"पीड़ित को कैटाटोनिक सिज़ोफ्रेनिया, मतिभ्रम और भ्रम की संभावना": सिक्किम हाईकोर्ट ने पोक्सो आरोपी को बरी किया

Avanish Pathak

28 Oct 2022 10:24 AM GMT

  • पीड़ित को कैटाटोनिक सिज़ोफ्रेनिया, मतिभ्रम और भ्रम की संभावना: सिक्किम हाईकोर्ट ने पोक्सो आरोपी को बरी किया

    सिक्किम हाईकोर्ट ने POCSO मामले में आरोपी एक व्यक्ति को यह देखते हुए बरी कर दिया कि पीड़िता कैटेटोनिक सिज़ोफ्रेनिया से पीड़ित है और इस प्रकार मतिभ्रम और भ्रम का शिकार है।

    जस्टिस मीनाक्षी मदन राय और जस्टिस भास्कर राज प्रधान की पीठ ने कहा, "पूरी तरह से यह निष्कर्ष निकालना मुश्किल होगा कि पीड़िता ने बयान में जो कहा है वह मतिभ्रम से प्रभाव‌ित नहीं है क्योंकि वह निश्चित रूप से कैटेटोनिक सिज़ोफ्रेनिया से पीड़ित थी।"

    पीठ ने कहा, "पीड़िता ने अदालत के समक्ष जो बयान दिया वह सच हो सकता है। हालांकि, 'हो सकता है' आपराधिक अभियोजन में बेंचमार्क नहीं हो सकता है।"

    मिलन कुमार राय को ट्रायल कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता, 1860 (आईपीसी) की धारा 376 (2) (एन) और 376 (3) के साथ-साथ यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012 की धारा 6 के तहत दोषी ठहराया था।

    हाईकोर्ट के समक्ष आरोपी ने तर्क दिया कि पीड़िता का बयान उत्कृष्ट गुणवत्ता का नहीं है और अन्य साक्ष्यों से इसकी पुष्टि नहीं होती है। यह तर्क दिया गया कि पीड़ित का बयान गुप्त है और बयान की सत्यता को सत्यापित करने के लिए समय और स्थान के बारे में कोई विवरण नहीं है।

    दूसरी ओर अभियोजन पक्ष ने बताया कि पीड़िता ने कहा था कि आरोपी ने उसके कपड़े उतारे, उसके स्तनों को छूआ और उसका यौन उत्पीड़न किया और दस बार पहले उसके साथ बलात्कार किया गया था।

    अभियोजन पक्ष ने कहा कि इस तरह के मामलों में जहां पीड़िता कुछ अक्षमताओं से पीड़ित है, यह अदालत पर निर्भर है कि वह पीड़ित की सामाजिक परिस्थितियों और जिस क्षेत्र में अपराध किया गया है, उस पर विचार करते हुए सबूतों की जांच करे।

    अदालत ने कहा कि, इस मामले में, अभियोजन पक्ष के सबूत ही स्थापित करते हैं कि पीड़िता को कैटेटोनिक सिज़ोफ्रेनिया का सामना करना पड़ा और इस तरह मतिभ्रम और भ्रम की संभावना है। [अभियोजन पक्ष के गवाहों में से एक डॉक्टर था जिसने बयान दिया कि पीड़िता कैटेटोनिक सिज़ोफ्रेनिया से पीड़ित थी और हल्की मानसिक मंदता से पीड़ित थी।]

    कोर्ट ने कहा,

    "पीड़ित के 164 सीआरपीसी स्टेटमेंट (एग्‍जिबिट-4) के साथ डिपोजिशन को पढ़ने पर यह दिखता है कि दोनों बयान बेहद गूढ़ हैं और उनकी सत्यता को तौलने की कोई गुंजाइश नहीं है। दोनों बयानों में विवरण भी भिन्न हैं। निश्चितता के साथ यह निष्कर्ष निकालना मुश्किल होगा कि पीड़िता अपने बयान में जो कह रही है, वह मतिभ्रम से प्रभावित नहीं है क्योंकि वह कैटेटोनिक सिज़ोफ्रेनिया से पीड़ित है।

    ऐसे अन्य सबूत हैं जो सुझाव देते हैं कि हो सकता है अन्य कारण जो वर्तमान अभियोजन का कारण बन सकते थे। हालांकि, ये सबूत हमें पूर्ण निश्चितता के साथ उन पर विश्वास करने के लिए प्रेरित नहीं करते हैं, फिर भी यह अभियोजन पक्ष की ओर से पेश सबूत हैं और वे इसके द्वारा बाध्य हैं। "

    अपील की अनुमति देते हुए, पीठ ने आगे कहा:

    "यहां तक ​​​​कि अगर हम मानते हैं कि पीड़िता ने अपनी मां से इस तथ्य का खुलासा किया था, तो वह इस मामले को आगे नहीं ले जा पाएगी क्योंकि अभियोजन पक्ष की ओर से उसकी मानसिक स्थिति के बारे में ठोस सबूत दिए गए थे, जिसे पीड़िता के माता-पिता ने भी सच बताया है। क्या अदालत के समक्ष पीड़ित ने जो कहा है, वह सच हो सकता है। हालांकि, 'हो सकता है' एक आपराधिक अभियोजन में बेंचमार्क नहीं हो सकता है। हम किसी व्यक्ति को दोषी तभी ठहरा सकते हैं, जब अभियोजन पक्ष अदालत के सामने स्पष्ट सबूत पेश करे और अपराध उच‌ित संदेह से परे सिद्ध हो।"

    केस डिटेलः मिलन कुमार राय बनाम सिक्किम राज्य | 2022 लाइव लॉ (सिक) 13| Crl. A. No.16 of 2021

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