पीड़िता की डीएनए रिपोर्ट का मैच न होना, अपराध में शामिल नहींं होने का कोई आधार नहींं है : पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने गैंगरेप के आरोपी को ज़मानत देने से इनकार किया

LiveLaw News Network

24 July 2020 8:21 AM GMT

  • पीड़िता की डीएनए रिपोर्ट का मैच न होना, अपराध में शामिल नहींं होने का कोई आधार नहींं है : पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने गैंगरेप के आरोपी को ज़मानत देने से इनकार किया

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने गैंगरेप के एक आरोपी को जमानत देने से इनकार करते हुए कहा कि, ''केवल इसलिए कि डीएनए रिपोर्ट (बलात्कार पीड़िता की) याचिकाकर्ता के साथ मेल नहीं खाती है, यह निष्कर्ष निकालने के लिए एक आधार नहीं हो सकता है कि याचिकाकर्ता अपराध में शामिल नहीं था।''

    न्यायमूर्ति विवेक पुरी के समक्ष याचिकाकर्ता ने आईपीसी की धारा 342/363/366 ए /376 डी/ 506 रिड विद 34 और प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्राम सैक्सुअल आफेंस एक्ट (POCSO) की धारा 6 और 7 के तहत 4 मई 2018 को दर्ज की गई एफआईआर के संबंध में नियमित जमानत मांगी थी।

    सिंगल बेंच ने पाया कि उपरोक्त एफआईआर शिकायतकर्ता के आरोपों के आधार पर दर्ज की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि 03/04 मई, 2018 की रात में 12 बजे से सुबह दो बजे के बीच उसकी बेटी उसे दुकान पर चाय देने आई थी। जब वह उसे चाय देकर वापस घर लौट रही थी तो रास्ते में बीर सिंह, नवीन (वर्तमान याचिकाकर्ता) और एक अज्ञात लड़के ने उसका अपहरण कर लिया था। शिकायतकर्ता ने उसे खोजनेे की कोशिश की और बाद में उसे अपनी बेटी एक कमरे में मिली,जहां पर सभी लड़के मौजूद थे। पीड़िता ने आरोप लगाया था कि उपरोक्त तीनों और एक सोनू नामक व्यक्ति ने उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया। साथ ही उसे धमकी दी कि अगर घटना में बारे में किसी को बताया तो उसे जान से मार देंगे।

    याचिकाकर्ता के वकील ने दावा किया था कि जांच के दौरान वह निर्दोष पाया गया था और वास्तव में सीआरपीसी की धारा 319 के तहत ही उसे समन जारी किया गया था। इसके अलावा, सह-अभियुक्त सोनू को हाईकोर्ट ने की एक समन्वय बेंच ने जमानत दे दी है। वहीं पीड़िता की डीएनए रिपोर्ट याचिकाकर्ता के साथ मेल नहीं खाती है।

    दूसरी ओर राज्य के वकील ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता का मामला सोनू के जैसा नहीं था। इसके अलावा यह भी दलील दी गई कि यह एक सामूहिक बलात्कार का मामला है और याचिकाकर्ता को सीआरपीसी की धारा 319 के तहत तलब किया गया है। पीड़िता ने सामूहिक बलात्कार के मामले के संबंध में उसके खिलाफ विशिष्ट और स्पष्ट आरोप लगाए थे। इसके अलावा यह भी बताया गया था कि याचिकाकर्ता को सात जनवरी 2019 के आदेश के तहत समन जारी किया गया था। बाद में हाईकोर्ट ने 9 जुलाई 2019 के आदेश के तहत समन के उस आदेश को सही ठहराया था।

    न्यायमूर्ति पुरी ने कहा, ''यह सामूहिक बलात्कार का मामला है और केवल इसलिए कि डीएनए रिपोर्ट याचिकाकर्ता के साथ मेल नहीं खाती है, यह निष्कर्ष निकालने के लिए कोई आधार नहीं हो सकता है कि याचिकाकर्ता अपराध में शामिल नहीं था।''

    इसके अलावा, एकल न्यायाधीश ने कहा कि याचिकाकर्ता के मामले को सह आरोपी सोनू के समान नहीं माना जा सकता है। चूंकि ''मुकदमे के दौरान दर्ज बयान में, पीड़िता ने विशेष रूप से बीर सिंह और नवीन की पहचान की है। हालांकि उसने सह-आरोपी सोनू के अपराध में शामिल होने की बात से इनकार कर दिया था।''

    पीठ ने माना कि-

    ''केवल इसलिए कि याचिकाकर्ता को जांच के दौरान निर्दोष पाया गया था, उसे जमानत की रियायत का विस्तार देने के लिए कोई गंभीरता कम करने वाली परिस्थिति नहीं बनाती है।''

    सिंगल बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता को ट्रायल कोर्ट ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 319 के तहत समन जारी किया था और उक्त आदेश को हाईकोर्ट ने भी उचित ठहराया था।

    इस प्रकार न्यायालय ने विचार व्यक्त किया कि याचिकाकर्ता को जमानत की रियायत का लाभ देने के लिए कोई आधार नहीं बनता है।

    आदेश की प्रति डाउनलोड करें



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