लोकल ट्रेनों में यात्रा करने की अनुमति देने व फिजिकल हियरिंग शुरू करने का मामला : 'हम केवल वकीलों के बारे में नहीं सोच सकते, लोग भूख से मर रहे हैं, अपने रोजगार खो रहे हैं : बॉम्बे हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
30 Sept 2020 3:28 PM IST
बॉम्बे हाई कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि ऐसे समय में जब लोग भूख से मर रहे हैं, अपनी नौकरी खो रहे हैं, कोर्ट उन याचिकाओं पर सुनवाई नहीं कर सकता,जिनमें केवल वकीलों को आवश्यक सेवाओं की सूची में शामिल करने की मांग की गई है ताकि वह लोकल ट्रेनों में यात्रा कर सकें। कोर्ट ने कहा कि हमें ऐसे फार्मूले पर विचार करना होगा,जिससे आम जनता को भी फायदा पहुंच सकें।
मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति जीएस कुलकर्णी की खंडपीठ दो अलग-अलग जनहित याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई कर रही थी, जिनमें से एक बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र और गोवा की तरफ से दायर की गई थी। इस याचिका में मांग की गई थी कि अधिवक्ताओं को आवश्यक सेवाओं की सूची में शामिल किया जाए। दूसरी जनहित याचिका कंज्यूमर कोर्ट एडवोकेट्स एसोसिएशन की तरफ से दायर की गई थी,जिसमें उपभोक्ता अदालतों में फिजिकल हियरिंग फिर से शुरू करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी।
मामले की शुरुआत में ही, मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता ने दोनों याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश एडवोकेट उदय वारुंजिकर से कहा कि-
''क्या आपने आज अखबार देखा है? सरकार अब निजी संगठनों को खोलने और 50 प्रतिशत क्षमता के साथ कार्य करने की अनुमति दे रही है।
हम इस बात पर विचार कर रहे थे कि पीक ऑवर्स के दौरान फिजिकल हियरिंग के लिए कोर्ट खोलने के बजाय, हम 2 से 6 बजे के बीच कोर्ट को खोल सकते हैं,उस अवधि में थोड़ा दबाव कम होता है।''
इस मौके पर, सरकारी वकील पूर्णिमा कंथारिया ने हस्तक्षेप किया और कहा कि वर्तमान में चलने वाली सभी ट्रेनें भरकर चल रही हैं और इनमें लॉकडाउन के पहले से ज्यादा भीड़ बढ़ गई है।
इस पर, न्यायमूर्ति कुलकर्णी ने कहा-
''खाली घंटों को क्यों नहीं पकड़ना चाहिए यानी जब ट्रेनों में भीड़ कम होती है (फिजिकल हियरिंग के लिए)? हम सभी जानते हैं कि मुंबई में जीवन कैसा है। इसलिए हम जो कर सकते हैं, वो यह है कि हम ट्रैफिक के कम दबाव वाले घंटों के दौरान मामलों की सुनवाई कर सकते हैं।''
मुख्य न्यायाधीश ने, इसके बाद उस याचिका पर विचार किया,जिसमें वकीलों को आवश्यक सेवाओं की सूची में शामिल करने की मांग की गई थी ताकि लोकल ट्रेनों में उनकी यात्रा सुविधाजनक बन सकें। कोर्ट ने कहा कि-
''हम इसे केवल वकीलों तक सीमित नहीं रख सकते हैं, यह पक्षपाती लग सकता है। हम केवल वकीलों के बारे में नहीं सोच सकते हैं। आज स्थिति ऐसी है कि लोग भूख से मर रहे हैं, वे अपनी नौकरी खो रहे हैं। इसलिए हमें एक ऐसा फार्मूला तैयार करना होगा जिससे दूसरों को भी फायदा हो।''
कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा रेस्तरों को खोलने के संबंध में लिया गया फैसला भी एक स्वागत योग्य कदम है,इससे उन लोगों को लाभ होगा जो अपनी आजीविका खो चुके हैं। इसके बाद मुख्य न्यायाधीश दत्ता ने फिजिकल हियरिंग को फिर से शुरू करने में लोगों की आशंकाओं का उल्लेख किया और कहा कि-
''केरल में स्थिति गंभीर है। ओणम के बाद, कोरोनावायरस के मामलों में 126 प्रतिशत वृद्धि हुई है। इसलिए, लोगों को राज्यों और केंद्र द्वारा निर्धारित प्रोटोकॉल का पालन करना होगा।
लोगों के सहयोग की जरूरत है। बार काउंसिल अधिवक्ताओं के लिए है, इसमें कोई संदेह नहीं है लेकिन आप एक वैधानिक निकाय हैं, इसलिए आपका दूसरों के प्रति भी कर्तव्य है।''
अंत में, पीठ ने राज्य से कहा कि वह निचली अदालतों जैसे कि उपभोक्ता अदालतों आदि के वकीलों को लोकल ट्रेनों में यात्रा करने की अनुमति देते समय आज की सुनवाई की चर्चा और दलीलों पर भी विचार करें और उसी अनुसार अपना जवाब दायर करें।
स्टेट बार काउंसिल की तरफ से दायर जनहित याचिका में कहा गया है कि-
''एमएमआरडीए क्षेत्र में, जिसमें मुंबई शहर, उपनगर, ठाणे, पालघर और रायगढ़ जिले शामिल हैं, वहां पर 25,000 वकील हैं। उनमें से अधिकांश पास के कोर्ट परिसरों में प्रैक्टिस कर रहे हैं। हालांकि, अन्य कोर्ट के समक्ष लंबित मामलों के लिए, उनमें से कुछ वकील रेलवे की सेवाओं पर निर्भर हैं। यह भी प्रस्तुत किया गया था कि उनमें से अधिकांश वकीलों के अन्य कोर्ट परिसरों में प्रतिदिन मामले नहीं होते हैं, लेकिन काफी सारे वकीलों को दूसरे कोर्ट परिसर या अपने कार्यालयों तक पहुंचने के लिए लोकल ट्रेनों से यात्रा करनी पड़ती है। मोटे तौर पर वर्तमान स्थिति में लगभग 2000 वकील पश्चिमी, हार्बर और सेंट्रल रेलवे में यात्रा कर सकते हैं।''
दूसरी ओर, कंज्यूमर कोर्ट एडवोकेट्स एसोसिएशन की तरफ से दायर याचिका में मांग की गई थी कि फिजिकल हियरिंग या वर्चुअल हियरिंग शुरू करने के लिए निर्देश दिए जाए ताकि जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग और राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के समक्ष लंबित उपभोक्ता विवादों को प्रभावी तरीके से निपटाया जा सकें।
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