'रेप सर्वाइवर्स के अधिकारों का उल्लंघन': सिक्किम हाईकोर्ट ने डॉक्टरों को टू-फिंगर टेस्ट से बचने का निर्देश दिया
Avanish Pathak
25 Nov 2022 1:36 PM IST
सिक्किम हाईकोर्ट ने बुधवार को बलात्कार के मामलों में डॉक्टरों को टू-फिंगर टेस्ट से परहेज करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि इस प्रकार के चिकित्सा परीक्षण व्यक्ति की गरिमा को प्रभावित करते हैं।
बलात्कार के एक मामले में आपराधिक अपील पर सुनवाई करते हुए जस्टिस मीनाक्षी मदन राय और जस्टिस भास्कर राज प्रधान की खंडपीठ ने पीड़िता की चिकित्सा जांच के डॉक्टरों के तरीकों पर चिंता व्यक्त की।
लिलू उर्फ राजेश और अन्य बनाम हरियाणा राज्य में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों का उल्लेख करते हुए कोर्ट ने कहा,
"सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि टू-फिंगर टेस्ट पीड़ितों/रेप सर्वाइवर के अधिकारों का उल्लंघन करता है और इसलिए मेडिकल प्रैक्टिशनर ऐसी परीक्षणों से दूर रहें, जिनसे व्यक्ति की गरिमा प्रभावित होती हो।
माननीय सुप्रीम कोर्ट का अवलोकन देश का कानून होने के कारण बाध्यकारी है और इसलिए......ऊपर वर्णित कोई परीक्षण नहीं होना चाहिए।"
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि "टू-फिंगर टेस्ट" या प्री वैगिनम टेस्ट नहीं किया जाना चाहिए" और चेतावनी दी कि इसके निर्देशों का पालन न करने को 'कदाचार' माना जाएगा।
जस्टिस राय की अध्यक्षता में खंडपीठ ने ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ एक दोषी की ओर से दायर अपील पर यह टिप्पणी की। अपीलकर्ता को अगस्त 2021 में दो नाबालिगों के गंभीर यौन उत्पीड़न के लिए दोषी ठहराया गया था और दस साल कैद की सजा सुनाई गई थी।
खंडपीठ ने कहा कि पीड़ितों में से एक ने "अदालत के समक्ष अपने बयान में अपनी कहानी को अतिरिक्त आरोपों के साथ सजा दिया", जबकि दूसरी पीड़िता अपने बयानों में सुसंगत रही।
पहली पीड़िता (PW1) पर पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट से संबंधित सबूतों की अवहेलना करते हुए, अदालत ने हालांकि कहा कि उसके बयान आईपीसी की धारा 354 के तहत अपराध से इंकार नहीं करते हैं।
कोर्ट ने कहा,
"...यद्यपि विद्वान विचारण न्यायालय ने कहा कि अपीलकर्ता दोनों पीड़ितों PW1 और PW 10 पर पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट के लिए जिम्मेदार था, ऊपर चर्चा किए गए साक्ष्यों पर विचार करने पर हम निष्कर्ष निकालते हैं कि अपीलकर्ता ने PW 10 पर पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट किया गया और PW1 की गरिमा का हनन किया गया किया।
परिणामस्वरूप, इस न्यायालय के पास ट्रायल कोर्ट के निष्कर्ष में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं है कि अपीलकर्ता ने PW 10 पर IPC की धारा 376 के तहत दंडनीय अपराध किया था।
हालांकि, हम इस निष्कर्ष से सहमत नहीं हैं कि आईपीसी की धारा 376 के तहत PW1 पर अपराध किया गया था, , क्योंकि उसके साक्ष्य ढुलमुल हैं, जो इस प्रकार अविश्वसनीय है।"
अदालत ने धारा 376 आईपीसी के तहत सजा बरकरार रखते हुए, दोषी को PW1 के खिलाफ किए गए अपराध के लिए आईपीसी की धारा 354 के तहत दो साल के साधारण कारावास की सजा सुनाई।
अदालत ने कहा, "दोनों सजाएं साथ-साथ चलेंगी।"
केस टाइटल: थुटोप नामग्याल भूटिया @ अकु नामग्याल बनाम सिक्किम राज्य
केस नंबर: Crl.A. No. 12 of 2021