वाईजैग त्रासद‌ीः एनजीटी ने कहा, पर्यावरण मामलों में उसे स्वतः संज्ञान लेने का अधिकार है

LiveLaw News Network

4 Jun 2020 2:30 AM GMT

  • वाईजैग त्रासद‌ीः एनजीटी ने कहा, पर्यावरण मामलों में उसे स्वतः संज्ञान लेने का अधिकार है

    नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने सोमवार को कहा कि उसके पास पर्यावरण कानून के डिफॉल्टरों के खिलाफ सूओ मोटो कार्यवाही करने की शक्ति और अधिकार क्षेत्र है। इस प्रकार ट्रिब्यूनल की ओर से दक्षिण कोरियाई कंपनी एलजी पॉलिमर के खिलाफ वाइजैग में हुई केमिकल गैस रिसाव की दुर्घटना में दर्ज सूओ मोटो मामला अवैध नहीं है।

    एलजी पॉलिमर की ओर से दायर की एक समीक्षा याचिका, जिसमें कहा कहा गया था कि उक्‍त मामले में एनजीटी सूओ मोटो क्षेत्राधिकार का उपयोग नहीं कर सकती है, पर एनजीटी अध्यक्ष जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की पीठ ने कहा।

    ट्र‌िब्युनल ने कहा, "एनजीटी के पास पर्यावरणीय क्षति के पीड़ितों को राहत और मुआवजा प्रदान करने, संपत्ति और पर्यावरण की पुनस्‍थापना का उद्देश्य और शक्ति है। इस उद्देश्य के ‌लिए एनजीटी के पास अपनी प्रक्रिया विकसित करने की व्यापक शक्तियां हैं। उपयुक्त परिस्थितियों में, इस शक्ति में ट्रिब्यूनल के पास मुकदमे की सुओ मोटो कार्यवाही का अधिकार शामिल है। साथ ही पर्यावरण, जीवन, सार्वजनिक स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान होने की स्थिति में कार्रवाई का भी अधिकार भी है।

    एनजीटी ने फैसले के ‌लिए मेघालय राज्य बनाम ऑल डिमसा स्टूडेंट्स यूनियन (2019) 8 एससीसी 177 पर भरोसा किया, जिसमे सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 'इस प्रकार के आदेश', 'आवश्यक या समयोचित के रूप में ऐसे निर्देश देते हैं', 'प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए आदेश', आदि शब्द "ट्रिब्यूनल को आदेश पारित करने में सक्षम करते हैं और उपरोक्त शब्द व्यापक विवेकाधिकार प्रदान करते हैं।"

    ट्रिब्यूनल ने कहा,"विशेष रूप से तब, जबकि पीड़ित अधिकारहीन हो और/ या गरीबी या विकलांगता या सामाजिक या आर्थिक रूप से वंचित होने कारण ट्रिब्यूनल के पास नहीं जा पाए" जैसे कि वाईजैग गैस लीक मामले में आसपास के ग्रामिणों की स्‍थ‌िति थी।

    आदेश में कहा गया कि यद‌ि एनजीटी के पास सूओ मोटो कार्यवाही को संचालित करने की शक्ति न हो तो वह पर्यावरणीय क्षति को रोकने और प्रभावित आबादी को राहत दिलाने की स्थिति में नहीं रह जाएगी।

    पृष्ठभूमि

    उल्‍लेखनीय है कि 7 मई को वाईजैग में हुई गैस रिसाव की दुर्घटना में 11 12 लोगों की मौत हो गई थी और 100 से अधिक लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जिनमें से कम से कम 25 की स्थिति गंभीर बताई गई थी।

    एनजीटी ने इस घटना का संज्ञान लिया था। 8 मई को दिए गए एक आदेश में एलजी पॉलिमर को जिलाधिकारी विशाखापट्टनम के पास 50 करोड़ रुपए की राशि जमा करने का निर्देश दिया था। इस आदेश के खिलाफ कंपनी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की और एनजीटी के अधिकार क्षेत्र पर सवाल उठाया।

