सीआरपीसी की धारा 164 के तहत पीड़िता का बयान पुष्टि के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, दोषसिद्धि का एकमात्र आधार नहीं हो सकता: पटना हाईकोर्ट ने बलात्कार के आरोपी को बरी किया

Shahadat

20 Nov 2023 5:10 AM GMT

  • सीआरपीसी की धारा 164 के तहत पीड़िता का बयान पुष्टि के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, दोषसिद्धि का एकमात्र आधार नहीं हो सकता: पटना हाईकोर्ट ने बलात्कार के आरोपी को बरी किया

    पटना हाईकोर्ट ने हाल ही में बलात्कार के आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 164 के तहत दर्ज पीड़िता का बयान सजा का एकमात्र आधार नहीं हो सकता।

    जस्टिस चक्रधारी शरण सिंह और जस्टिस गुन्नू अनुपमा चक्रवर्ती की खंडपीठ ने कहा,

    “हालांकि, आरोपी यौन कार्य करने में सक्षम है, लेकिन वह अपने आप में आरोपित अपराधों के लिए अपराध साबित नहीं कर सकता है। मेडिकल साक्ष्य के साथ पुष्टि किए गए ठोस मौखिक साक्ष्य के अभाव में यह माना जा सकता है कि अपीलकर्ता को आरोपित अपराधों के लिए निर्दोष माना जाएगा।

    खंडपीठ ने कहा,

    “अपीलकर्ता के विद्वान वकील द्वारा लिया गया निर्णय पूरी तरह से मामले के तथ्यों पर लागू होता है। सीआरपीसी की धारा 164 के तहत पीड़िता का बयान दर्ज किया गया। इसका इस्तेमाल पुष्टि या विरोधाभास के लिए किया जा सकता है, लेकिन दोषसिद्धि का एकमात्र आधार नहीं हो सकता।''

    उपरोक्त फैसला अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश द्वारा पारित दोषसिद्धि के फैसले के खिलाफ आरोपी द्वारा दायर अपील में आया, जिसमें अपीलकर्ता को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376(2)(एफ), 377 और POCSO Act की धारा 4 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया।

    मामले की तथ्यात्मक पृष्ठभूमि के आलोक में पीड़िता के पिता शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि उनके निवास के करीब रहने वाला आरोपी उनकी 7 वर्षीय बेटी को अपने घर ले गया और उसके साथ दुष्कर्म किया।

    प्रस्तुत साक्ष्यों की गहन जांच करने पर हाईकोर्ट ने कहा,

    “संपूर्ण साक्ष्यों को देखने पर यह स्पष्ट है कि घटना का कोई चश्मदीद गवाह नहीं है। पीड़िता स्वयं मुकर गई और अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन नहीं किया। इसके अलावा अन्य गवाहों की उपस्थिति भी संदिग्ध है। पी.डब्लू. 7 पीड़िता के पिता ने खुद कहा कि कथित घटना के बाद उन्होंने पीड़िता से बात नहीं की। इसके अलावा, मेडिकल साक्ष्य की मौखिक साक्ष्य से पुष्टि नहीं होती है, इसलिए संदेह का लाभ अपीलकर्ता को दिया जाना चाहिए।”

    कोर्ट ने कहा,

    “इसलिए हमारा मानना है कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में बुरी तरह विफल रहा है कि आरोपियों ने पीड़ित लड़की पर या तो उसके गुप्तांगों पर यौन हमला/बलात्कार किया है या 7 साल से कम उम्र की पीड़िता पर गुदा प्रवेश किया है। इसके अलावा, मेडिकल साक्ष्य आईपीसी की धारा 377 के तहत सजा को आकर्षित करने के लिए अप्राकृतिक अपराध के बारे में खुलासा नहीं करते हैं।”

    अदालत ने कहा कि यह साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर ज़रा भी सबूत नहीं है कि अपीलकर्ता ने आईपीसी की धारा 376(2)(एफ) या 377 के तहत दंडनीय अपराध किया है। इसमें इस बात पर जोर दिया गया कि POCSO Act की धारा 4 के तहत अपराध के लिए अपीलकर्ता की सजा, धारा 29 को लागू करने पर, बरकरार नहीं रखी जा सकती। अदालत ने सीआरपीसी की 164 के बयान पर ट्रायल कोर्ट की निर्भरता को भी खारिज कर दिया, जो इस निष्कर्ष का एकमात्र आधार है कि आरोपी ने बलात्कार किया है।

    अदालत ने निष्कर्ष निकाला,

    “इसलिए आईपीसी की धारा 376(2)(एफ), धारा 377 और POCSO Act की धारा 4 के तहत के तहत दंडनीय अपराध के लिए अपीलकर्ता की दोषसिद्धि टिकाऊ नहीं हैं। इसके अलावा, निर्णय और दोषसिद्धि और सजा का आदेश क्रमशः दिनांक 07.02.2022 और 09.02.2022 को रद्द कर दिया गया। रिकॉर्ड से पता चलता है कि अपीलकर्ता 07.02.2022 से जेल में है, इसलिए, यदि किसी अन्य मामले में आवश्यकता नहीं हुई तो उसे तुरंत जेल से रिहा कर दिया जाएगा।''

    अपीलकर्ता के लिए वकील: बिंध्याचल सिंह, पारिजात सौरव, विपिन कुमार सिंह और प्रतिवादी के लिए वकील: शशि बाला वर्मा, ए.पी.पी

    केस टाइटल: सत्यमनु कुमार सिंह बनाम बिहार राज्य

    केस नंबर: आपराधिक अपील (डीबी) नंबर 206/2022

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