकॉर्ड करनी होगी। जिसके 15 अंक होंगे। प्रत्येक छात्र को अधिवक्ता द्वारा तैयार किए जा रहे दस्तावेज और अदालत के कागजात और सूट/ याचिका दायर करने की प्रक्रिया का निरीक्षण करना होगा। इसे डायरी में दर्ज किया जाएगा, जिसके 15 अंक होंगे।

    याचिका में कहा गया था कि COVID19 महामारी के कारण हाईकोर्ट ने न्यायालयों के नियमित कामकाज और संचालन के लिए कुछ मानक संचालन प्रक्रियाएं निर्धारित कर रखी है। जिसमें यह स्पष्ट रूप से निर्धारित किया गया है कि अदालतों के परिसर में अधिवक्ताओं के लिपिकों, वादकारियों और साथ ही किसी अन्य तीसरे के प्रवेश पर सख्त प्रतिबंध होगा।

    याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि ऐसी परिस्थितियों में कानून के अंतिम वर्ष के छात्रों के लिए अदालत परिसर में प्रवेश करना और अदालत की कार्यवाही का निरीक्षण करना या पाठ्यक्रम पूरा करने के उद्देश्य से एक वकील के कार्यालय/ कानूनी सहायता कार्यालय में मुविक्कलों के साक्षात्कार सत्रों का निरीक्षण करना असंभव होगा।

    वहीं लॉ चैंबर्स/ फर्म ऑफ एडवोकेट्स भी इस समय सोशल डिस्टेंसिंग के मानदंडों को ध्यान में रखते हुए अपने कार्यालयों में लॉ स्कूल के छात्रों को इंटर्न रखने में अनिच्छुक हैं। प्रतिवादियों की यह उदासीनता और बेपरवाही छात्रों को बड़े स्तर पर परेशान करने की संभावना रखती है।

    याचिका में मांग की गई थी कि शैक्षणिक वर्ष 2019-2020 के लिए बार काउंसिल ऑफ इंडिया रूल्स ('लीगल एजुकेशन के नियम') के भाग IV के अनुसूची या शेड्यूल II के तहत पेपर 24 के क्लॉज (बी) और (सी) को खत्म किया जाए या इसमें छूट दी जाए।

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