    सुप्रीम कोर्ट ने 19 मई को दिए आदेश में कंपनी को एनजीटी के समक्ष अपना पक्ष रखने को कहा, जिसके बाद समीक्षा याचिका दायर की गई।

    जांच - नतीजे

    सूओ- मोटो कार्रवाई करने की शक्ति

    अपने आदेश में, एनजीटी की बेंच ने, जिसमें जस्टिस श्यो कुमार सिंह और डॉ नागिन नंदा भी शामिल हैं, ने जोर देकर कहा है कि एनजीटी के पास प्रदूषण और अन्य पर्यावरणीय नुकसानों के पीड़ितों, संपत्ति और पर्यावरण को राहत और मुआवजा प्रदान करने और पर्यावरण और संपत्त‌ि की पुनर्स्थापना की शक्ति है। (एनजीटी अधिनियम की धारा 15 देखें)

    आदेश में भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग बनाम सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया (2012) 8 SCC 326 में सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच के फैसले पर भरोसा किया गया, जिसमें कहा गया था कि एनजीटी पर्यावरण से संबंधित मुद्दे के निस्तारण के लिए "वैधानिक और विशेषज्ञ फोरम" है।

    ट्र‌िब्यूनल ने कहा, "इस प्रकार का विशेषा अधिकार क्षेत्र किसी अन्य फोरम को नहीं सौंपा गया है। पर्यावरण के कई गंभीर मुद्दों, जिसमें हवा, पानी, मिट्टी और अन्य घातक प्रदूषण ‌आदि शामिल हैं, को ट्रिब्यूनल को स्वतः उठाया है। इन मामलों में प्रभावित नागरिक अलग-अलग कारणों से ट्रिब्यूनल तक पहुंचने में असमर्थ थे।...यदि ट्रिब्यूनल को सूओ-मोटू कार्यवाही से रोका जाता है तो इन मुद्दे की सुनवाई नहीं हो पाएगी और नागरिकों के जीवन और अन्य अधिकार खतरे में पड़ जाएंगे, और गंभीर और अपरिवर्तनीय पर्यावरणीय क्षति पर नियंत्रण नहीं लग पाएगा।"

    ट्रिब्यूनल ने जोर देकर कहा कि पर्यावरणीय मुद्दों के निस्तारण में न्यायिक मंच का दृष्टिकोण "हाइपर टेक्निकल" नहीं हो सकता है, ऐसा करने से न्याय का हितों का नुकसान होगा, खासकर उन मामलों में जहां जीवन का अधिकार शामिल हो।

    ट्रिब्यूनल ने कहा कि इसका अतर्निहित "कर्तव्य" कि अपनी शक्तियों का प्रयोग व्यक्तियों, संपत्ति और पर्यावरण को नुकसान होने की स्थित‌ि में राहत और मुआवजा दिलाने के लिए करे।

    रिमोट एरिया के निवास‌ियों को न्याय दिलाने के लिए स्वतः संज्ञान लेने की शक्ति

    ट्रिब्यूनल ने कहा कि यदि कंपनी की दलीलों के अनुसार काम किया जाए तो वंचित आबादी की समस्याओं को कभी उठाया नहीं जा सकेगा और न्याय दूरदराज के इलाकों मे कभी नहीं पहुंच पाएगा।

    ट्र‌िब्‍यूनल ने कहा, "कोई भी ऐसे मुद्दों को नहीं उठा सकता है, विशेष रूप से दूरदराज के इलाकों के प्रभावित व्यक्ति।.. उच्च न्यायालयों के संवैधानिक अधिकार क्षेत्र के बावजूद, न्यायाधिकरण को पर्यावरण के मुद्दों के निस्तारण से रोका नहीं जा सकता है, जिसके लिए यह न्यायाधिकरण विशेष रूप से गठित किया गया है।"

    कंपनी की देयता

    ट्रिब्यूनल ने कहा कि कंपनी बिना पर्यावरणीय मंजूरी के संचालित हो रही ‌थी और 'स्‍थापना की सहमति' और ' संचालन की सहमति' के प्रमाण पत्र प्रशासनिक चूक का परिणाम थे। इस प्रकार, यह माना गया कि मैन्यूफैक्चर, स्टोरेज, एंड इम्पोर्ट ऑफ हेज़ार्डस केमिकल रूल्स, 1989 का उल्लंघन किया गया है। इसलिए मामले को लंबित रखा गया है और इसे 3 नवंबर, 2020 को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाएग।

    ट्र‌िब्यूनल ने तब तक के लिए निम्नलिखित निर्देश जारी किए हैं-

    -जिला मजिस्ट्रेट के पास कंपनी द्वारा जमा किए गए 50 करोड़ रुपए पर्यावरण की पुनर्स्थापना और प‌ीड़ितों की अंतरिम क्षतिपूर्ति के लिए उपयोग किए जाएंगे।

    -पुनर्स्थापना योजना एक समिति तैयार कर सकती है, जिसमें MoEF&CCऔर CPCB दो प्रतिनिधि, मुख्य सचिव द्वारा नामित राज्य सरकार के तीन प्रति‌निधि, जिसमें जिला मजिस्ट्रेट, विशाखापत्तनम और अन्य संबंधित विभाग शामिल होंगे। MoEF&CC इस कार्य के लिए नोडल एजेंसी होगी।

    -अंतिम मुआवजे की गणना एक समिति कर सकता है, जिसमें MoEF&CC, CPCB और NEERI के प्रतिनिधि शामिल हों। उक्त समिति में किसी अन्य विशेषज्ञ संस्थान या व्यक्ति को संबद्ध / शामिल करने की स्वतंत्रता होगी। सचिव, MoEF&CC दो सप्ताह में ऐसी समिति का गठन सुनिश्चित कर सकते हैं। इसके बाद समिति दो महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट दे सकती है। MoEF&CC इस कार्य के लिए नोडल एजेंसी होगी।

    -मुख्य सचिव, आंध्र प्रदेश दो महीने के भीतर कंपनी को दी गई मंजूरियों के मामलों में बरती गई लापरवाही के जिम्मेदार व्यक्तियों पहचान और उचित कार्रवाई कर सकते हैं। साथ ही इस ट्रिब्यूनल को रिपोर्ट दे सकते हैं।

    -स्टेट पीसीबी और कंपनी के फैसले के मद्देनजर कि वैधानिक मंजूरी के बिना कंपनी संचालन दोबारा नहीं शुरु करेगी, हम निर्देश देते हैं कि यदि वैधानिक मंजूरी दी जाती है और कंपनी दोबारा संचालन काप्रस्ताव रखती है, तो यह ट्र‌िब्यूनल के ध्यान में लाया जाना चाहिए, ताकि कानून का अनुपालन सुनिश्चित हो।

    मामले का विवरण:

    केस टाइटल: इन रिः आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम के आरआर वेंकटपुरम ग्राम में एलजी पॉलिमर केमिकल प्लांट में गैस रिसाव

    केस नं: रिव्यू एप्ल‌िकेशन नंबर 19/2020

    कोरम: अध्यक्ष जस्टिस आदर्श कुमार, जस्टिस श्यो कुमार सिंह और डॉ नागिन नंदा

    प्रतिनिधित्व: एडवोकेट अनुज बेरी (एलजी पॉलिमर इंडिया के लिए) साथ में वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा; वरिष्ठ अधिवक्ता निखिल नैयर के साथ में एडवोकेट टीवीएस राघवेंद्र श्रेयस (आंध्र प्रदेश पीसीबी के लिए); अधिवक्ता राज कुमार (CPCB के लिए); एडवोकेट सत्यलिपु रे (MoEF के लिए)

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